आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
AAPANO RAJASTHAN
धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
AAPANO RAJASTHAN

आपाणो राजस्थान री वेबसाइट रो Logo

राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

Home Gallery FAQ Feedback Contact Us Help
आपाणो राजस्थान
राजस्थानी भाषा
मोडिया लिपि
पांडुलिपिया
राजस्थानी व्याकरण
साहित्यिक-सांस्कृतिक कोश
भाषा संबंधी कवितावां
इंटरनेट पर राजस्थानी
राजस्थानी ऐस.ऐम.ऐस
विद्वाना रा विचार
राजस्थानी भाषा कार्यक्रम
साहित्यकार
प्रवासी साहित्यकार
किताबा री सूची
संस्थाया अर संघ
बाबा रामदेवजी
गोगाजी चौहान
वीर तेजाजी
रावल मल्लिनाथजी
मेहाजी मांगलिया
हड़बूजी सांखला
पाबूजी
देवजी
सिद्धपुरुष खेमा बाबा
आलमजी
केसरिया कंवर
बभूतौ सिद्ध
संत पीपाजी
जोगिराज जालंधरनाथ
भगत धन्नौ
संत कूबाजी
जीण माता
रूपांदे
करनी माता
आई माता
माजीसा राणी भटियाणी
मीराबाई
महाराणा प्रताप
पन्नाधाय
ठा.केसरीसिंह बारहठ
बप्पा रावल
बादल व गोरा
बिहारीमल
चन्द्र सखी
दादू
दुर्गादास
हाडी राणी
जयमल अर पत्ता
जोरावर सिंह बारहठ
महाराणा कुम्भा
कमलावती
कविवर व्रिंद
महाराणा लाखा
रानी लीलावती
मालदेव राठौड
पद्मिनी रानी
पृथ्वीसिंह
पृथ्वीराज कवि
प्रताप सिंह बारहठ
राणा रतनसिंह
राणा सांगा
अमरसिंह राठौड
रामसिंह राठौड
अजयपाल जी
राव प्रतापसिंह जी
सूरजमल जी
राव बीकाजी
चित्रांगद मौर्यजी
डूंगरसिंह जी
गंगासिंह जी
जनमेजय जी
राव जोधाजी
सवाई जयसिंहजी
भाटी जैसलजी
खिज्र खां जी
किशनसिंह जी राठौड
महारावल प्रतापसिंहजी
रतनसिंहजी
सूरतसिंहजी
सरदार सिंह जी
सुजानसिंहजी
उम्मेदसिंह जी
उदयसिंह जी
मेजर शैतानसिंह
सागरमल गोपा
अर्जुनलाल सेठी
रामचन्द्र नन्दवाना
जलवायु
जिला
ग़ाँव
तालुका
ढ़ाणियाँ
जनसंख्या
वीर योद्धा
महापुरुष
किला
ऐतिहासिक युद्ध
स्वतन्त्रता संग्राम
वीरा री वाता
धार्मिक स्थान
धर्म - सम्प्रदाय
मेले
सांस्कृतिक संस्थान
रामायण
राजस्थानी व्रत-कथायां
राजस्थानी भजन
भाषा
व्याकरण
लोकग़ीत
लोकनाटय
चित्रकला
मूर्तिकला
स्थापत्यकला
कहावता
दूहा
कविता
वेशभूषा
जातियाँ
तीज- तेवार
शादी-ब्याह
काचँ करियावर
ब्याव रा कार्ड्स
व्यापार-व्यापारी
प्राकृतिक संसाधन
उद्यम- उद्यमी
राजस्थानी वातां
कहाणियां
राजस्थानी गजला
टुणकला
हंसीकावां
हास्य कवितावां
पहेलियां
गळगचिया
टाबरां री पोथी
टाबरा री कहाणियां
टाबरां रा गीत
टाबरां री कवितावां
वेबसाइट वास्ते मिली चिट्ठियां री सूची
राजस्थानी भाषा रे ब्लोग
राजस्थानी भाषा री दूजी वेबसाईटा

राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

राजस्थानी भाषा

पुस्तक- राजस्थानी भासा साहित्त री ख्यात
लेखक- डॉ. राजेन्द्र बारहठ


राजस्थानी भाषा प्रभाव खेतर पर चरचा सूं पैला इणरा नामकरण पर विचार जरूरी है। राजस्थानी राजस्थान री भासा है, इण सारू राजस्थानी नाम पड़ियौ। राजस्थान रौ नाम राजनैतिक सीमांकन रौ सूचक है, पण राजस्थानी भाषा रौ नाम सांस्कृतिक सीमांकन नै व्यक्त करै है।
राजस्थान नाम री परम्परा प्रो. देव कोठारी रा सबदां में प्रान्त रै रूप में राजस्थान सबद रौ घणौ पुराणो नीं है। पण इण सबद रौ प्रयोग पुराभिलेखीय अर साहित्यिक सामग्री में विक्रम रा छठा सईका सूं ही तीन विभिन्न अरथां में प्रयुक्त व्हियौ है। (क) राज्यादिकारी रा अरथ में (ख) राजधानी रा अरथ में (ग) प्रदेश कै प्रान्त रा अर्थ में। प्रो. कोठारी राजस्थान रै नामकरण री परम्परा इण मुजब बताई है:-
(क) राजस्याधिकारी रा अरथ में ः- प्राचीनलाकलमें सासक आपस सासित प्रदेस नै राज व्यवस्था री दीठ ूसं केई हिस्साँ में बाट'र आपरा प्रतिनिधि रा रूप में उटै एक विस्तवस्त व्यक्ति नैं मुकर करतौ जिणरै जिम्मै तो खेतर व्हेतौ। विणनै राजस्थानीय कहीजतौ। (1) छठा सईका का पूर्वार्द्ध रा चित्तौड़ सिलालेख में राजस्थानीया सबद मिलै (3) वि. सं. 682 रा बसन्तगढ़ (सिरोही) रा सिलालेख में राजस्थानीयादित्य सबद मिलै। राजस्थानीय सबद रौ अर राज्याधिकारी कै गर्वनर व्हेवै। प्रो. कीलहर्ष अर भण्डारकर इणने विदेस-सचिव मानै।
(ख)राजधानी रा अरथ में- विक्रम रा सतरवा सीका अर विणरै पछै री ऐतिहासिक अर साहित्यिक सामग्री में (1) मुहता नैणसी री ख्यात (सतरवौ सईकौ)-राजस्थानं (2) वीरभाण रतनू रा राजरुपक में (1788) राजस्थान (3) बांकीदास री ख्यात में (1828-1890) राजस्थान (4) सीतामह रा महाराजकुमार रत्नसिंह रौ सूरजमल मीसण में लिखियौ वि. स. 1903 रा जेठ मईना रा चांनणा पख री पांचम रा कागद में राजस्थान।
(ग) प्रदेस रा अरथ में- कर्नल जेम्स टॉड 'एन्लस एण्ड एण्टी कीवटीज आफ राजस्थान (ई. सं. 1828) नाम रा इतिहास ग्रंथ में इण प्रदेस सारू सबसूं पैला राजस्थान सबद रौ प्रयोग करियौ। विणरै पछै मोलवी मुहम्मद उबेदुल्लाह फरहती, रामदान रतनू, बाबू रा ामनारायण दुग्गड़ आपरा इतिहास ग्रंथां में राजस्थान सबद प्रदेस सूचक अरथ में काम में लियौ है। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन 'लिंग्विस्टिक सर्व आफ इण्यिया' पुस्तक में ई. स. 1907-08 में इण प्रदेस नैं राजस्थान अर अटा री भाशां नै राजस्थानी नाम सूं संबोधित करियौ. इण ई तरै डा. एल. पी. टेस्सीटोरी 'इण्डियन एण्टीक्वरी' में 1914 सूं 1916 कर 'पुराणी राजस्थानी' नाम सूं अंग्रेजी भासा में लगोतार लेख लिखर इण प्रदेस री भासा नैं राजस्थनी भासा बताई। पण 15 अगस्त 1947 तक प्रसासनिक स्तर माथै राजपूतानौ नाम ही चलण में रहयौ। स्वतंत्रता पछै सरदार पटेल री कोसीसा सूं रियासतां रा एकीकरण रौ क्रम चलियौ। पैला 25 मार्च 1948 नै राजस्थान संघ बणियौ। जो 1956 तक आवतां-आवतां अबार रा राजस्थान नै रूप आयौ।

ऊपर

करनल जेम्स टॉड राजस्थान सारू जद राजस्थान सबद रौ पेैली वार प्रयोग करियौ तो विणरै पछै औ सबद होलै-होलै प्रदेस रा अरथ में रूढ़ व्हेण लागौ। संभवतः इणसूं ई प्रभावित व्हेय'र ग्रियरसन आपरा भासा सरवेक्सण (ई. सं. 1907-08) में इण प्रदेस री भासा सारू राजस्थानी नाम रौ प्रोयग करियौ। जिणरै पछै एल. पी. टेसीटोरी अर दूजा विद्वानां लगोतार अपणायौ।
राजस्थानी भारोपीय परिवार री भासा है। आधुनिक विद्वानं जिण तरै सूं आधुनिक भासावां रौ नामकरण करियौ. विण ईज आधार माथै राजस्थानी भासा रौ नामकरण भी व्हियौ। जिणरौ आधार राजस्थान है। खास तौर सूं तौ राजस्थानी भासी लोग भारत संघ में राजस्थान नाम रा राज्य में ही है। पण आधुनिक राजस्थान रै गठन सूं पैला अर अंगरेजी राज री वगत अर मुगल राज अर विणसूं पैला जका लोग णि खेतर में हा सासक कै सासित जिण रूप में भी वांरी भासी भी वै ठै भी भारत कै विस्व रा किसा भी देस मं गया उठा साथै लेगा. जिणनै आपरां संस्कारां में ुखाल राखी। कठै-कठै ई वगत अर परिस्थितियां री रज जरुर जमगी, जिणनै झाटक'र विणरा मूल रूप नैं देखियौ जा सकै, जिणनै भारत अर आखी दुनिया रा भासा वैग्यानिक राजस्थानी भासा रै नाम सूं बतलावै। ऐ प्रवासी राजस्थानी जिण दांण अठै सूं गया दत अठै री भासा रौ नाम मारूभासा, मरूभासा, मरुभूमि भासा, मरुदेसीया भासा, मरुवाणी इत्याद नामां सूं जांणीजती ही। राजस्थषान अर राजस्थानी इण ही परंपरा रौनाम है। इणनै इण तरै भी समझियौ जा सकै। रज बारीक रेत नैं कैवे। रज+स्थान = राजस्थान मतलब रे रौ स्थान जकौ खास कर'र भगवान राम रा अग्नि बांण सूं सुखाईजियौ थकौ पांई रौ समन्दर में बदलग्यौ। जिण खेतर में वैदिक सरस्वती, हाकड़ा अबार घग्धर नामां सूं संबोधित की जावण वाली नदी वहती ही। जिणनै दुनिया रा नक्सा में राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, वाकिस्तान में फेलिया थका रेगिस्तान रा रूप में देखियौ जा सकै। विणरी भासा रौ नाम राजस्थानी है।

श्री शिवकुमार श्री वास्तव रा सबदां में राजस्थानी सगला राजस्थान री भासा है। इणरै मांय भूमि, भासा, रैणी-सैणी, विचार, व्यवहरा अर इतिहास री दीठ सूं दिखयाद में सतपुडा रा ढाल अर ताप्ती नदी तांी अर अगूणी (पूर्व) दिस में केतकी नदी री ऊपरी धारा सूं आथूण (पश्चिम) में उमरकोट सहित सिंघ नदी री अगूणी धारा तक रा सगला हिस्सा नैं लियौ जावणौ चावै।
इस भासा में अबार री राज्य री बोलियों रै साथै ही मध्यप्रदेश रा मालवा खेतर (क्षेत्र) री मालवी, पहाड़ी प्रदेसां री भीली, पंजाबा अर कस्मीर री गूजरी, अर बिणजारां अर बालदियां इत्याद खानाबदोस जातियां री सगली बोलियां मांनीजै।
गुजराती विद्वान झवेरचन्द मेघाणी रा सबदां में "इण जमाना रौ परदौ उठाय'रजे आप आगे बढ़ौ तौ आपने कच्छ काठियावाड़ सूं लेय'र प्रयाग तक रा भूखण्ड पर फैली एक भासा दीखसी। इण पसरी थकी बोलचाल री भासा रौ नाम प्राचीन राजस्थानी है। इण में ही मेड़ता री मीरां प्रभुपद रचती। नरसी मेहतौ गिरनार री तलेटी में बैठ'र प्रभुपद रचतौ, जकौ जातरुऔं रा कंठ में वास कर'र जोधपुर, उदैपुर पौच जावता। इणरी पुत्रियां ब्रजभासा, गुजराती अर आधुनिक राजस्थानी रौ नाम धारण कर'र स्वतंत्र भासावां बणी"2

ऊपर

राजस्थानी भासा रौ उद्भव किसा अपभ्रंस सूं व्हियौ, अबार तक विद्वान जकौ विचार प्रस्तुति करिया, वां विचारां नैं सुविधा सारू तीन भागों में बांटिया जा सकैः-
(1) सौरसैनी अपभ्रंस (2) नागर-आवान्त्य अपभ्रंस (3) गुजर अपभ्रंस सौरसैनी अपभ्रंस सूं राजस्थानी रौ उद्गम मानण वाला विद्वानां् में डा. एल. पी. टेसीटोरी रै मुजब "प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी सौर सैनी री पैली सन्तान है। आपरी इण मान्यता नै खुलासै करता थका डॉ. टेसीटोरी कैवै हैक पन्दरवा सईका तांई गुजरात अर मारवाड़ रा घणकरा हिस्सा में आ भासा वरतजती ही। इणरै प्रमाण सारू वै मानव विग्यान रा सिद्धांत रौ तरक देवै।3 चन्द्र शर्मा गुलेरी4 स्यामसुन्दरदास5, डा. उदयनारायण तिवारी6, पं. जनार्दनराय नागर7, सौरसेनी सूं ही राजस्थानी रौ उद्गम मानै।"
ग्रियरसन आपरा भासा सरवेक्सण रै आधार माथै नागर अपभ्रंस री विभासा "आवन्त्य" सूं राजस्थानी री उत्पत्ति अंग्रेजै।8 पं. हरगोविन्ददास विक्रमचन्द सेठ नागरी अपभ्रंस सूं, ठाकर रामसिंह सूरजकरण पारकी नागरी अर आवन्त्य सूं, पुरसोत्तम मेनारिया नागरी अपभ्रंस, प्रो. देव कोठारी नागरी अपभ्रंस सूं10 राजस्थानी री उत्पति मानै।
आं दोनूं मतां रै अलावै राजस्थानी नै कन्हैयालाल माणिक्यलला मुंसी11 मोतीलला मेनारिया गुजरी अपभ्रंस सूं12, सुनीतिकुमार, चाटुरज्या सौराष्ट्री अपभ्रंस सूं13, उत्पन्न मांनै। कंई विद्वानां री इसी मान्यता है क ईसा रा 12वां सूं 15वां सईका तक घणै विस्त्रित रूप में एक ही भासा गुजरात अर राजस्थान में प्रचलित ही। ईसा रा 16 वां सईका रै अन्त में गुजराती अर मारवाड़ी रै रूप में अलग वीह।14 इण 12 वां 15 वां सईका री भासा नै गुजराती उमाशंकर जोसी मारू गुजर15 डा. गोरधन सरमा मारू-सौरठ कैवणौ उचित मांनै।
इणां मतां नैं देखतां थकां ुपरी तौर पर औ दीखै है क राजस्थानी भासा रा उद्ब रा बारा में दिवानां ार मत न्यारा-न्यारा है। पम औ सिरफ भरम है। जकौ सौरसेनी, गुजर, सौराष्ट्र, नागर, आवन्त्य इत्याद न्यारा-न्यारा नामां रैकारण मैसूस व्है। जद'क मारकण्डेय आपरा ग्रंथ में प्राकृत चंद्रिका रै आदार माथै अपभ्रंस रो जकौ 27 भेद करिया है।17 उणां में नागर, गूजर, आवन्त्य, मालब इत्याद नै न्यारी भासावंे रे रूप में बताईजी है। इसी स्थिति में इणांनै सौरसेनी अपभ्रंस रै अन्तरगत किंण तरै राखीज सकै। इण सन्दरभ में सही तथा औ है'क मारकण्डेय जकौ 27 अपभ्रंसां रा जो लक्सण अर उदाहरण दिया है।18 इणां 27 अपभ्रंसां रा लक्सणां नै मारकण्डेय सुक्स बताय'र अपभ्रंस रा तीन प्रधान भेद19 नागर, ब्राचड़, उपनागर कर'र 27 भेदां नै समाहित कर दिया है।20 इण दीठ सूं नागर अपभ्रंस सूं ही राजस्थानी री उत्पत्ति मांनणी वाजब है।

ऊपर

(1) मारवाड़ी (2) मेवाड़ी (3) वागड़ी (4) मालवी (5) ढुंढाड़ी (6) हाड़ौती (7) मेवाती (8) भीली (9) पहाडी (10) खानाबदोसी।

(1) मारवाडी- इण बोली रौ खेतर रिगवेद में वरणीजियौ थकौ पूरौ 'मरुधन्व' जकौ महाभारत में 'मरुकान्तार' कहीजियौ पूरौ है। पूरा रेत रा समंदर में फैली है। राजस्थान रौ आथूणलौ हिस्सौ इणमें आवै। राजस्थानी रा आदि काल सूं इणें साहित्य बड़ी मात्रा में मिलै। वरतमान गुजरात री गुजराती इण रौ एक रूप है। आ वरतमान मांयं पाकिस्तान रा एक बड़ा हिसास चलण में है। पाकिस्तान रा गजदराबाद, कराची रा प्रकासक चौहान पब्लिसर पाकिस्तान में राजस्थानी रा प्रसिद्ध आलोचक अर सिरजकक बाग अली सौक री पोथी 'राजस्थानी जबान ओ अदब' नाम सूं ऊरदू में छापी। इणीरा एक अध्याय 'आधुनिक राजस्‌आथानी साहित्य री पिछांण' सूं कीं जाणकारी माणक रा जनवरी 1994 रा अंक में छपी है। पाकिस्तान रा राजस्थाना साहित्यकारां रौ दल जोधपुर आयौ 1994, में, जकौ माणक राजस्थानि मासिक पत्रिका रा दफ्तर में आया। इणांरौ घमौ मान करीजियौ। श्री बाग अली सौक रा सबदा में "पाकिस्तान में राजस्थानी साहितय रौ इतिहास घणौ जूनौ है। सिंघ पंजबा री सीमा रा इलाका में तौ इणरौ घमौ असर निजर आवै। थारपारकर अर आं जागावां में राजस्थानी लोकगीत अंणूता प्रसिद्ध है। इमांमें जलालो, चनसेर, मटयारौ, सावणी तीज, करौह, अम्र लौ, पटयारी, मरवण, मूमल, रायधम अर घौंसलो इत्याद कीं खास नाम है।"
मूल जैसलमेर रा रैवणवाला भाटा रा करागर सिलावट कहीजै सिंघ में सैकड़ौं बरसां सूं रैवै है। इणांरी बिरादरी रा केई लोग कराची, हैदराबाद अर सक्खर में भी आबाद है। इण बिरादरी रा कीं मोट्यार कराची में 1955 में अंजुमन मारवाड़ी ओसरा नाम री संस्था गठित करी। इण संस्था री तरफ सूं वां केई जागा ऊरदू अर राजस्थानी कवि सम्मेलन राखिया। पछै आ संस्था राजस्थानी कवि सम्मेलन ही करती रैयी।

आगै चाल'र इण संस्था रा संस्थापक अर कवि मैसूस करियौ क उरदू री लिपी में राजस्थानी लिखणौ संभव नी। इण सारू स्वय. यार मोहम्मद चौहान, ताहिर हमीद जेसलेरी और मोहम्मद रजमान नसीर इत्याद कीवं लिपी में सुधार कर'र लिखण री कोसी करी। आ प्रारंभिक कोसीस गति पकड़ी। सन् 1955 सूं 1965 तक जका कविं आगै आया जिणां में खास नाम है-मास्टर अब्दुल हमीद 'हमीद' जैसलमेरी, यार मो. चौहान 'ताहिर', बाग अवी सोफ जैसलमेरी, मो. रमजान 'नसीर', ओरंगजेब 'जिया', असरफ अली 'अफसोस', कुरबान अली चौहान और महमूद दार कस्मीरी खास है। इणरै पछै सिलावट वेलफेयर स्‌ुटडेन्ट फै ैडरेसन री तरफ सूं सालीणा इनामी कवि सम्मेलनां री सरूात व्ही। ऐ कवि सम्मेलन घणा चावा व्हिया यूथ प्रोगेसिव कॉन्सिल नाम री संस्था इणां कवि सम्मेलनां रौ प्रबंध करती। विण वगत जगत जका कवि आगे आय विणांमे युनुस नीर, युनुस राही, लियाफत अली 'दीपक', निसार 'तालिब', जियाऊदीन 'परवाज', इकबाल 'बर्क लियाकत राज', अब्दुल मजीद 'चिंगारी', बसीर अहमद 'बसीर' और मो. हनीफ कालू खास हा। भारत-पाक (1971) जुद्ध रै कीं बरसां पछै 1976 में राजस्थानी अदब सभा री नींव राखीजी। इणरी तरफ सूं खेलीजियौ पैलौ ाटक एनात-अपूजी वात प्रसिद्ध व्हियौ जिणसूं काम में गति आई। डौढ़ दो बरसां री लोगल कोसीसां रै पछै राजस्थानी भासा री व्याकरण त्यार करीणजी, अर राजस्थानी व्याकरण री कीं खास-खास बातां तै करीजी। और काम सैय्यद सिब्तै हसन पार पटकियौ। वै पाकिस्तान रा अंगेरजी दैनिक डॉन में राजस्थानी नैं लेय'र लेख भी लिखिया। आ सभा ब्याव-सादी रा संस्कार गीतां रा कैसिट गुलाब अली री धुनां माथै त्यार कराया। इणीं दांण राजस्थानी नाटकां रौ सिलसिलौ सरू व्हियौ। ए नाटक आधुनिक संदरभां रा है। विण दांण रा कीं चावा नाटकां रा नाम अलयौ ल्यौ, अजलियाकत सोलजर, अज बाग अली साकी अर नौ ए रातां औरौ। राजस्थानी रचनावां रा उरदू, सिंधी, बलोची अर पंजाबी में अनुवाद कराया, खास कर'र गोल्डन-जुबली इत्याद अवसरां पर कवि चावा व्हिया, विणांमें सरदार अली चौहान, फारुूक आजम फरीद, रजब अली 'गम' अर फिरोज अली फिरोज खास है।23
श्री अब्दुल हमीद 'हमीद' जैसलमेरी रौ जलम 1904 ई. में करांची में व्हियौ। विणारा पिता रौ नाम हाजी इमाम बक्स है। आठवी तक भणाई करी अर नौकरली करली। 1936 ई. में 'हक्त रोज मसरिक' जारी कियौ। इणरै अलावै केई गतिविधियां रै कारम विणारौ नाम चावौ व्हियो। राजस्थानी में लिखण रै कारण इणानै आज भी पाकिस्तान में राजस्थानी समजा में घणा मान सूं याद करीजै।23

इणरै अलावै डिंगल सैली रो साहित्य बड़ी मात्रा में रचीजियौ जकौ क्रम आज भी जारी है। लोक साहितत विद्-विद् रौ घमऔ रूपालौ अर बड़ी मात्रा में है। चारमां, सोढा, राजपूतां अर मेघवालां अर दजी जातियां में राजस्थानी री मारवाड़ी बोली रौ चलण है। उमरकोट सोढ़ा राजपूतों री रियासत रीवी है। औ सांच है'क राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नै नीं तौड़ सकै।
पण मारवाड़ी बोली री खेतर राजस्थान में जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, पाली, सिरोही, नागौर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरु, बीकानेर, सीकर, झुंझुनु, अजमेर री कीं हिस्साँ इत्याद खेतरमें आपरी उपबोलियां रै रुप में चलण में है।
(2)मेवाड़ी-आ मेवाड़ राज्य रा खेतर री बोली है। जकौ वरतमान में उदैपुर, चित्तौड़, राजनगर, भीलवाड़ा अर कीं अजमेर रा खेतर में वरतीजै है।
(3) वागड़ी-आ बांसवाडा अर डूंगरपुर जिलां में बोलीजै।
(4) ढुंढाड़ी-आजैपुर, दौसा, टौंक अर कीं सवाई माधोपुर रा हिस्सा में बोलीजै।
(5) मालवी-मध्यप्रदेस रौ मालवौ खेतर इण बोली रौ खेतर है। ग्रियरसन रा सबदां में 'आ एक विस्तुत खेतर में फैली थकी है। अगूण (पूरब) आ भोला तक पौंच जावै, जठै इणरौ मिलणौ बुंदेली सूं व्है। आथूणी (पिछम) आ उदयपुर रा मरां री भीली, बोली सूं अवरुद्ध व्है जावै है। आ मध्यप्रान्त रा, धुरआथूण (पश्चिमोत्तर) रा जिलां नैं भी भेला लेय लेवै। वरतमान मध्यप्रदेश रा सीतामऊ, रतलाम, धारत, उज्जैन, इंदौर, खरगौन, झाबुआ, दाहोद इत्यादि खेतर में बोली जावै।'
(6) हाड़ौती- आ कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड अर सवाई माणओपुर रा कीं हिस्सा में बोली जावै है।
(7) मेवाती- आ अगूणा (पूर्व)राजस्थान रा अलवर अर हरियाणा अर दिल्ली रा इणसूं लाता इलाका में बोलीजै, 'गूजरी' इण रौ एक भेद है। आज जकौ 'मेवाती' मुसलमान निजर आवै है वे मध्यकाल में मुसलाम बणियोड़डा है। आ गूजरी बोली भार रा केई हिस्सां में मिलै। प्रो. सुनीतिकुमार चाटुरज्या रा सबदां में 'कस्मीर री गुजीर बोली अर तमिलनाडू री सौरास्ट्री बोली राजस्थानी री साखां है। राजस्थानी री आथूणली साखा में आ गिणीजै।'25 प्रो. देव कोठारी रा सबदा में 'हिमालय री तराई, कस्मीर, पंजाब में बसियोड़ा अहीरां अर गूजरां री बोली 'गुजरी' राजस्थानी री बोली है। ै लोग भी राजस्थान सूं अठी-उठी जाय'र बसिया।26 ड़ा. सक्तिकुमार सरमा रै मुजब 'रिगवेद में गूजरकरण नाम रा राजा रौ जिक्र आवै है जकौ अठै रौ राजा हौ। वो पुस्कर में जिक गरायौ जिणनै महारूसि गौतम पूरौ करायौ। वो अबारा रा राजस्थान रा 84 गावां बामणां अर दूजा लोगांनै दीया।'27
जारज ग्रियरसन रै मुजब 'नवमा सईका (सदी) मंें आथूणला (पश्चिम) राजपूताना रा गुजर राजपूत भीलमाम कै भीनमाल नैं कब्जै करियौ हौ। राजपूताना अर गुजरात रौ गाढ़ौ राजनीतिक सम्बंध ऐतिहासीक तथ्यां रै आधार माथै दरसायौ जावै है'क कीं चावा अर ठावा विद्वान इण तथ्य नै अंगेर लियौ है'क कीं राजपूत जातियां गूजरां सूं उपजी है। आं विद्वानां रौ औ भी लैवणो है'क गूजरां रै बिखरण रौ केन्द्र राजपूताना रौ आबू परबत है आस-पास रो भूमि-भाग ही। भारत में गूजर बेगा ही सक्तिसाली बणगा। खास रूप सूं ऐ लोग पसुपालक जात रा हा। पम इमांरा आपरा सेनिक अर मुखिया भ हा। जद आ जात महातू जागा पायली तौ वइमनैं बामण राजपूतां रै बरोबर जादा दीवी अ विणांनै राजपूत कै राजपुत्र (राजा रौ बेटी) री संग्या सूं विभूसित करिया। इमां मांय सूं केई जणा तौ बामण भी बणगा गुजरगडौ, जैनां में गुजर पोरवाल एक खांप है। राजपूतां में गुर्जर प्रतिहार, बड़गुजर, इंदा इत्याद है। पण णि जात री बोत बड़ी संख्या आपरी पसुपाल प्रवृत्ति रै कारण गूर रै रुप में एक उपजात बण'र रैयगी। इणांनै ही आधुनकि काल में गूजर कैवै। ए गुजर ारजपूताना रा तििहास में महताऊ भाग लियौ हौ। णिांरी एक साखा सपादलख प्रदेस नै कबजै करियौ अर ऐ उठा रा खस जात रा लोगां मेंमिलग्या। आथूणला सपादलख में ऐ कनेत री उपजात राव रै रूप में जांणीजिया पण इमांै प्राचीन खसिया अर कनेत लोगां आपरी जात में आपरै बरोबर मा नीं दियौ। ऐ गूजर खेती रा काम अर पसुपालन री तरफ बढ़िया। इणांरा जुद्धप्रिय लोगां नै ज्यूंक आपां देख चूका हां, राजपूतां में भेला-भेल लिया।28 गुजर सपादलख सूं निकल'र गंगा रा कांठा सूं व्हेता थका मेवात पौचिया अर अठै सूं ऐ अगूणा (पूर्वी) राजस्थान में बबसगा, पछै उठै ही बसग्या। साचाणी सपादलख प्रदेस अर राजपूताना में लगोलग औ आवणौ-जवाणौ चलतौ रह्यौ। छेहलै ड़ाव में जावतां ज्यूं आपां देख चुका हां नेपाल नै खस जात रा लोगां कब्जै कर लियो। इणारै साथै अलेखूं गूजर राजपूत भी हा। भासा विग्यान रा विद्वान आ अंग्रेज चुका हैं'क अबार ही पहाड़ी बोलियां राजस्थानी सूं ही सम्बंधित है। उपरा रा वरणाव सूं सपस्ट व्हैगो व्हेला'क औ किंण तरै व्हियौ।29
योगराज थानी रै मजुब हरियाणा री संस्कृति पंजबा, हिमाचल प्रदेस अर कस्मीर री बजाय राजस्थान रै घणी नैड़ी है। हरियाणरी असली झांकी विणरा रीत-रैवाज, तीज-तिंवार, निरत-उच्छब, खावण-पीवण, वेसवागा इत्याद में मिलै है। हरियाणौ लोक साहित्त री दीठ सूं घम धायौड़ो प्रदेस है।30 ए आगै बतावै'क हरियाणा री सैनिक जातियां मे राजपूतां अरजाटां रै पछै गूजरां रौ स्थान है। गूजरां रौ तििहास पंजबा अर हरियाणा सूं सरु व्हेवै है। कदेई गूजर गुजरात राज्य रा मालिक हा। जनरल कनिंध रै मजुब गुजरांवालां, गुजरात, गूजर खां इत्याद नामां में गुजर सबद रौ संजोग गूजरां रै कारण ही व्हियौ है। गूजर पंजाब सूं दिल्ली आया, दिल्ली सूं अजमेर अर सौराष्ट्र पौचिया अर उठा वल्लभीपुर रा पूरा खेतर में राज थापियौ। पसुपाल व्हेतां थकां भी आ जात किणीं सूं लारै नीं है। सौर्य अप पराक्रम इम जता रा वंसज गुण है। गूजर रा थपेड़ां रै साथै विखरगा पण वै आज भी आपरी भासा संस्कृति सूं जुड़िया थका है, चावै भलेई कठेई ज्यूं नीं गया परा व्हौ।31 वा भासा है राजस्थानी। गूजर गुरु नानक रा उपदेसां सूं प्रभावित वेय'र सिख धरम री आड़ी अग्रसर भी व्हिया हा।
(8) भीली-आ राजस्थान रा दिखणादा हिस्सा में बोलीजै। सौभालाल पाटक रै मजुब मेवाड़ वागड़ रौ हिस्सौ, हाड़ौती रौ कीं हिस्सौ, आथूणला म्धयप्रदेस रा झाबुआ, रतलाम, धार, खरगौन, इत्याद अर गुजरात रौ पंचमहल, भरूंच, गौधरौ, बड़ौदौ इत्याद भीलां रौ खेतर है। महाराष्ट्र रा खानदेस में भील बड़ी संख्या में रैवै. आं सब भागां में भीलां री जनसंख्या वास करै है।32 जिणांरा संस्कारां सूं जुड़ी थकी आ बोली है। जोधसिंह जी मेहता रै मुजब "भीली राजस्थानी अर गुजराती सूं मिलती-जुलती है। गोण्डी, संथाली, काली इत्याद भासावां सूं भीली रौ कोई लेणौ-देणौ नीं है।33" ग्रियरसन इमनै राजस्थानी अर गुजराती रै बीच री कड़ी कैवै।34 प्रो. सुनीतिकुमार चाटुरज्या री दीठ में व्याकरण री दीठ सूं भीली नैं राजस्थानी रै भेली राखण ीवाजब है भीली रौ गुजराती सूं घमौ मेल है अर खानदेसी राजस्थानी है कै गुजराती अर मराठी इणं दोनां सूं ऊपरजी। इसौ लखावै हैक जूनी माराठा माथै राजस्थानी रा गैरा प्रभाव रौ फल है, और प्रभाव दिखवणाद में कोंकणी तक पौचियौ है। कोंकणी में केई एहड़़ी खासियतां है जकौ राजस्थानी सूं मिलै मराठी सूं नीं।35 इणीं तरै राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में फैलिया थकां भीलां ने गवरी-नाच जकाौ विणारीं आस्था अर मनोरंजन रौ माद्यम है। इण पूरा खेतर में एक ही रूप में चलण है। राजास्थानी री भीली बोली लोकसाहित्त री दीठ सूं घणी सबली है।
(9) पहाड़ी- हिमालय रा तराी वाला इलाका में बोली जावै। उत्तराखण्ड, हिमालचल प्रदेस अर नेपाल इत्याद खेतर। प्रो. देव कोठारी रै मुजब राजस्तान रा केई जणा नेपाल, गढ़वाल कुमाऊ अंचलां में जायर बसिय हा। इण कारण उठै री बोली में राजस्थानी प्रभाव स्याफ झलकै है।36 डा. जीवन खरकवाल (नैनीताल वासी) हाल उदयपुर वासी रै मजुब कुमाऊ गढ़वाल में चौधरी जात रा लोग है जकौ खुद नैं राजस्थान सूं आया बताव है। वै ापरै साथै सीतला माता री आस्था भी लाया। बारू बोक्सा ादिवासी जातियां ्‌र उठै प्रतिहार सैली रा मिन्दर भी है। नाथ सम्प्रदाय भी उठै है। टमटा जात मूल रूप सूं राजस्थान सूं उठै गई जकौ तांबौ रौ काम पुस्तैनी रूप सूं करै।37 ग्रियरसन उठै री खस जात में गुजरां रै मिलण री चरचा करी है, इणीं सूं कीं उपजातियां बणी जिणरी चरचा मेवात बोली रै परिचै री दांण करीजी। गूजर हिमालचर अर कस्मीर में जाय'र बसिया।
"कुमाऊनीं अर विणरा आदि आर्य सबद" नाम रा लेख में हेमचन्द्र जी जोसी लिखै है'क अठा रा 'छा' अर 'ण' रौ प्रयोग राजस्थानी-गुजराती सूं लीदा थका है। इणी सारू भासा विग्यान री दीठ सूं देख्याँ जावै तो कुमाऊनी नै हिन्दी रै भाग समझणौ टीक नीं। अल्मोड़ा री बोली में णकार रौ घमओ ौर है। सिरफ सरू रौ 'न' 'न' रैय जावै है। ज्यूं 'नावणा' (सिनान-संपाड़ौ) नै अठै री बोली में 'नाणी' केवै है। रास्थानी अर कुमाऊनी में कितरौ गैरी-मेल है, दिखण में विच्तिर लागतौ थकौ औ मेल हजारूं मीलां रा फरक नैं आपमें बेल लवै है। सपस्ट ही राजस्थानी आपरी प्राचीनतम अर सप्रसिद्ध रै कारण देस रा एक विसाल भू-भाग पर चलण में है।38 जॉर्‌ज ग्रियरसन पहाड़ी नैं तीन हिस्सां में बांटी है।
(1) अगूणी पहाड़ी (2) आथूणी पहाड़ी (3) केन्द्रिय पहाड़ी इत्याद।
अगूणी पहाड़ी नैं नेपाली केवै। अगूणी पहडाी बोली रा दूजा नाम 'परबतिया,' 'गोरखाली' 'खसकुस' कै 'खस' जात री बोली। नेपाल में आर्य भासा रौ प्रवेस खास कर'र आधुनिक इतिहास रौ विसय है, सोवा सईका रा सरुपोत में मुसलमानी आक्रमणां रै दबाव रै कारण मेवाड़ रा कीं राजपूत धुराऊ (उत्तर) में प्रयाक करियऔ अर गढ़वाल, कुमाऊ अर आथूणला नेपाल में बसगा। सन् 1559 ईं. में इणांरी एक दल 'गोरखौ' स्हैर जकौ काठमांडू सूं लगेटगें 70 मील धुर आथूण (उत्तर पश्चिम) में है जिणनै जीत लियौ। सन् 1768 में अबार रा 'गोरखाली वंस री थापना कीवी39' वे आपरै साथे लाई थकी राजस्थानी अर खस रा भेल सूं वणी बासा नैं आपरै दरबार री बासा बणाई दत सूं ही आ भासा नेपाल री सांसकीय भासा रै रूप में वापरीजै है। इणर ीपुख्ताई सारु इतिहासकार सूर्य विक्र रावाली रै मजुब मध्य राजस्थान सूं परबतखण्ड आया ऐ राजपूत राजस्तानी बासा ई बोलता। ऐ परबत खण्ड रा रैवासी गरुड़ मगरों नै हराया. विजयी राजपूतां री भासाई राजाभासा व्हेगी।40
(2) बिचली पहाड़ी-बिचली पहाड़ी अगूणा (पूर्वी) सपादलख में बोली जावण वाली उपबलोयिां नै खुद में भेल लेवै है। ज्यूं अल्मोड़ौ, पिथौरागढ़, नैनीताल, देहरादून, उत्रकासी, पोड़ी सीनगर, चमोली इत्याद जिलां में ापरा उपबोलीगत भेदां रै रूप में चलण में है। इण बोली रौ लोकसाहित्त जरुर है। ईसाई मिसनरियां इणें बाईबल रौ अनुवाद करियौ। कीं लेखन भी सरु व्हियों ह, जिणरी जलक बुरास (उदयपुर सूं प्रकासित पत्रिका-सं डॉ. जीवन खरकवाल)पत्रिका री रचनावां में मिलै है।
(3) आथूणी पहाड़ी-रौ केन्द्र सिमला है, जिण खेतर में आ बोलिजै, वा उत्तर प्रदेस रा जौनसार बवर सूं लेय'र पंजबा री सिरमौर रियासत सिमली री पहाड़ियां, कुलू, मंडी अर चम्बा री रियासतां री भगा अर कस्मीर रा भद्रबाह केतर तक फैली है।
ग्रियरसन आगै लिखै है 'क' म्हां आ केय सकां हा क हिमालय रा निचला भाग में, अगूण कुमाऊ सू लेयर, आथूण में अफगान सीमा तक चार बोलियां खास रूप सूं मिलै। इणां में बिचली पहाड़ी, आथूण में आथूणी पहाड़ी पछै घणी आगै आथूणी दिस में कस्मीरी अर धुर (उत्तर) में लहदां री विभासावां आपांनै मिलेला। म्हां औ देख चुका हांक आ सब भासावां रौ दरदीय भासावं सूं सम्बन्ध है राजस्थान ्‌र गुजरात री भासां सूं भीइणां सवांरौ घणौ नैड़ों रिस्तो है।
गौरीसंंकर हीरचन्द्रजी ओझा आपरा उदयपुर राज्य रा इतियास में आ जाणकारी दैवे'क नेपाल रा राजवां री मूल पुरु, चित्तौड़ रा रावल समरसिंह रा मो'बी बेटा रतनसिंह रौ छोटो भाी, कुंभकरण मानीजै। कुंभकरण रा वंसज मोके मुजब कुमाऊ रा पहाड़ी प्रदेस में व्हेता थंकां पैली 'पाल्पा' में बसिया, पछै राज बढ़ायौ। प्रिथीनारायण नेपाल रौ सासक बणियौ। 'राजकल्पद्रुम' रीं बंसावली में इणांर वडेरां रौ चित्रकुट सूं आवणौ बतायौ है। वंसावली 'वीर-विनोद' में छापी है।42
प्रो. भवरसिंह सामौर रै मजुब 'गुजरात में जलमी चारम लोकदेवी 'नागबबाई' आपरा जवीन रा अंतिम समै में हिमालच प्रदेस री आड़ी गया। जिणारै सातै एक हरिजन दंपति भी हौ। उठै विणांरी पूजा व्है।43'
हिमालय री विभासावां अर राजस्थानी-ग्रियरसन कैवै है'क हिमालय रा निचला भाग में गंगा रा ं कांठां रै विण पुार अर कीं ओरूं आथूण में पंजाब रै आगैहिलायल री बरबतिया विभासावंा रै साथै-साथै म्हां सपस्ट रूप सूं भासावां रौ एक त्रिगुट समुदाय भी पावां हां। वीचली पहाडी रै सांमी अर आथूणी हिन्दी रै पार अगूणी राजस्थानी है। आथूणी पहाड़ी सां ई अर पंजाबी रै विण पार आथूणी राजस्थानी है। आथूणी पहाड़ी सांमी अर पंजाबी रै विण पार आथूणी राजस्थानी (मारवाड़ी) है। कस्मीरी अर आथूणी लहंदा रै सम्मुख अर विखणादी लहंदा अर सिंधी रै विण पार अर आथूणी राजस्थानी रै दिखण-आथूण (दक्षिण-पश्चिमः में गुजराती रौ खेतर है। इणांरी समानान्तरता सिरफ भौगोलिक ही नींह है। द क आ इणां भासवां री खासियतां में भी लखावै।
इणांमे हरेक भासा आपरी पड़ौसी भासां सूं समानता परगट करै। इण तरै वीचली पहाड़ी आपरी सांमी री अगूणी राजस्थानी सूं विणरा सम्बंधकारक रा अनुसरक को अर साहक क्रिया री धातु 'अछ' नैं अपणावती थकी विणसूं समानता राखै. जद'क सिमला पवतमालावां री आथूणी पहाड़ी रै सम्बंध कारक रौ अनुसरग रौ' आथूणी राजस्थानी री भांत है, अर इणरी एक सहायक क्रया (आ-है) संभावना मुजब विण मूल री है, जिण रूप सूं आथूणी राजस्थानी री सहायक क्रिया है' री उत्पति व्ही। इणरै पछै म्हैं दिखणादी राजस्थानी आड़ी आऊं। अठै सम्बंध कारक रौ अनुसरक 'नो' है। पण इणरी सहायक क्रिया गुजराती सूं न्यारी हओ। इण दीठ सूं आ राजस्थानी सूं मिलै है। इतरौ हीं नीं राजस्थानी-गुजराती हमेस 'लहंदा' री सब विभासावां सूं एक खास महातू बात में समानता परगट करै। आ है उस्म वरणां रा संजोग सूं भविस्यत काल री रचना। इण तरै म्हां औ देखां हांक ठीक हिमालय री तराई रै साथै-साथै सिंधु नदी सूं लेय'र नेपाल तांी तीन समुदाय री विभासलावां मिलै है। इणां में हरेक भासा समुदाय क्रमानसुरा, खास बातां में ेकदूजा रै समान है, अर ठीक इमीं क्रम में इमांरौ सम्बंध गुजराती, अर आथूणी, अगूणी अर दिखणादी राजस्थानी सूं है। लारला पाना में बतायौ हौ'क और कीक व्हियौ। ("वह मारेगा'रै सारू 'लहंदा'" में कुट्टसी' अर गुजारती में 'कुटशे' राजस्थानी में 'कूटसी' वरतीजैला।)44
(10) खानाबदोसी- इणां में भारत अर दूजा देसां में राजस्थानी यायावरी जातियां री बोलियां नैं ली जावणी चावै। इमां में बिणजारा (भारत में) रोमा बंजारा (यूरोप अर दूजा देसां में) रै नाम सूं जांणी जण वाली जात री बोली भी है। प्रो. देव कोठारी रै मजुब बिणजारा कदेई राजस्थान रा मूल रैवासी हा, अर दूर-दूर दिसवारां में जायर बौपार करता हा, पण वगत पाल्टौ खायां ऐ अठी-उठी बसग्या। आजी बी इणांरी बोली रौ मूल ढांचौ राजस्थानी है।45 ग्रियरसन रा सबदां में बिणजारी बोली रौ दूजौ नाम 'लभानी' है। आ पगेल (भ्रमणसील) जात है, अर पूरौ भारत इणरा पगफेरा रौ खेतर है। णिांरौ बीजौ नाम 'लभान' है। बरार, बम्बोई, म्ध्यप्रान्त, पंजब उत्तरप्रदेस, अर मध्यभारत में इणांरी स्वतंत्र बोली है। जिणरौ नाम जातियां रै नामां रै बदलतौ रैवै। इणरौ आधार राजस्थानी रौ आथूणलौ रूप (मारवाड़ी) है। झटै रै रैवै उछटै री बोलियां री छियां भी देखणनै मिलै।46
फ्रांसिसी दार्सनिक अर रोमा बिणजाररा सांस्कृतिक केन्दर् री संचालक अनीसा ब्रांच्की मारबफ रै मुजब 'रोमा' जकौ यूरोप रा देसां में 'जिप्सी' रै नाम सूं जांणीजै, ऐ साचांणी में भारत मूल रा बिणजारा है। रोमा बिणजारा संस्कृति रै भारतीय मूल विसय पर आयोजित व्याख्यानमाला में 14 दिसम्बर 1999 में भूपाल नोबलस् महाविद्यालय उदयपुर रा सभागार में कह्यौ क 'भारत मूल रा ऐ विणजारा 12 सौ वरसा पैलां आथूणी दिस में प्रवास कर गया। पण विणानै भातीय उद्गम री याद आज भी ताजी है। भारत सूं गियां पछै ही विणजारा खुद नैंं 'रोमा' कैवण लागा। जकौ 'राम' रौ सबद रूप है। वरतमान में 'रोमा' यूरोप रा न्यारा-न्यारा देसांरी बस्तीयं मेंएक प्रताड़िंत अल्पसंख्यक जात है। स्पेन नैं छोड़'र किणीं भी देस में रोमाओं नैं विणारी भासा नैं जीवती राकण री समस्या खड़ी है। इण कारण सूं हीं रोमा बंजारा सांस्कृतिक केन्द्र री थापना करीजी है।
वै कह्यौं'क रोमा बिणजारां री मूल भासा राजस्थानी है। इण भासा में सैकड़ा दीठ 60( 60 प्रतिशत) सबद ग्रीस, फ्रेंच अर दूजी यूरोपीय भासावा रा है। व्याकरण आज भी राजस्थानी है।47
डॉ. ब्रजमोहन जावलिया कह्यौ क ड़ा. रघुवीर रोमाओं री भासा रौ कोस त्यार करियौ है, जकौ राजस्थानी रौ ही रूप है। ऐ रूस चेकोस्लोवाकिया, चेचन्या, स्केण्डिनेविया, जरमनी, फ्रांस, स्पेन, अमेरिका अर केई देसां में फैलिया थका है। मुसलमानी आक्रमणं रै कारण इणारा ंवौपारा रा मारग बन्द व्हेगा. इणांरी विस्व-वौपार व्यवस्था रुकगी। वै कह्यौ'क ताजुबेकिस्तान रीा भासा तौ पूरी तरह राजस्थानी है। उठा री बाशा रौ उदाहरण देखौ-"एक राजौ थौ, बींकै दो रामियां थी।" ताजुबेकिस्तान री भासा पर प्रो. गोविन्द सरमा, पारकी कॉलेज, जैपुर, आछौ काम करियौ है। ऐ भासावां धरम-प्रचारकां अर वौपारियां रै साथै दूर-दूर पौचगीं जकौ उठा आपरा आधुनिक रूप में आज भी जीवती है।48 इण दीठ सूं राजस्थानी भासा पर सौध रौ खेतर घणौ व्यापक है।
विणजारी रे 'अलावै' की ओरुं पगेल (जिप्सी-यायावरी) जातियां री बोलियां है। ग्रियरसन कैवै है'क जिका पगेल (जिप्सी) बोलियां रौ वरगीकरण करण में म्हां समर्थ वहै सकिया हां। वै कै तो विख्यात द्रविड कुल री विभासवां है कै वै राजस्थानी कै विणरी साखा गुजराती अर भीली रै रुप में है। दूजी कांनी सगली अवरगीकत पगेल जातियां री (जिप्सी) बोलियां केई भासावां रौ भेल रूप हैं पण विणांरी एक सामान्य खासियत जा है'क विणां सब री मूल आधार भासा द्रविड़ है। इसौ लखावै है'क विणांरा बोलणवाला, राजपूताना अर भील प्रदेश रै भड़ै सबसूं पैलीवार भारतीय आर्य भासावां रै प्रभाव में आया। उठै सूं ही हरेलक भेल-भासा आपरौ मूल रूप कै रूपां नैं ग्रहण करियाा अर ज्यूं-ज्यूं ऐ जातियां भारत भोम में पसरी, विणांरी भासा भी विण जागा री भासा सूं अणंती मिलती गई, जठै वै रैवास करण लागी ही। वे विभासावां जकौ अबै द्रविड़ है, साच में आपरा मूल रूप नैं रुखाल राखियौ है अर विणांमें छिनोकसौ भेल व्हियौ है कै कदेई-कदेई बिलकुल नीं व्हियौ है। पण वै बोलियां जकौ अबै भारतीय भासावां है।विणा ंजातियां रीबोलिया है, जिणांरौ मुख्य निवास केन्द्र बौत समय तक राजपूताना में रह्यौ। ऐ आपरा मूल रैवास री द्रविड़ भासा रौ अबै पूरी तरै त्याग कर दियौ है अर समस्त रूपां में राजस्थान री भासा नैं ही अपणाय ली है।
(1) पिंडारी (पेंढारी)- भारत रा इतिहास रा पिंडारियां री आ बोली नीं तौ किं ही जा री बोली है अर नीं ई किंण री धरम री बोली है। पिंडारी आतताईं धाड़विया रा गिरोह हा। जिणां मे ं बारत रा सब भागां रा गुंड़ा, खूनी, बदमास भेला हा। इणां में अफागन, मराठा, जाट इत्याद सब हा। सन् 1817 ईं में वेहलै रूप सू ला'ट हेस्टिग्सन इणांनै समाप्त कर दिया।
वरतमान जुग में पिण्डारियां रौ प्रतिनिधित्व करण वालां रा समुद्य मध्यभारत, बम्बोई अर दूजी जागावां मेंविखर्या थख हा है। साधारण रूप सूं ऐ ापरै आस-पास री बोलियां नै अपणायली। पण बम्बोई रा कीं हिस्सां में अबार भी बांरी आपरी बोली है। जकौ वांरी जात रै आधार माथै पिंडारी कहीजै। जूं'क आसा की जावै'क आ एक हेल-भेल बोली है। जिंणें दिखणादी हिन्दी, मराठी अर राजस्थानी रो भेल है।
(2) भाम्टी-भाम्टा एक अपराधी जात है। आ मध्यप्रान्त अर भारत रा दूजा भागां में पाई जावै है। इण जात रा लोग पूरी तै पगेल (यायावर) नीं है। ऐ गांवां में रैवै, अर उठै सू ही पास-पड़ौस में चौरी करै है। पण बीजापुर वाला कन्नड़ रौ प्रयगो करै। इणां मांय सूं घणकरा तेलुगु री 'वडरी' विभासा री प्रयोग करै। इणां मांय सूं की मध्यभारत में आपरी खुदरी बोली 'भाम्टी' बोलै। आ हेल-भेल बोली ह। इणमें दिखणादी हिन्दी अर राजस्थानी री ढुंढाडी रौ भेल है।
(3) बेलादारी- बेलदार भूमि खोदण वाली एक मज-ूर कोम है जकौ भारत रा एक बड़ा भाग में भैली थखी है। विणां मांय सूं केई तो आपरे आस-पड़ोस री बोलियां नैं अपणायली। पणम लियां तथ्यां रैमुजब राजपूताना रा जैसलमेर, मध्यप्रान्त अर महाराष्ट्र में बेलादरी नाम री बोली भी मिली है। आ हेल-भेल बोली है। इणमें केई भासावां रौ भेल है। खास रूप सूं आथूणी अर अगूणी राजस्थानी अर मराठी। पण राजस्थानी अर मराठी रौ अनुपात सुभाविक रूप सूं जागा रै साथै बदलतौ रह्यौ है।
(4) ओडकी-ओड़की'रौ 'बेलदारी' सूं निकट संबंध है। आ पगेल (भ्रमणशील) भूमि, खोदण वाली मजूर जात 'ओड' कै 'वड्डर' लोगां री बोली है। ऐ पूरा भारत में मिलै। पण प्रधान रूप सूं पंजाब अर मद्रास इणां रौ खेतर है। मद्रार रा ओड 'तेलुगु' बोलै। पंजाब, सिंध अर गुजरात, उत्तराख्ड में इणांरी आपरी बोली है। इणमें मराठी, राजस्थानी-गुजराती रौ भेल है। जागा मुजब भासा री अनुपात बदलतौ रैवै।
(5) लाड़ी- 'लाड' एक पगेल (यायावरी) जात है। जकौ पान, सुपारी, तंबाखू, भांग इत्याद बैचै है। वै सगला आथूणा भारत खासकर महाराष्ट्र में पाया जावै है। विणं मांय सूं घणकरा लोगां री आपरी कोई बोली नीं है। पण विणां मांय सूं की 'बरार' प्रदेस में रैवै, एक बोली बोलै, जणरौ स्थानीय नाम 'लाडकी' है। जकाौ मूल रूप सूं अगूणी राजस्थानी रौ उपबोली रूप है।
(6) गंवारिया (कंकेरी)- अठै इण बात रौ लेखौ कियौ जा सकै है'क दो औरूं जातियां रा लोगां री बोलियां री परख सूं और सिद्द व्है चूकौ है'क ऐ 'लभानी' (विणजारी) रै समान ही है। ऐ बोलियां है 'कंकेरी' (गंवारिया) अर 'बहुरुपिया' 'कंकेरी' कंधा बणावनण वाली एक जात री बोली है। जकौ दौ सौ वरस पैली अजमेर सूं निकल'र उत्तरप्रदेश रा झांसी जिला में जाय बसिया।
(7) बै'रुपिया-'बैरुपिया' जात रा लोग पंजाब रा, गुजरात रा, गुजरात अर स्यालकोट जिलां में पाया जावै है। विणांरौ कैवणौ है'क राजस्थान ूसं राजा मानसिंघ रै साथै सन 1587 में काबूल विजय री वेला आया हा। आ जात पछै विणां जागावां में बसगी जिणां जागवां में वे आज मिलै है।

ऊपर

(1) सांसी- आ जात घणकारी पंजाब अर राजस्थान में मिलै है। ग्रियरसन रै अलावै इण जात रै सम्बंध में अध्ययन करण वाला डा. ग्राहम बेली केई लेख लिखिया है। सांसी त्रिभासिया व्है। वै आपरे पास-पाडौस री बोली बोलै है। दो ओरूं विभासवां रौ ापस में प्रयोग करें. इणीं मांय सूं एक तो साधारण सांसी है जिणरौ व्यावहार वै आपस में करें। दूजी विणांरी गुपत भासा है। पंजाब में इमांरी बोली में हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी रौ भेल है। इणांरी गुपत बोली प्रचलसित भासा सूं सिरफ गुपत सबदां रा प्रयोगों में ही भिन्न है। किणीं दूजा व्यक्ति सारू भासा नैं पूरी दरबोद बणाय देवै।
(2)गारोड़ी-महाराष्ट्र प्रान्त रा बेलगवां जिला री एक पगेल (भ्रमणशील) मदारी जात है। वै मुसलमान कहीजै पण विणांरौ धरम विणां माथै कम ही घटित व्है। विणांरी गुपतभासा द्रविड़ अर भारतीय आर्य भासा रौ भेल है, जिणें पची बासा रौ प्रतिनिधितव् कदेई हिन्दी, कदेई राजस्थानी, कदेई मराठी रा रूपां सूं करीजै। साथै ही इसा छम्वेसी सबद है, जिणांरौ अरथ दूजा सारू दूरबोध व्है जावै।
(3) म्यानावाला-म्यानवाला जात रा लोग भी बेलगांव जिला में ही रैवै।50 इणारै विसय में कम जाण ही मिल ही है। पण इसी लखवा हैटक वै एक पगेल (यायावर) ल'वार जात रा है। विणांरी गुपत भासा हिन्दी, गुजारती, राजस्थानी माथै आधारि है। कठेई-कठेई द्रविड़ सबद भी मिलै है।51
(4) कंजरी- कंजर एक पगेल जात है। विणां मांय सूं केई निस्चित ठांणौ बणाय'र रैवणलागा है। पण इणां माय सूं घणकरा लोग जंल में रैवास करै। उठै मिणवाली वस्तुआं सूं ही आपरौ जीवन चलावै । वै चटायां, टोकरियां, पंखियां, पत्त्‌ां री छाबड़ियां अर इणीं तरै री ओरूं दस्तकारी री चिजां त्यार करै है। खस (जिंणसूं गरिमयां में टाट बणै है।) एकठौ करमौ इणांरौ खास धन्धो है। आटौ पीसण री घट्टियां बणावै। इमांरी बोली 'कंजरी' बोली भेल रूप में है जकौ प्रधान रूप सूं अगूणी राजस्थानी अर जिंण माथै द्रविड़ भासा री छिंया है। इणमें भी छद्म सबद है।52
(5) नटी-नट एक इसी जात है जकौ कलाबाजी, निरत कर'र आपरौ जीवण चलावै। नट लोग बड़ी संख्या में पूरु धुराऊ (उत्तरी) भारत में मिलै. बिहार अर उत्तर प्रदेस में दूजी यायावर जातां री भांत इणांरी आपरी गुपत बोली है। सम्बवतः दूजी जागा भी आ ही बात है। आ हिन्दी अर राजस्थानी रौ भले रूप है अर साधरण रुप सूं इणमें गुपत सबद पजती संख्या में मिलैहै। ग्रियरसन इणरौ आधार 'राजस्थानी' मानै।53
(6) डोम- आ जात घुराऊ (उत्तर) भारत में मिलै। इणां लोगां री गुपत भासा भोजपुरी, राजस्थानी अर हिन्दी पर आधारित है।54
(7) सिकलगीरी- सिकलगीरी गुपत बोली है। सिकलीगर जात घणकरी राजस्थान में मिलै। पण 'सिकलीगरी' बोली रौ एकमात्र ठांणौ महाराष्ट्र प्रान्त रौ बेलगांव जिलौ है। इणांरी गुप्त बोली राजस्थानी री भीली अर गुजाराती पर आधारित है।55

ऊपर

(1) सांस्कृतिक- हरेक मिनखां रा संस्कारां रा परतख रूप में विणरी संस्कृति झलकै जकौ विभिन्न रूपां में व्है। जिणें विणरी आपरी भासा व्है। वो कठै भी जावै आपरा जलम, परण, मरम अर दूजा संस्कारां अर पैरावौ, रैणी-सैणी, निरत-उच्छब, आस्था-विस्वास सबमें रची बसी व्है। जिणरी चरचा लारै करीजी-जिणें पाकिस्तान, नेपाल उतरादो अर दिखणादौ भारत, यूरोप रा अर दूजा देसां में फैलिया थका राजस्थानियां रौ जीवण है। सांस्क्रतिक कारणां सूं ही हवै आपरा जीवन में आपरी बासा में स्थानीय खासियतां नै पचावतां थका ंजीवती राखी।
(2) राजनीतिक- राजस्तान रा लोट टैम-टैम माथै राजनीतिक कारणां सूं भी बारै गया। जिणां में भील, गुजर, राजपूत सब जातियां रा लोग है। राजस्थान में सत्ता रा केन्द्र भीलां रै हाथ सूं राजपूती प्रसार रै कारण सिरकगा तद ऐ लोग पहाड़ खेतर में गया परा. जकसौ आज राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेस, महाराष्ट्र में फैलिया थका है। इण ही तरै गुजर अठै सूं बिखरिया, न्यारी-न्यारी जगा गया। जिणरौ सत्यापन भासा विग्यानिकां अर तििहासकारां करियौ। विणांरी बोली 'गुजरी' 'भीली' आज भी उठै जीवती है।
इण ही तरै राजपूत भी समय-समय में गया, जिणां में खासकर गुहिलवंशी हौ। जिणरी गौरीसंकर हीराचन्द औझा 'उदयपुर राज्य रा इतिहास, भाग-2' में चरचा करी है। नेपाल राजवंस री मूल पुरुस गुहिलवंशी हौ, इणरी चरचा लारै करीजी है। ओजाजी लिखै-महाराष्ट्र से भोसलै अर घोरपड़ै राजवंसां रा मूल पुरु, भी गुहिलवंसी ही है। गुहिल दिखणाद में कोल्हापरु अर सावन्तवाड़ी ने कबजै करी। मध्यप्रदेस रौ गुहिलवंसी रा्‌य नागपुर है। ऐ दिखणावद रा तंजावर (तंजौर) विजियानगरम् नैं भी आपरा अधिकार में लियौ। गुजरात रा काठियावाड़, राजपीपला, धरमपुर में गुहिववंसी राज हौ। इणीं तरै अलिराजपुर (मध्यभारत) बड़वानी, रामपुर अर महाराष्ट्र रौ मुघौल इत्याद में गुहिलां रौ राज रह्यौ। ओझाणी इणानै तििहासिक प्रमाणां सूं सिद्ध करिया है। जिणरी विगत लांबी है। ऐ उठै गया सासक बणियसा तौ संस्कारां में भासा नैं साथै लेगा जकौ उठै घुलगी, जिणनैं भारत अर विस्व रा भासा विग्यानिकां सिद्ध करी है।
(3) व्यापारिक- राजस्थान सूं वौपार रा कारण सूं जावण वालां में पगेल (यायावारी) जातियां तौ है ही, जकौ पूरा भारत अर विदेसां में फैलगी। जिणरी चरचा खानाबदोसी बोलियां में करीजी। पण राजस्थान सूं पुूरा भारत में लोग समै-समै पर जातवा रह्या जो क्रम ाज भी जारी ह। जिणां में केई लोग कीं टैम तांी जावै। जिणां में पसुपाल आपरा पसवुां नै काल बरस में मालवै ले जावै. काल बरस में लोग गुजरता अर दूजा राज्य.ां में रोजी सारू जावै। दूजी तरै रा वे लोग है जकौ पीढ़िया सूं उठै जमगा। ऐ बारत रा खास वौपारी म्हैरां फैलगा, पूरा भारत में देखणनैं मिल। ऐ प्रावसी राजस्थानी वौपारी भारत नै सांस्कृतिक एकता रा सूत्र में बांधण री सफल कौसिस करी। ऐ एक राष्ट्री व्यापार री रचना करी। राजस्थान केई राष्ट्री नेता दिया, जिणां में राममनोहर लोहियाजी प्रमुख है। गांधी रा अभियानां में रास्थआनी वौपारियां रै योगदान नै भुलायौ नी जा सकै। हाथ रौ काम करण वालीजातियां भारत भर में भैलगी। बिणजारां (जिप्सी-रोमाओं) रौ विस्व रा देसां में फैलाप इणीं तथा रौ द्योतक है। पण विणांरी भासा राजस्थानी विणआंरा संस्कारां में अर जीवन सूं जुड़ी थकी आज भी जीतती है। राजस्थान री भौगोलिक स्थिति रै कारण अठै रा मानखी रौ जीवन दौरौ घणौ है। इण कारण अठै रा लोग साहसी व्हिया करै। इण गुण रै कारण ही अठै सूं जाय'र अबखा इलाका में अणजांण लोगां रै बिचै साख जमावण में कामयाब व्है सकिया।
(4) धारमिक- धारमिक कारण सूं भी भासा इणरौ सबसूं बड़ौ माध्यम राजस्थान रा लोक देवता, लोक-देवियां, अर संत है। बाबा रामदेव- रौ रामदेवरौ जसेलमेर में है। पण राजस्थान अर पूरा उत्तरादा भारत अर ठेड दिकाणादा भारत में राज्यां सूं आवण वाला लाखों भगत घणी-घणी खमभा ओ कंवर अजमाला रा' भजन माथै तालिया बजावता अर लैरावता निजर आवै है। बाबा रा भजन अर कथावां सब राजस्थानी में है। हिन्दू 'बाबा रामदेव' अर मुसलमान 'राम सा पीर' रै नामसूं पूजै। गगोजी रौ खास थान 'गोगोमेड़ी' है। जठै राजस्थान, पंजबा, हरियाणा रा हिन्दू, मुसलमान, सिख सब आवै। गातोड़जी, गोगापीर, केसरिया, कंवरजी रै नाम सूं भी मांनीजै। गोगोजी री गाथा 'राजस्थानी भासा में है।' तेजाजी-तेजाजी रो खास थान नागौर है। पण राजस्थान मध्यप्रदेस, हरियाणा, हिल्ली अर आथूणा उत्तर प्रदेस में फैलिया थका जाटों रा ऐ कुलदेवता है। इणांरी गाथा राजस्थानी में है जकौ ण पूरा खेतर में गाईजै। देवनारायण बंगड़ावत-गुजरां रा कुलदेवता है। राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेस, कस्मीर, उत्तराखण्ड, नेपाल, उत्तरप्रदेस, तमिलनाडु तक में देवनारायण बगड़ावगत गाथा इणारै बीच में चलण में है। जकौ राजस्थानी में है। आं लोक देवतावां नैं सब जातियां मानै।
राजस्थानी लोक देवियां- इणां में हिंगलाज देवी, बांकलदेवी, आवड़देवी, खोडियाल, अम्बादेवी, बरवड़ीदेवी, कामेहीदेवी, गीगायदेवी, राजलदेवी, चंदूदेवी इत्याद केई लोग देविया जकौ कीं तो हिंगराज रा पूरम अवतरा है अर कीं आंसिक अवतार मांनीजै। इणां देवियां रा मूल नाम रै अलावै स्थान सूचक, घटनासूचक, व्यक्तिसूचक नाम भी है। इण कारण इमांरौ आश्था खेतर पाकिस्तान रौ सिंघ, बिलोचिस्तान, पंजाब, राजस्था,न गुजरात, मध्यप्रदेस, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेस, उत्तरप्रदेस अर भारत रा न्यारा-न्यारा हिस्सां में है। इणां देवियां रौ साहित्य राजस्थानी में ही है। जकौ इणां पूरा खेतरां में इणारां आस्थिकां में चलण में है। ऐ देवियां बड़ी ऐतिहासिक भूमिकावां भी निभाी। आवड़देवी हाकड़ा नदी री दिसा मोड़ दी। राजलदेवी अकबर रा आगरा में आयोजित 'मीनाबाजार' (नौराज) नैं तहस-नहस कर दियौ। एक वार अकबर नैं इण प्रथा नैं बन्द करण सारू मजबूर व्हेणौ पड़ियौ। एक दूवौ-
आवड़ तूठी भाटियां, गीगाई गौड़ांह।
स्री बरवड़ सिसोयदिया, करणी राठोड़ांह।।1।।
ऐ देवियां इणां ाजवंसां री थापना में कितरी सहायक रह्याी, इणां राजवंसा री इणारे प्रति आस्था अर विस्वास अर इतियआस सूं लखावै। वरतमान रा राजैनितक इतियास में ऐ पख कम आया है। राजस्थान रौ सांस्क्रतिक तिियास इमांरैं अध्यनयन बिना लिकी जणौ संभव नीां। ऐ देवियां केी जातियां री कुल देवियां है। हंगलाज नै मुसलमान 'लाल चोगै वाली बाई' रै ना सूं पूजै अर उठै री ातरा नैं नानी रौ हज कैवै। पाकिस्तान में हिंगलाज रा पूंजारी भी मुसलमान है।56
संत समप्रदायां रौ साहित्य भी राजस्थानी में है। जिणां में, नाथ सम्प्रदाय, विश्नोई सम्प्रदाय, निकलंकी सम्प्रदाय, जसनाथी सम्प्रदाय, दादूपंथी सम्प्रदाय, रामस्नेही समप्रदाय, निरंजनी सम्प्रदाय, अलखिया सम्प्रदाय, गूदड़पंथ, आईपंथ, लालदासी सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय त्यिाद सम्प्रदायां रौ पूरौ साहित राजस्थआनी बासा में है अर बड़ी मात्रा है, जकौ बौत बड़ी संख्या में जनआस्था व्यक्त करण रौ माध्यम है।
जै संतां रौ योगदान भी अतुलनीय है। जकौ आपरा लेखन अरप प्रवचन री भासा रास्थानी राखी, जकौ बड़ा परिणाम में है। जकौ बारत भर में जैन उपासरां, सौध-संस्थानां, अर लोककंठ में संचियोड़ो है। जैन साहित्य री दारा लोकभासा प्राकृत, अपभ्रंस सूं व्हेती थकी राजस्थानी में आई जको लगोलग जारी है। राजस्थानी साहित रा आदिकाल में जैन-संतां रौ सिरजियौ थकौ साहित ही खास हैं।
इण दीठ सूं राजस्थानी भासा जकौ विस्व रा बौत बड़ा भू-भाग अर विसाल जन-समहू री भासा है। जकौ आपरां बोली अर उपबोली रा भेदां रै रूप में चलण में है। जिणनैं संस्क्रताचारर्य पं. उमसंकर सुक्ल इण तरै समझावै है। "संस्कृति ध्वनी सिद्धांत रै मुजब एक वरम 18 तरै सूं उच्चारित व्है। संस्कृत रा इण सूत्रमें ही राजस्थानी री न्यारी-न्यारी बोलियां रा उच्चारण भेद नैं समझणौ चावै। एक वरण आपार मूल रूप में बासा नैं व्यक्त करकै विणरौ ही न्यारा-न्यारा खेतरां में उच्चारण भेद व्है है। जकौ बोली, उपलोबी रौ रूप व्है। राजस्थानी भासा री भारत अर विस्व में फैली बोलियां रौ आधार औ ही है। इणां बोलियां में निस्चित तौर सूं एक भासाई तत्व है।57"
डॉ. सोनाराम बिश्नोई इणनै इण तरै समझावै 'हिन्दी में करता कारक री विभ्कति रौ चिन्ह 'नेे'' है। जत'क राजस्थानी में 'नै' करम कारण की विभक्ति रौ चिन्है है। हिन्दी में करम कारक री विभक्ति रौ चिन्ह 'को' औ आख देस जांणै। जांणण वालां नैं तो कैवण री दरकार कोनी अर जांण कर'र अणजांण बणणवालां नैं कैवण री कांई अरथ ? सम्बंध कारक री विभक्ति रौ चिन्ह हीन्दी में-का, की, के, को, हें जद'क राजस्थानी में रा, री, रै, रौ। तणा, तणी, तणै,तणौ। हंदा, हंदी, हंदै, हंदौ। केरा, केरी, केरै, केरौ। चा, ची,चे, चौ। ना, नी, ने, नूं (नो) इत्याद है।
ऐ सगला उदाहरण राजस्थानी गद्य ्‌र पद्य साहित्य में देख्या जा सकै ौर तौ और फगत एक बाकीदास ग्रंथावली में सगला मिल जावै। जै गद्य में देखण ीचावौ तौ मुंहता नैणसी री ख्यात में जथाजोग सगलां रौ लेखो मिलै।58
दुनिया री इतरी सबली बासा पर सवाल उठावणियां ने हिन्दी रा मांनीत आलोचक प्रो. नामवरसिंह रा विचारां सूं सीख लेवण चावै। "इण लोकतंत्र में जठै एक भारत रै भीतर औ सही है क अलेखूं बासावांहै अर हर भासा री आपरी संस्कृति है। इणीं राजस्थान में म्हैं जगत पौसालां (विश्वविद्यालय) में राजस्तानी नैं जागा दिरावण खातर कौसीस करी ही। म्हनै खुसी है'क जोदपुर जगतपौसाल (वि.वि.) जागा दीवी। विणरै पछै बाकी जगतपौसलां जागा दीव। इण सारू लोग कैवता हा'क राजस्थानी रै बढ़ण सूं हिन्दी रौ अहित व्हेला। म्हैं कह्यौ जका राजस्थानी हिन्दी नैं उत्पन्न करी, आदिकाल उठै सूं ही सरू व्है। वा इहन्दी री विरोध कीकर व्है सकै ? इण सारू जतिरी बोलिया ंहै, जितरी भासावां है, सतदल कमल रै समान है। रविन्द्रनाथ टैोगोर कह्यो ए भारते-महामानवे सागर तीरे औ महासगार है मिनखां रौ जटै अलेखूं भासांवां, अलेखूं धरम, अलेखूं, संस्कृतियां अर विणआंरै बिचै एक भाईचारौ, आपसी समझ सबरौ, जथोचित सम्मान। म्हैं फेर कहूंला क सहिष्णुता सबद सूं घमी महताऊ है, दूजा रौ मान करणौ।59"
तलटीपां-
1. प्रो. दीप कठोरा-राजस्थाना साहित्य (अणछपरीं सोध प्रबंध) पानापूठॉक 16
2 सिवकुमार स्रीवास्तव- राजस्तान ग्यान कोस- पानापूठॉक 137
3 डॉ. एल. पी. टेसीटोरी- पुरामी राजस्थानी (उल्थौ-नामवर सिंघ) पानापूठॉक 3-4
4 चन्द्रधर सरमा गुलेरी- पुराणी हिन्दी, नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग-2 पानापूठॉक 243-44
5 स्यामसुन्दरदास- हिन्दी भासा, पानापूठॉक 15
6 उदैनारायण तिवारी- हिन्दी रौ उद्भव अर विकास, पानापूठॉक-178
7 जनारदनराय नागर-हिन्दी री प्रादेसिक भासावां, पानापूठॉक-9
8 जार्य ग्रियरसन- लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्यिया भाग-1
9. ठा. रामसिंह सूरजकरम पारीक-संपादक-वेलि किसन रूकमणी री भूमिका पानापूठॉक 8
10. प्रो. देव कोठोरी- राजस्थानी साहित्त (1650 सूं 1750) अणं छपियौ सोध प्रबंध, पानापूठॉक-31
11. कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंसी- अखिल भारतीय हिन्दी सम्मेलन रा 33 वां अधिवेसन, उदयपुर रौ वीवरौ, पानापूठॉक 9
12. डॉ. मोतीला मेनारिया- राज्सथानी भासा अर साहित्य पानापूठॉक-5
13. ड़ॉ. सुनीतिकुमार चाटुरज्या-राजस्थानी बासा, पानापूठॉक-5
14. नरसिंह राव भोलानाथ, दिवेटिया- गुजराती बासा अर साहित्य पानापूठॉक-14
15. धनपतराय रावल गुजराती साहित्य भाग-1 पानापूठॉक-5
16. डा. गोरदन सरमा-प्राक्रत अर अपभ्रंस रौ डिंगल साहित्त पर प्रभाव पानापूठॉक-133
17. प्रो. देव कोठारी- राजस्थानी साहित्त (1650-1750) अणछपियौ सोध प्रबन्ध, पानापूठॉक-30
18. औ'ही राजस्थानी साहित्त (1650-1750) अणछपियौ सोध प्रबन्ध पानापूठॉक-31
19. प्रो. नामवरसिंघ-हिन्दी रा विकास में अपभ्रंस रौ योग, पानापूठॉक-31
20. प्रो. सुनीतिकुार चाटुरज्या-औरिजिन एण्ड डवलपमेन्ट ऑफ बंगाली लेंग्वेज भाग-प्रथम पानापूठॉक-91
21. माणक- 8 जनवरी, 1994, पानापूठॉक-18
22. माणक जनवरी, 1994 पानापूठॉक-18
23. माणक जनवरी 1994 पानापूठॉक-19
24. भारत का भासा सरवेक्सण- जॉर्ज ग्रियरसन (उल्थौ-उदैनारयाण तिवारी) पानापूठॉक-217-18
25. प्रो. सुनितीकुमार चाटुरज्या-राजस्तानी भासा पानापूठॉक9
26. प्रो. देव. कोठारी-राजस्थानी साहित्त (1650-1750) अणछपियाँ सौध प्रबंध, पानापूठॉक-16
27. डॉ. सक्तिकुमार सरमा सूं व्यक्तिग्त चरचा - ठांणौ-साहित्त संस्थान उदैपुर, 20.6.2000
28. जार्ज ग्रियरसन-भारत रौ भासा सरवेक्सण (उल्थौ-उदैनारायण तिवारी)
29. जार्ज ग्रियरसन-भारत रौ बासा सरवेक्सण (उल्थौ-उदैनारायम तिवारी)
30. योगराज थानी-हरियाणा , पानापूठॉक-47
31. योगराज थानी-हरियाणा, पानापूठॉक-47
32. सौभालाल पाठक-भीललों रै बीचै बीस बरस-पानापूठॉक-28
33. जोदसिंह मेहता-आदिनिवास भील- पानापूठॉक-112
34. लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्यिया- ग्रियरसन भाग-1, खण्ड-1 पानापूठॉक-329
35. चाटुर्ज्या- राजस्थानी भासा पानापूठॉक-9
36. प्रो. देव कोठारी- राजस्थानी साहित्त (1650-1750), अणछफियौ सोध प्रबंध।
37. डॉ. खरकवाल 7 जून 2000 नैं साहित्य संस्थान, उदैपुर में दिया भासण सूं।
38. प्रो. भूपतिराम साकरिया-राजस्थानि व्‌सिव री सब सूं सबली भासा- सं. डॉ. सुखवीर सिंह गहलोत पानापूठॉक-32
39. ग्रियरसन- भारतीय भासा सरवेक्सण-उल्थौ-उदैनारायम तिवारी पानापूठॉक 335-41
40. धीरेन्द्र वर्मा हिन्दी साहित्त कोस- नेपाली भासा अर साहित्त, पानापूठॉक-460
41. ग्रियरसन- भारत रौ बासा सरवेक्सण-उल्थौ- उदैनारायण तिवारी
42. ओझा- उदैपुर राजय रौ इतिहास भाग-2
43. प्रो. भंवरसिंह सामोर लोक पूज्य देवियां।
44. ग्रियरसन भारत रौ भासा सरवेक्सण उल्थौ उदैनारायण तिवारी।
45. प्रो. देव कोठारी राजस्थानी साहित्य छपियौ सोध प्रबंध
़46. ग्रियरसन भारत रौ भासा सरवेक्सण उल्थौ उदैनारायण तिवारी।
47. अनीसा ब्रांच्की मारभफ रा भासण सूं 14 दिसम्बर, 1999 बी. एल कॉलेज, उदैपुर।
48. डॉ. ब्रजमोहन जावालिया रा भासण सूं- 30 जून 2000,साहित्त संस्थान राजस्थान विद्यापीठ, उदैपुर।
49. ग्रियरसन भारत रौ भासा सरवेक्सण उल्थौ उदैनारायण तिवारी।
50. ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-350
51. ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-350
52. ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-351
53ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-351
54. ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-352
55. ग्रियरसन- भारत रौ भासा सरवेक्सण- उल्थौ-उदैनारायण तिवारी, पानापूर्ठाक-352
56. प्रो. भंवरसिंह सामौर- लोक पूज्य देवियां किसाब सूं।
57. पं. उमाशंकर सुकल- 30 जून, 2000 रा. साहित्त संस्था,न राजस्थान विद्यापीठ उदैपुर रा भासण सूं्‌।
58. डॉ. सोनाराम विस्नोई- राजस्थानी बासा अर साहित्त, सांगोपांग जांणाकारी राष्ट्री ग्यानगोठ सूं. 3 मार्च, जोधपुर, स्मारिका पानापूर्ठाक-31
59. प्रो. नामवरसिंह सम्परक-23, राजस्थान साहित्त अकादमी, उदैपुर, पानापूर्ठांक-14-15

ऊपर

भासा समाज री पैली आवश्यकत है, अम मिनख रै विकास रौ मैताऊ साधन भी। मिनख रा भौतिक अर सांस्क्रतिक वदापा रै साथै सातै बासा रौ वदापौ व्है। समाज री उन्नति अर विणरी न्यारी-न्यारी प्रव्रतियां में लगोलग कोसीस करतौ मांनखौ आपरी जरुर मुजब जांण-अणजांण में भी भासा नैं नवा-नवा रुप देवतौ रैवै। इणसूं भासा रा केई रूप बणता अर बिगड़ता रैवै, पण मिटणवाली भासावां रौ प्रभाव नवी भासावां माथै किंण'र किंण रूप में जरुर बणियौ रैवै। क्यूं'क नवीं भासावां जूनी भासावां री कूख सूं ही उपजै। जद'क दूजी भासावां रा प्रभाव सूं भी वै अछूती नीं रैय सकै। भासवां रौ औ विकासक्रम खुद मानव जात रा सामाजिक तिियास सूं पूरी तरै जुड़ियाड़ौ लगोलग चालतौ रैवै। कुणसी भासा कतिरी सबली अर महान है औ विण भासा रौ यै साहित्त ही प्रमाणित कर सकै। साहित्त री रचना सबदां री मारफत पूरी व्है। मतलब किंणी भासा रौ सबद भण्डार ही विणरी अभिव्यक्ति री खिमताई रौ परमाण है।

राजस्थानी भासा रा सबदकोसां री रीत माथै न्यारी-न्यारी दीठांं सूं विचार करती दांण उणरा सबद भण्डार री कांनी ध्यन जावणौ सुभाविक है। सबद भण्डर पर सबद कोसां री मारफत विचार करण में सुविधा रैवै। विणमें हर तरै रा कोसां रौ आपरौ मैतव व्हेवै। आधुनिक प्रमाणिक कोसां रै उपलब्ध व्हेतां थकां भी संस्क्रत रौ कोई पढेसर 'अमरकोस' री अणदेखी नीं कर सके। इण सारू जूना राजस्थानी भासा रा कोसां रो भौ आपरौ मैतव है।
दूजी भासवां रा जूना कोसां री तरै ऐ कोस भी छंदोबद्ध है। जूना वगत में जद छापखाना री सुविधा नीं ही ग्यान पावणौ, विणनै समै पर प्रयोग में लावणौं अर आवणवाली पीढ़ी नैं विणसूं लाभ दिरावणौ, एक घणी मोटी समस्या ही। हाथलिखि पोथियां रौ प्रयोग जरूर व्हेतौ हौ, पण व्यवहार में याददसात् रौ भी घणौ स्हारौ लेवणौ पड़तौ। लय अर तुकान्त भासा में कह्योड़ी बाद याद्दास्त में आपरी जागा सो'री बणावै। इण सारू घमआ जून वगत में समाज री धारमिक, राजनैतिक, अर सांस्क्रतिक मान्यतावां भी छंदां रौ स्हारौ लेवती लखावै। साहित्त रा आचार्य भी आपरा मतां रौ प्रगटराव छन्दां रै स्हारै ही करणौ उचित समझियौ। जिणरै फलसरूप छंदोबद्ध रूप में केई रीती ग्रंथां अर कोसां रौ निरमाण व्हियौ। ऐ कोस विण वगत रा समजार अर साहित्त में जिण रूप में मैताऊ हा, ठीक वइणी रूप में आज नीं है। पण आधुनिक ढंग रा कोसा सूं जटैक सिरफ सबदां रौ अरथ ही समझ में आवै। ऐ कोसा दूजा केई मैताऊ तथ्यां री जांण ई करावै। इणां कोसां में विण वगत री सामाजिक, धारमिक, राजनीतिक अर साहित्तिक प्रवन्रतियां सूं जुड्‌या केई मैताऊ संकेत है। जिणांरी ारफत केई मैताऊ निरणै तांई पौचण में स्हारौ मिलै।

इण तरै रा कोसां रै बणावण री रीत, विम वगत री खास जरुरतां री तरफ भी संकेत करै। विम समाजू व्यवस्था में इणां कोसां रौ मैतवा पाठक री बजाय कवी रै सारू घमौ हौ। राजस्थान में केई मौलिक सूझबूझ वाला अर प्रतिभा सम्पन्न करवी व्हिया। कविता नैं अणूंती कोसीस नवाली अर अभ्यास री चीज बणावण सारू कवित ाबणावण सूं जुड़ी जुरुरी चीजां नैं याददास्त में हरेक टैम बणायां राखणौ अर विणां माथै अधिकार राखणौ जरुरी व्हेवै है। ौ उद्देस खासौ भलौ णिां कोसां सूं पूरौ रहेतौ हौ। क्यूं'क सबदां रै साथै-साथै छंद रचना रा नेम अर दाखला तक केई कोसां में है। मेह, बगीचा, तलाव, जलरमणी, इत्याद वरणावां सारू वै तै सबदां री सूची तक बणाय'र इण तरै रा कवी-करम नै निभाव में पूरी सहायता करता हा। समाजू बदलवां रै साथै जद कवी री दीठ अर वइणरी साहित्त री मानतावां बदली तौ साहित्त रा न्यारा-न्यारा अंगां रै साथै-साथै इणां कोसां री उपयोगिता रा प्रकार में भी फरक आयौ। आज वै कवी रै सारू जितरा उपयोगी नीं पढेसरां सारु घणा है।
किणीं भासा रौ कोस विण भासा री साहित्त-रचना रै पछै बणै। जद किंणी भासा रौ साहित्त खासौ उन्नत अर सम्रसिद्ध व्है जावै। तद कोस अर रीती ग्रंथां री तरफ आचार्यां रौ ध्यान खांचीजै। मतलब आछी संख्यां में राजस्थानी रा इतरा सम्रिद्ध कोसां री उपलब्धि इण भासा री सबलाई री भी सूचकी है। इतरौ भी नीं इणां कोसां में विण वगत रा राजस्थानी साहित्त री न्यारी-न्यारी साहित्तिक धारावां रा संकेत ई मिलै।

जूना राजस्थानी साहित्त में आपरी समाजू पूठ भो म रै मुजब वीर, सिणगार, भगत,ि अर सांत र रस री धारवां रैयी ह। इणां रसां नैं परगट करण वाली सबल सबदलावली नै लगैटगै इणां सब कोसां में खास जागा मिली है।

भासा-विग्यानी री दीठ सूं इणां कोसां रौ मैतव असाधरण है। किंणी भासा रा विकास-क्रम नैं समझण सारू विण भासा रा बौत बड़ा सबद समुह माथै केई दीठां सूं विचार करणौ जरूरी व्है जावै। केई बातां री जांण तौ भासा रौ व्याकरण ई करया देवै। पण सबदां रा रूप में कद अर कीकर बदलवा व्हियौ। इणरी जांण कर ण सारू समै-समै माथै व्हेण वाला सबदां रा रूप भेद पूरी जांच करणी व्है। तद ई सबदां रा रूप-बदलाव में वरतीजण वाला नेम-कायदा भी स्याफ व्है। मतलब विग्यानिक ढंग सूं राजस्थानी भासा रा विकास नैं समझण सारू ऐ कोस एक प्रमाणिक सामग्री रौ काम दे सकै। इणरै अलावै राजस्थानी में वरतईजण वाला दूजी भासवा रा सबदां री जागा भी इणांसूं सैज ई स्याफ व्है जावै।
वरणाऊ क्रम री दीठ सूं राजस्थानी रा आधुनिक सबदकोस त्यार करण में इणां कोसां सूं मिलण वाली सहायता घणी मताऊ है। राजस्थानी रा खास-खास सबद आपरा मौलिक अर बदलियोड़ा रूप में एक ई जागां पर उपलब्ध व्है जावै। केई सबदां रा समै-समै माथै व्हेण वाला, रूप भेद तक रौ अंदजौ इणां री मारफत मिल जावै। इतरौ ई'नीं मया अरथ भेद बतावण में समान सबदां पर भी इणां कोसां रै आधार माथै विचार करीज सकै। णिां कोसां रा सब रचेता आपरी टैम रा नांी गुणीसर अर कवी हा।

कोस व्याकरण- सास्त्र री ईं भांत भासा-सास्त्री रौ एक मैताऊ अंक है। व्याकरण सिरफ यौगिक सबदां री सिद्धि करै, पण रूढ़ अर योगरूढ़ सबदां रै सारू तौ कोस रौ ई आसरौ लेवणौ पड़ै।
वैदिक काल सूं ई कोस रौ ग्यान अर मैतव अंगेजीजियौ है। औ निघण्टु कोस ूं जांण व्है। वेद रा निरुकत कार यास्क मुनि रै सांी निघण्चटु रा पांच स्‌ंग्रै हा। इणां मांय सूं पैली तीन जिल्दां में एक अरथवाला न्यारा-न्यारा सबदां रौ संग्रै ही। चौथा में कठिन सबद अर पांचवा में वेद रा न्यारा-न्यारा देवतावां रौ वरगीकरण हौ। निघण्‌ुटकोस पछै बणणवाला लौकिक सदकोसां सूं न्यारौ सो लखावै। निघण्टु में खास रूप सूं वेद इत्याद संहिता ग्रंथां रा अबखा अरथां नैं समझावण री कोसीस करीजी है। मतलब निघण्टुकोस वैदिक ग्रंथां रा विसै री चरचा सूं जुड़ियौ है। जद'क लौकिक कोस न्यारा-न्यारा वांगमय रा सब विसयां रा नांम अव्यय अर लिंग रौ बोध करावता थका सबदां रा अरतां नै समझावण वाला सबदां रौ है।
निघण्टुकोस रै बाद यास्क रा निरुक्त में कास सबदां रौ संग्र है। अण विणरै पछै पाणिरी री अष्टाध्यायी में यौगिक सबदां रौ बड़ौ समुह कोस री सम्रिद्धि रौ वदपौ करतौ थकौ जांण पड़ै।

पाणिनी रै समै तक रा सस ब कोस-ग्रंथ गद्य मेंमिले पण पछै रा लौकिक कोसां री अनुष्टुप, आर्या इत्याद छंदां में पद्यमय रचनावां मिलै। कोसां में खास कर'र दो रीतां देखण में आवै। पैली एकारथक कोस अर दूजी अनेकारथक कोस। पैलो प्रकार एक अरथ रा अलेेखूं सबदां रौ सूचन करै।

जूना कोसां में कात्यायण री नाममाला वाचस्तपति रौ सबदारणव, विक्रमादित्य रौ संसारावरत, व्याड़ि रौ उत्पलिनी भागुरी री त्रिकाण्ड धन्वन्तरी री निघण्यु इत्याद रा नांम चावा है। इणां मांय सूं केई कोस नीं मिलै।

मिलयमाला कोसां में अमरसिंघ रा 'अमरकोस' नै आछी ख्याति मिली। इणरै पछै आचर्या हेमचंद इत्याद रा कोसां रौ ठीका-ठीक प्रचार व्हियौ। ऐड़ौ काव्यग्रंथां री टीकावां सूम समझ में आवै।

राजस्थानी भासा रा सबदां रौ पैलौ कौस जिणनै मांन सकां वो है पाइयलच्छननाममाला है। 'पाइयल्छीनाममाला' रा रचेता रौ खेतर रास्थान है। ऐ आपरी वगत री लोक वाणी जकौ इणांरा खेतर रौ बोलचाल में ही, जिणरा सबद पूरा खेतर रा लोगां रा जीवन सूं जुड़िया थका हा, वइणानै संग्रै करण रौ सिरै कांम करियौ। लोक वांणी नैं प्राक्रक भी कैवै। अबार री राजस्थानी भासा रा पैली वाला बड़ा खेतर री लोकवाणी जूनी राजस्थानी अबार रा भासाई विचार सूं कहीजैला।
(1) 'पाइयलच्छीनाममाला' रा रचणहार पं. धनपाल जैन ग्रस्थी गुणीसरां में आगीवाण हा। ऐ आपरी छोटी बैन सु्‌नदरी रै सारू इण कोस-ग्रथ री रचना वि. सं. 1029 (ई.स. 972) में करी। इणमें 279 गाथावां हैं। औ कोस एकारथक सबदां री जांण करावै। इणमें 998 सबदां रा प्रयाय दिया थका है।

पं. धनपाल जनम सूं ब्राह्मण हा। ऐ आपरा छोटा भाई सोमन मुनि रा उपदेसां सूं जैन तत्वा री भणाई कर ीअर जैन दरसन में सरधा उपजण सूं जैन व्हिया। एक महाकवी री हैंसत सूं केई ग्रंथ रचिया।

धनपाल धारधीस मुंजराज री राजसभा रा मानीता गुणी रतना हा। वै विणानै 'सरस्वती' कैवता। भोजराज इणांनैं राजसभा में 'कुरचाल सरस्वती' अर 'सिद्दसारस्वतकवीस्वर' री पदवियां देय'र सम्मानित करिया। पछै 'तिलकमंजरी' री रचना नै बदलण रा आदेस सूं अर ग्रंथ नैं जलाय देवण रै कारण भोजराज रै साथै विणांरो खार पड़ग्यो। तद वै सांचरो जाय'र रहया। वणरी जांण विणांरा 'सत्यपुरीमंडन-महावीरोत्साह' में है।

आचार्य हेमचंद्र 'अभिधान चिन्तामणी कोस' सै सरू में 'व्युत्पत्ति-धनंपालतः ऐड़ो लेखौ कर'र धनपाल रा कोस ग्रंथ नैं प्रमाण वालौ बतायौ है। हेमचंदर रचित 'देसी नाम माला (रयणावली)' में ई धनपला रौ लेखौ है। 'सारधंर-पद्धति' में धनपाल रा कोस बिसै रा पद्यां रौ दाखलौ है अर एक टिप्पण में धनपाल री नाममाला रा 1800 सलोक परिमाण व्हेण रौ लेखौ करीजियौ ह। इण सबा प्रमाणां सूं ठा पड़ै है'क धनपाल संस्क्रत अर देसी सबदकोसां री रचना करी व्हैला, जकौ आज उपलब्ध नीं है। ऐ सस्क्रत अर देसज भासा राजस्थानी रा आछा जांणकार कवी हा।
2. अभिधानचिन्तामणिनांममाला- औकोस आचार्य हेमचंद्र रौ रचियौड़ौ है। इणांरौ जनम डॉ. कमलेस कुमार जै रै मुजब वि.सं. 1145 में काती री पूनम नै। रात रा धुंधंका नाम रा नगर (गुजरात) रा मोढ़ वंस में व्हियौ हौ. विणांरौ बालपण रौ नाम चांगदेव हौ अर विणारा पिता रौ नांम चाचिग अर माता रौ नाम पाहिणीदेवी हौ। बालक रौ वदापौ व्हेण लागौ। चांगदेव नैं बालपणा सूंई गरुआं रा सम्परक में रैवण रौ सौभाग मिलयौ। णि कारण वै आठ बरस री कम अवस्था में ई आपरा समै रा चाचा आचार्य देवचन्द्र सूं दीक्या लेय ली। दीक्सा रै पछै विणांरौ नां म सोमचन्द्र राखीजियौ।

सोमचन्द्र थोड़ा सा ई समै में तरक-साहित्त इत्याद सब विद्यावां में अणूंती पकड़ बणायली ही। विणरै पछै वै आपरा गरु रै साथै केई जगावां री भ्रमण करियौ अर आपारा सास्त्रीय अर वैवारिक ग्यान में खासौ वदापौ करियौ। वि.सं. 1166 में 21 बरस री कम अवस्था में ई मुनि सोमचंद्र नै विणारा गुरु आचार्य पद माथै थापन कर'र हेमचंद्र नाम दियौ। जिण कारण वै आचार्य हेमचंद्र रै नांम सूं चावा व्हिया। विणांरो देवलोक वि. सं. 1229 में व्हीयौ। आचार्य हेमचन्द्र व्याकरण, कोस, छन्द, अलंकार, दरसन, पुराण, इतियास इत्याद विद्विद् रा विसयां माथै सफलता रै साथै साहित्ति सिरजण करियौ।

इण तरै आचार्य हेमचन्द्र एक साथै कवी, कथाकार इतियासकार अर आलोचक हा। वै सफल अर समरथ साहित्तकार रै रूप में चावा व्हिया। आथुणिया गुणीसर डॉ. पीटरस् विणारा गूणभरिया ग्रंथां नैं देख'र विणां नै 'ग्यान महोदेधि' जैड़ि उपाधि दी है। इणांरी साहित्त् सेवा नैं देख'र विद्वान विणांनै 'कालिदास सर्वज्ञत्र' जेड़ी उपाधि दीवी।2

ऐ आटाक् गेमटन्ज्क 'अभिनचिन्तामणि नांममाला' नांम रा सबदकोस री वि. सं. 13 वी सती में रचना करी। हेमचन्द्र व्याकरण ग्यान नैं सक्रिय बणावण सारू अर भणेसरां नैं भासा रौ ग्यान सुलभ करण सारू संस्कृत अर देसी भासा राजस्थानी रा कोसां री रनचा इण तरै करी । (1) अभिधानचिन्तामणि सटीक) (2) एकार्थी संग्रै (3) निघण्टु संग्रै (4) देसीनांममाला (रयणावली)
आचार्य हेमचन्द्र कोस री उपयोगति बतावत थका कह्यौ है क बुधजन कवित्व नैं विद्वता रौ फलम ांनै, पण औ सबद ग्यान रै बिना संभव नीं। अभिधानचिंतामणि री रचना सामान्यत अमरकोस रै मजुब ईज करीजी है। औ कोस रूढ, यौगिक अर मिस्र एकारथक सबदां रौ संग्र है। इणें छःकांडां री योजना इण तरै करीजी है।
(1) पैला देवाधिवदेव में 86 सलोक है, जिणमें 24 तीरथंकर इत्याद रा नाम दिरीजिया है।
(2) दूजा देवकांड में 250 सलोक हे। इणें देवा, विणांरी चीजां, अर नगरां रा नाम है।
(3) तीजा म्रत्यकांडा में 597 सलोक है। इण में मिनख अर विणरा वैवार में आवल वाला पदारथां रा नाम है।
(4) चौथा तिरयककांड में 423 सलोक है। इणमें पसु पंखेर जीव-जंतु, वनस्पति-रुंखावली, खनिज इत्याद रा नाम है।
(5) पांचवा नारककांड में 7 सलोक है। इणें नरकवासियां रा नां है।
(6) छटौ साधरण कांड में 178 सलोक है, जिणमें ध्वनि सुंगध अर सामान्य पदारथां रा नांम है।
ग्रंथ में कुल मिलाय'र 1541 सलोक है।
हेमचंद्र इण कोस री रचना में वाचस्पति, हलायुध, अमर यादव-प्रकास, वैजयन्ती रासलोक अर काव्य रा दाखला दिया है।
हेमचन्द्र सबदां रा तीन विभाग बताया हैः- 1 रूढ, 2 यौगिक अर, 2 मिस्र। रुढ री जुतपन नी ंव्है। योग मतलब गुण, क्रिया अर सम्बंध सूं जकौ सिद्ध वैह सकै। जकौ रूढ भी व्है अर यौगकि भ ी व्है विणांनै मिस्र कैवै।
'अमरकोस' सूं कौस बद संख्या में डैढी है। 'अमरकोस' में सबदां रै साथै लिंग रौ निरदेस करीजियौ है। पण आचार्य हेमचन्दर आपरा कोस में लिंग रौ लेखौ नीं कर'र सुतंत्र लिंगानुसासन री रचना करी।

हेमचन्द्र सूरी इण कोस में सिरफ प्रयायवाची सबदां रौ ई संकलन नीं करियौ, जद'क इण में भासा सूं जुडी मैताऊ सामग्री ई है। इणमें घणा सूं घणा सबद दिया है नव ा अर जूना सबदां रौ मेल ई करियौ। आचार्य समान सबदजोग सूं अलेखूं प्रयायवाची सबद बणावण रौ विधान ई करियौ है, पण इण विधान रै मुजब विण ऊ सबदां नै अपणाइजिया है। जिण सूं भासा री दीठ सूं आ पोथी घणीमोली बण सकै इणमैं सस्क्रत रै साथै जूनी राजस्थानी भासा रा सबद है। इम दीठ सूं आचार्य नवा केई सबदां नै अपणायर आपरी पोथी नैं सबली बणाई है। ऐ खासियतां दूजा कोसां में देखण में नीं आवै। इणसारू इणनै इण रीत में राखीजियौ।
3. अनेकारथी संग्रै- आचार्य हेमचन्द्र रा इण कोस में एक सबद रा केई अरध किया है। णि ग्रंथ में सात कांड है। इण तरै कुल मिलाय'र 1889 पद्य है। इणमें सूर में अकारिद क्रम सूं अर अंत में 'क' इत्याद रा क्रम सूं योजना करीजी है।
इण कोस में भी अभिधान चिन्तामणि री भात सस्क्रत सबदां रै साथै देसज राजस्थानी भासा रा घमआ ई सबद आया है। औ ग्रंथ अभिधानचिंतामणि कोस रै पछै रचिजयौ, ऐड़ी इणरा आगै रा पद्यां सूं जांण व्है।

5. देसी सबद संग्रै-आचार्य हेमचंद्र इण नाम सूं जूनी राजस्थानी रा सबदां रौ संग्रै करियौ। इणनै कोस रौ रूप दियौ. इणरौ दूजौ नां 'देसीनांममाला' भी है। इणनै 'रयणावली' (रत्नावली) भी कैवै। देसी सबदां रऔ घणौ आछौ कोस है। इणसूं पैली रौ ऐड़ौ कोस देखण नीं आयौ। इणमें कुल 783 गाथावां है। जकौ आठछ वरगां में बांटीयोड़ी है। इणां वरगां रा नाम ऐ है। 1. स्वरादि, 2. कवरगादि, 3. चवरगादि, 4. टवरगादि 5. तवरगादि 6. पवरगादि, 7. यवरगादि अर 8. सवरगादि। सांतवा वरग रा आदि में कहीजौ है'क इण तरै री नाम-व्यवस्था जद'क जोतिस सास्त्रम ें चावी है पण व्याकरण में नी है। इणां वरगां में भी सबदविणांरी आखर संख्या रै क्रम सूं राकीजिया है अर आखर संख्या में भी अकारादि वरणाऊक्रम सूं सबद बताइजिया है। इणक्रम सूं एक अरथवाला सबद देवणरै पछै अनेक अरथ वाला सबदां रौ आख्यान करीजियौ है।

इण कोस ग्रंथ री रचना करती दांण ग्रंथकार रै सांी अलेखूं कोस विद्ममान हा, ऐडी लखावै हहै। सरू री दूजी गाथा में कोसकार कह्यौ है'क पादलिप्तचार्य इत्याद रा रचियोड़ा देसी सास्तारं रै व्हेतां थकां भी वै किण कारण सूं औ ग्रंथ रचियौ. तीजी गाथा में बतायै है।
जे लक्खणे ण सिद्दा ण परिसद्ध सक्कयाहिहाणेसू।
ण य गउड लक्कण सत्ति संभवा ते इण णिबद्धा।।3।।
मतलबसजकौ सबद नीं तो संस्कृत-प्राकृत व्याकरणां रा नेमां सूं सिद्धव्है, नीं ई संस्क्रत कोसां में मिलै अर नीं अलंकार-सास्त्र प्रसिद्ध गौडी लक्सणा सक्ति सूं अभिस्ट अरथ देवै है। विणांनै ई सेदी मान'र इण कोस में राखिया।
इण कोस माथै स्वोपग्य टीका है, जिणमें अभिमानचिह्न, अवन्ति सुन्दरी, गोपाल, देवारज, द्रोण, धनपाल, पाठोदूसल, पादलिप्ताचार्य, राहुलक, साम्ब सीलाँक अर सातवाहन रा नाम दिया है।
5. डिंगल नांममाला-इण कोस रचेता रौ नाम कुसललाभ हौ। कुसललाभ जैन गुणीसरा हा। जैसलमेर रा सासक हरराज रा दरबार रा मांनीता रतना हा। हराज वि. सं. 1618 में जैसलमेर री गादी बैठा। इण सूं औ सैज ई अंदांजौ लाग सकै है क इण कोस री रचना विण टैम रै आस-पास में व्ही। इण कोस रा नां सूं जुड़ियौ एक मैताऊ सवाल सांमी आवै है। जिण मुजब मूल प्रति में कोस री नां है-'अथउ डिगंल नाममाला'-'पुस्पिका' में पूरां नां 'पिंगल सिरोमणे उडिंगल नांममाला' भी मिले है। इण कारण अटै दिरीजिया, डिंगर अ उडिंगल सबदां में कुणौस सुद्ध सबद है ? विण तरै नां में वरती जियौ ऊ आखर जे, अरथ रै साथै सूं हटाय'र डिंगर रै साथै राखलां तौ अठै भी 'उडिंगल' व्है सकै है, अर अथ कै साथै उ लगायदां तौ 'अथऊ' डिंगल नांमाला व्हा जावै।
औ कौस जूनो व्हैण रै कारण केई तत्कालीन सबदां री आछी जांण करावै। इण सारू राजस्थानी भासा रा वदापा री दीठ सूं इणरौ खास मैतव है। कोस रौ आकर बौत छोटी है अर इणरी पुस्पिका सूं ई ौ ईज लखावै है क औ पूरा गह्रंथ पिंगल सिरोमणी रौ एक पाठ मात्र है जिणरौ दाखलौ औ इण भांत है-
धरती नांम
धरा, धरत्री, धार, धरणि, ख्योणी धूतारी
कु, प्रथु पृथ्वीकांम, सर्व-सह,स वसुमति (सारी)।
वसुधा, उरबी, वांम, खमा, वसुधर ज्या (दख),
गोत्रा प्रवनी-गाई-रुप- मेदनी, (सुलख्यं)।
विपुला, सागर-अंबेरा, खुरखुं (दीखे गालरां)
राजाप्रथू चीपरठि (रटि), वरियणा (आग) वज्रगरा।।13।।
तुंगा, वसुधा, इला, भूम, भरथरी, भंडारी,
जमी, खाक, दरदरी, धरा, धरणी धूतारी।
मूला महि, रखमंडप, मुक्तवेणी, सुरबाली।
प्रमर, प्रादि, गिरधरणि, सुथिर सुंदर सिहाली।
झुला छिकमल गोरंभ गरद (सासिविया भूपति घणा),
(कर जोड़ कवित पिंगर कहै, तीस नंाम धती तणा ।।14।।1
इण कोस में 27 छंदां में 24 सबदां रा काव्यात्मक रूप में 400 सौ प्रयायवाची सबदां री जांण कराइजी है।

 

6. नागराज डिंगल कोस-इण कोस रौ रचेता नागराज पिंगल है। इम कोस रा रचेता रै सम्बंध में पक्कायत जांण नीं मिलै। सिरफ कीं दांत कथावा ंजरुर सुंणण में आवै जिणें एक दांतकथा घमी चावा है। जिण मुजब एक वार गुरुड रीसा बल'र सेसनाग रै लारै लागौ। सैसनाग खुद नैं बचावण री घमी ई कोसी करी पण अन्त में कोई उपाय नीं देख'र गरुड़ रै सामी समरपण कर दियौ. पण एक वात वो ऐड़ी कही जिणसूं गरुड़ नै सोचण सारू मजबूर व्हेणौ पड़ियौ। नागराज कह्यौ-म्हनै मरण रौ दुख नीं व्हैला पण म्हैं छन्दसास्त्र विदाय रौ जांणाकार हूं अर वा विद्या म्हारै साथै मर जावैल। ऐड़ी हालत में एक ई पुया हैक थै म्हारै ं सू छन्दसास्त्र सुण'र याद करलौ। पछै ज्यूं चावौ जूंयं करजौ। गरुड़ बात मानली। पण एक संका परगट करीठक कठै ई थूं धोकौ देय'र भाग नीं जावै। इण सारू सैसनाग वचन दियौ क म्हैं जद जाऊंला थांनै बताय'र जाऊंला। इण बात रौ समचौ कर'र जाऊंला क म्हां जाय रैयौ हूं। सैसनाग नैं पूरो छन्दशास्तर सुंणायौ अर अंत में भुजंगम् प्रयातम् (फुजंग प्रयात एक छं दौ रनांम है) कैयर'र समुद्र में गयौ परौ। भुजंगत प्रयताम्-रौ मतलब व्हियौ-सरप जाय रैयौ है। सैससनाग री चतुराई माथै राजी व्हेय'र गरुडड सैसननाग नै माफ कर दियौ अर आदेस दियौ'क छन्दशात्र् री पूरणता सारू कोस भ बणावौ। तद सैसनाग सबदको भी बणायौ। तद सूं ही सैसनाग ई इणरा रचनाहार मांनीजै।
संस्क्रत रौ पिंगल-सूत्र घमौ चावौ है, जिणरा रचेता पिंगग मुनि मांनीजै। यूं तौ सैसनगा रौ प्रयाय भी पिंगल कहीजै। पिंगलर सबद छंत-सास्त्र रै रूप में बरतीजियौ। रास्थानी री कविता री सैली भी है, व्है सकै इण नांम रौ कवि राजस्थानी री डिंगर परम्परा में व्हियो व्है। इणमें 20 छंद है, जिण में 19 सबदां रा करबी 500 सौ प्रयायवाची दियोड़ां है। जिणरौ दाखलौ इण भांत है।
पाणी-नांम
भू, अल, हर, अब, भख, तरंग, भ्रजण, जोतंबल,
रंग, पांणी, टातंब, भोमीबल (है)सेतबंल।
नीर, बार, नीलंठा छापि सी थट्ट बंधाणी,
नर अंतर नीचंध पणंग पयोहवा आणी।
झरनाल, अभुत, उदंग, गंगाजल, उजल सीतल अखही,
तीस नांम पांई तयमा, कवत एह पिंगल कही।।1।।
7. हमीरनांममाला-इणरा रचेता महाकवी हमीरदान रतनू मारवडा रा घड़ोई गांम रा रैवासी हा। पण विणांरौ घणकरौ टैम कछमुज में ई निकलियौ। वै भुज राज रा राजकवि हा। भुज री पौसला जठै डिंगल-पिंगल कविता री भमाई कराईजती इणरी थापना अर योजना सब रा करणवाला आप ई हा। ऐ विण पबौसाल रा घमै चैम तक आचार्य ई रैया. ऐ आपरी वगत रा मांनीता राजस्थानी गा गुणीसरा हा। ऐ छंदसास्त्र रा ग्रंथ भी बमाया। जिणां में लखपत-पिंगल घणौ चावौ है। भागवत-दरपण नांम सूं ऐ राजस्थानी भावत पुराण रौ राजस्तानी में ऊत्थौ करियौ। ऐ सिरजण, उल्था, रीतीग्रंथ, कोस ग्रंथ अर दूजौ सिरजण लटैटगै 175 ग्रंथ लिखिया।1 इणीं कांम सं विणांरी पिण्डताई रौ प्रमाण मिलै। इमांरी हमीर नाम माला राजस्थानी भासा रा छंदोबद्ध कोसां में एक मांनीजतौ अर सिरै नाम है। इणरी रनचा सं. 1774 मं व्ही। हमीर नांम माला राजस्थानी रा वेलिया गीत में लिखी थकी है। हरेक सबद रा प्याय गिणायां पछै छैदहली पांतां में घमऐ रुपाला ढंग सूं हरि महिमा सारू ओपती ओलिया कैय'र, ग्रंथ में सब जगा आपरा व्यक्तित्व री छाप छोड़ी है। इण सारू औ ग्रंथ हरिजस नांममाला रै नाम सूं भी चावौ है। हमीर नांम माला में 311 छंद है। इणां छन्दां में जूना अर तत्कालीन साहित्त में चलणवालां राजस्थानी रा घमआ ई सबद आपरा मूल रूप में रुखाल राखीजिया है णि ग्रंथ में 180 सबदां रा करीब 3000 प्रयायवाची दियोड़ा है। जिणरौ दाखलौइम भांत है-
सोना-नांम
वसू, भूतम, लोहीतम, सोव्रन,
कर-बुर चांमीकर कंचन।
सांति-कुंभ, गांगोय, सेल-सुत,
हेम,कनक, हाटल, हरन।।90।।
मैरूक महारजत (वलि)
भूर अष्टपद (अरु)भरम।
नाम अगिनबीरज जांबूनद,
रजत-धात, ओपम रुकम।।91।2
(कह) तपनीय, पीतरंग, कुंरमदन,
जात-रूप कलधोत (जथां),
(लाख जुगां लग काट न लागै)
कलंक न लागै रामकथा।।92।।1
इणां वेलियां छंदां में सोना रा 31 राजस्थानी प्रयायवाची सबद है।
8. अवधान-माला- इणरा रचेता बारठ उदैराम जी है। ऐ जोधपुर रा थबूकड़ा गांव रा रैवासी हा। ऐ जोधपुर महाराजा मानसिंघ जी रा दरबारी कवी रह्यां राजस्थआनी सोध संस्थान, चौपासनी में महाराजा मानिसंघ जी रा वखत रा कवियां रा चितराम में इणांरौ चितराम भी नांम रै साथै मिलै। इमांरां ग्रंथां में कछभुज रा राजा भारमल अर विणांरा बेटा देसल (दूजा) री चरचा जगा-जगा मिलै। इमसूं ऐ़ड़ौ लखावै है'क ऐ विणांरा रा दरबारी भी रह्या अर जीवन रौ खासौ भाग उठै रज बितायौ। वै आपरी टैम रा विद्वानां में आदरीजियोड़ा तौ था ही। इणरै अलावै केई विद्यावां रा जांणकार व्हेण रै कारण औरूं राज दरबारां में भी सम्मान पाय चुका था। इणांरा ग्रंथां में कविकुलबोध सबसूं वत्तौ मैताऊ ग्रंथ है। औ खास कर'र राजस्थानी छंदसास्त्र रौ ग्रंथ है। इणीं ग्रंथं में 'अवधानमाला' राजस्थानी प्रयायवाची कोस है। इणीं तरै राजस्थानी रौ ग्रंथ अनेकारथी कोस, एकाक्सरी नाममालिा भी इणरै साथै ईज है। इणरै अलावै केई छन्दा रा नेम लिछमी कीरती संवाद रा दो पाठ भी इणी ग्रंथ में है।
'अवधानमाला' राजस्थानी प्रयायवलाची कोस ग्रंथ री छंद संख्या 531 है। राजस्थानी में चलणवाला सबदां रै अलावै भी कवी केई सबद विण्डताई रै पांण बणाय'र राखिया। इम तरै भासा रौ सबद भण्डार बढ़ावण रौ कां करियौ। णि कोस री मोटी खासियत आ है'क छंद-पूरती इत्याद सारू प्रयायवाची सबदां रै अलावै बहौत कम फालदू सबदां रौ प्रयोग करियौ है। इण ग्रंथ में कठैई-कठैई इणांरौ नांम उदेराम बारठ री जागा उमेदरामा बराठ भी मिलै, है'क इमांरां ऐ दोनूं नांम विण टैम चलण में हा। इणमें 298 सबदां रा 4 हजार 900 सौ प्रयायवाची सबद दिया थका है। क दाखलौ इण भांत है।
सी कस्ण नांम
स्री कस्ण रा 118 प्रयायवाची सबद दिया थका है।
स्याम, मनोहर, स्रीपति, माधव, बालमुकन्द,
कुंजबिहारी, हरिकिसन, गिरधारी गोविन्द।-25
मधुसुदन, मधुवनमधुप, चक्रपांण, व्रजचंद,
ब्रजभूषण,. वंसीधरण, नारायण नंदनंद।1-26
दोमोदर दईंतेंद्रवर, मरदनमेछ मुरार,
अघबकादिहंता, अनंत, कैटभ, ्‌जति, कंसार।1-27
पदमनाभ, त्रेलोकपत, धनसंख्यादिक धार,
देवांदेव, जनारदन, व्रज-वैकुंठ-विहार।1-28
विषकसेन, यंत्रावरज, संखधार, सारंग,
गिरधारी, धारीगदा, भूधर, पदत्रभंग। 1-29
विसंभ, करता, विसनु, वासदेव (विसेस),
जादवपत, अरजनुसखा, रिखीकेस, राकेस। 1-30
पुंडरीकारव, पुरांणपरव, पुरुसोत्तम, उपचंद्र,
जगवंदण, जगमूरती, चंद्रवंस-को-चंद्र 1-31
कांन, अच्युत, नरकांतक्रत, जलक्रीडा, जगनाथ,
राधावलभ, सबरित, संकरपण, गौसाथ 1-32
द्वारकेस, सुतदेवकी, गौपीपत, गौपाल,़
प्रभा, स्याम, पीतंबर, जादववंस-उजाल 1-33
स्रीधर, सी्‌रवक्सस्थल, गुरडासण, गजतार,
धजाखगेस, अधोखजं, विस्वरूप-विस्तार 1-34
भूधरमभारतउतारम्, भगतवछल, भगवंत,
भवतारण, भवभयहरण कारण कमलाकंत 1-35
गोपपति, प्रभु परभगुरु, सेखसा, अधसाय,
व्रस्टरसवा, ब्रखाकप (स्रवत मुचंद्र सहाय) 1-36
अवणसी, नित, अजर, अज, दीनानाथ दयाल,
वनमाली, विठलेसवर, गोकलेस, पगल्वाल 1-37
मधुवनसिंधु, महमहण, स्यांम, मयसामंद,
वलभज्यन, रुकमणवरण, केवल आनंदकंद 1-38
मुरीलमनोहर, मधुवनी, नाथ, जसोदानंद
क्रपासिंधु (कीजै क्रपा) अकलेसुर ब्रजयंद 1-30
9. नांममाला- इण कोस रौ रचेता अग्यात है। औ भी प्रयायवाची कोस है। केी सबदां रा जूना सुद्ध राजस्थानी रूप इण। कोस में देखणनै मिलै, जिणसूं औ अंदाजौ व्है है'क इणरौ रचेता कोई आछौ गुणीसर व्हेणौ चाहिजै। ईश्वर, व्रख, भरम, चपला, इत्याद रा केई मैतऊ प्रयाय इण कोस में है. छंदपूरती में भी बौत ई कम निअरथा सबदां रौ प्रयोग देखण में आवै जकौ कवी रौ सबद अर छंद दोनां पर अधिकार बतावै। इणमें 72 सबदां रा कबी 1700 प्रयायवाची सबद 135 छंदां में बताया है। इण नांममाला में ईस्वर रा 213 प्रयायचाी सबद बताइजिया है। एक दाखलौ इम भांत है, जिण में सूरज रा 93 प्रयायवाची बताइजिया है।
आदीत-नाम
भांण दिनंद, हंस, भासंकर,
कस्यपसुत्त, आदीत, अहसकर।
पदमणिपति, सूरज प्रद्योतन,
विसक्रमा, भगवांन, विरोचन 1-59
क्रमसाखी, रवि, महिर विदाकर,
पदमबंध, चकबंध, प्रभाकर।
तिगम, प्रवीत, मित्र रातंबर,
वरल, पंतग, अचल, रांनलवर 1-62
सविता, सूर, अरक, खग, सीरख
चित्रभांण, पिंगल, हर, जगचख।
मारतंड, विवसान, गयणमिण,
तरण, तीखअंस, तिमरत, तपघण 1-61
धव, द्वाद, आतचम स्रगद्वारं,
तपन, पुखात्र, इतन, तिमरारं।
सप्रस, प्रदोमन, भासानं,
विद्योतन, तप, तेज, वितानं 1-62
अरुण, अरजमा, अहिपति (एता),
विभावसू, विखरतन, सुवेता।
कंजविकास, सुमाील, दिनकर,
सोमधात, सुमाली, दिनकर
सोमघात, अंगारक सरकर 1-63
सहसकिरण, भगदसू, दिनेसर,
जमा, सनी, अस्वनी, भव, क्रन जम-
तात (यता रवि नांम बधे तिम) 1-64
रिष, ग्रहपति, सुएँन, निसारिप,
उस्णरस्म, कंक, रखणआतप।
भकत, चक्रधर (नांम) चत्रभुज,
हरिहंसल, वतधात, हितवारस। 1-65

10. डिंगलकोस- राजस्थानी रा छंदोबद्ध प्रयायवाची कोसां में औ कोस सबसूं बड़ौ है। इण को रा रचेता बूंदी रा कविराजा मुरारिदान हा। ऐ महाकवी सूरजमल मीसण रा खोलायती बेटा अर विणांरा चेलां मांय सूं एक हा। वंस भास्कर नै पूरौ करम रौ मैताऊ काम भी आप ही पार पटकियौ। इण कोस में 7000 राजस्थानी रा सबद आया है। इण में छंदां अर अलंकारां पर भीं कीं काम है पण पूरौ घ्रथ कास रूप सूं प्रयायवाची कोस ही है। कोस रै सरू रा अध्यायां में गीतां रा नेम बतावण रै पछैगीत छंद रा दाखलां में भी प्रयायवाची सबद है। इण तरै री सैली दूजाकिंणीं कोस में नीं अपणाईजी है। औ कोस न्यारा-न्यारा अध्यायां में बंटियौ थकौ है। जिणांरा नाम इण भांत है -(1) पृथ्वीकाय (2) अपकाय (3) तेजस्कायमाह (4) वायुकायमाह (5) वनस्पतिकाय माह (6) द्विन्द्रियानाह (7) त्रीन्द्रियानाह (8) चतुरिन्द्रियानाह (9) पंचेन्द्रियानाहा (10 खचरापन्पंचेद्रिन्यानाह (11) जलचरान पंचेन्द्रियानाह
इत्याद रै अलाववै छंदां री रीत बताइजी है। इणरौ दाखलौ इण भांत है। इण त्रबकड़ा गीत छंद में बह्माजी रा 49 प्रयायवाची सबद आया है।
गीत-त्रंबलड़ौ
ब्रह्मा-नांम
बेदोधर, कमलसुतन, बिध बिधना अज चतुरानन जगतउपाता,
सतानंद कमलासन, संभू, ध्रुव लोकेस पतामह धाता ।।114।।
परजापत, ब्रहमण, पुराणग, ब्रह्मा, ब्रह्म, बेह, कवि बेधा,
सनत, हंसबाहण, सुरजेठौ, मुखचवु, आठद्रगन, बडमेघा ।।115।।
सुरसतजनक, स्वयंभू, सतध्रत, बेदगरभ, अठस्रवण विधाता,
आतमभू, सावत्री ईसर, नाभीसंभव, कमन, सुहाता।।116।।
सत्यलोक, गायत्री, ईस, क, बेधस, लोकपता, (बिख्याता),
हिरणगरभ, बिरंची, द्रूहिण, द्वुघण, बिस्वरेतस (बरदाता। ।।117।।
11. अनेकारथी कोस- राजस्थानी रौ औ छंदोबद्ध अनेकारथी कोस है। इणरा रचेता उदैराम बारठ है। औ विणांरा रीती ग्रंथ किवकुलबोध रौ हिस्सौ है। इण अनेकारथी-कोस में तत्सम अर तद्भव दोनूं तरै रा सबद है, कठैई-कठैई कवी आपरी तरफ सूं कीं सबद बणाय'र भी राखिया है। औ पूरौ ग्रंथ दूवा छंद में लिखियौ थकौ है। जिमसूं कठै करण में घणी सुविधा रैवै। ग्रंथ रै सरुपोत में हरके दूवा में एक सबदा रा केई अरथ दिया थका है, आगै जाय'र हरके दूवा में दो सबदां रा अनेकारथ लगोलग पैली अर दूजा लैण में राखीजिया है, बदाइजिया है। इणें 89 दूवा छंदां में 128 सबदां रा 719 अनेकारथ बताइजिया है। जिणरौ दाखलौ इण भांत है-
सुरभी-नाम
चंदण, मऊ, म्रग, भ्रत (चढ़ै), सुमनावली वसंत।
अंतरादि, म्रगमद, यसा, गांधीहाट (गंणंत) ।।4।।
इण दूवा मुजब सुरभी सबद रा 10 न्यारा-न्यारा अरथ व्है।
इण भांत एक दूवा री पैलमी लैण में एक सबदा रा केई अरथ अर दूजी लैण में दूजा सबदा रा केई अरथ दिया थका है। ज्यूं नीचे दूवा में वन अर घण सबदां रा केई अरथ बताईजिया है। पैली लैण में बन रा अर दूजी लैण में घणा रा केई अरथ बताइजिया है।
वन वारद पाती (बलै), वन (वन नांम बताय)
घणा बादल विसतार (घण) घण (सूं लोह घड़ाय) ।।1-41
12. एकाखरी कोस-राजस्थानी भासा रा सबदकोसां री परम्परा में दो एकाखरी-कोस भी है। जिणांमें एकाखरी नांम-माला रौ पैलो नांम है। इणरा रचेता वीरभाण रतनू भी हमीरदान रतनू रा गांम घड़ोई (मारवाड़) रा रैवणवाला हा। ऐ जोधपुर महाराजा अभयसिंघ रा समकालनी हा। औ विणांरा प्रसिद्ध ऐतिहासिक काव्य राजरुपक सूं प्रमाणित व्है। जकौ अभयसिंघ रा ऐमदाबाद रा जुद्ध री घटना नैं लय'र लिखीजियौ है। वीरभांण रतनू विण जुद्ध में मौजूद हा। विणांरौ औ एकाखरी कोस आकरा में छोटौ हैष औ कोस अव्यस्थित रूप सूं लिखीजियौ है।
इणमें नीं तौ कोी क्रम अपणायइजियौ है अर नीं ई न्यारा-न्यारा सीरसक देय'र कोई विभाजन ई करीजियौ है। इसौ लखावै है'क कवी खुद कोस रचना में कोई खास रूची नींं राखै। औ कौस 34 दूवा छंदां में पूरौ व्हियौ है। इण दूवां छंदां में वैण सगलाई अलसंकार री केई जगा कमी अखरै। इण कोस रौ एक दाखलौ इण भांत है-
कहत अकरा ज विस्नु कूँ, युनि महेस मत मांन।
आ ब्रह्मा कूं कहत है, इ-ई जुग मार जांन।।1।।

13. एकाखरी-नांममाला- एकाखरी कोसां में दूजौ नाम बारठ ुदेराम जीरी एकाखी नांमाला रौ है। औ कोस भी उदैराम री कविकुलबोद रौ ईज हिस्सौ है। ग्रंथ री दसवी लैर कै तरंग रै अन्त में औ पूरौ व्हियौ है। ऐड़ौ लैणसर लिखियोड़़ौ पूरम कोस राजस्थानी में दूजौ नीं मिलै। दूजा कोसां री तरै इण कोस में भी कवि आपार पूजता ग्यान रौ परिचैदियौ है। तत्कालीन साहित्तिक सबदावली रै साथै-साथै कठैई-कठैई तौ जनवीजनव में चलणवाला अणूंता सादारण सबदां तक नैं कवी अनोखै ढंग सूं अपणाया है। ज्यूं- 'झै' औ अरथ वै 'करभ झेकंतां काज' 1 मतलबं ऊंट नै बैठावती दांण करीजण वाला आखर रौ उच्चारण है। जकौ जनजीवन में अणूंतौ चलण में है। ऐड़ा सबदां रौ प्रयोग कवी रा बारीक अध्ययन रौ प्रमाण है।
राजस्थानी छंदोबद्ध सबदकोसां में 3 कोस बारठ उदैराम रा है। तीनूं कोस आपरा ढंग रा अणूंता मैताऊ है। एक प्रयायवाची, एक अनेकारथी, अर एक एकाखरी कोस है। इण एकाखरी कोस में 282 दूवा छंद है। जिणांमें 389 आखरां रा 26 सौ 53 अरथ दिया है। इणरौ दाखलौ इण भांत है-
"अ" नांम
संकर, ब्रह्मा, स्री क्रसन, अरक सिखा ससियंद।
पवन, प्राण, सुखया प्रजा, काल प्रमांण कवंद।।-6
आदंछर जरऊपनौ (गण न्यारा गुंण नांम).1
'अ' आखर रा इणें 16 अरथ दियाथका है।
इण तरै एक दूवा में दो आखरां रा अरथ बताईजिया है पैली लैण में पैला आ अर दूजा लैण में दूजा आकर रा अरथ दिरीजिया है। ऐड़ौ एक दाखलौ इण भातं है।
घे, घै, नांम
कंब, स्वान, चौकी, करा, खीली (घेर कर ख्यात),
ख, धरमी, पापी समर (सुन सुत घै दरसात)।।-70

14- इणांरी एकाखरी- नांममाला रै अन्त में 'अथ प्रत्यय नांमावलवी' दीरजी है। औ भी छोचटौ कोम ईज है। जिणमें 13 दूवा छंद है। जिणमें 25 अव्यय आखरां रा 78 अरथ दीरिजिया है। इणरौ एक दाखलौ इण तरै है-

अ, आ नांम
'अ' संबोधन (आखिये), मांन विधान म्रजाद।
आगमम, (आ, अ) पांच (अख ईहग कहत अनाद)।।-6
छंदोबद्ध कोसां रा इण वीवरा रै पछै अबै विणांरी की सामान्य प्रवृत्तियां रौ विरोल करीजै है जकौ प्रयोग अर मूल्याकंन में स्हारौ देवैला।
(1) इणां कोसां में केी जगा ऐड़ी भी है जठै जातिवाचक सबदां में व्यक्तिवाचक सबदां नै भी लेय लिया है। ज्यूं 'अप्सरा' रा प्रयायवाची गिणावती दांण खास अप्सरावां रा नाम भी विण में भेला करीजगा है। पण अठै ध्यान देवण जोग बात आ है'क राजस्थानी रा जूना काव्यग्रंथां में व्यक्तिवाचक सबदां रा प्रयोग जाति वाचक सबदां री भांत भी करीजिया है। 'ऐरावत' इन्दर रा हाथी रौ नांम ई है पण साधारण हाथी रै सारू भी वरतीजतौ रह्यौ है। इण कारण सायत ग्रंथकार इण तरै री रीत नैं ध्यान में राख'र आ रीत अपणाई व्हैला।
(2) केी जागा प्रयायवाची सबदां रौ रुप एकवचनात्मक सूं बहुवचनात्मक करीजगौ है। ज्यूं तलवार सारू-करवांणा, करवालां, इत्याद घडोा सारू-हयां, साकुरां, अस्सां, जंगमां, पमंगां, हैवरां इत्याद ऐ सिरफ मात्रावां री पूरी सारू अर तुक मिलवाण सारू करीजिया लखावै।
(3) कठैई- कठैई प्रयायवाची देवण रै साथै बीच-बीच में वस्तु री खासियतां अर प्रयोग इत्याद रौ वरणाव कर'र भी आपरी खास जांण नैं परगट करण री कौसीस करीजी व्है। 'नुपुर' रा प्रयाग गिणावती दांण सरीर में हरख संचरण री खासियतां री सूचना भी दी है। अर 'नागबैल' रा प्रयाय गिणावती वगत विणरा प्रयोग रौ जिक्र भी करियौ है। इणीं तरै रा कितरा ई दाखला इणमें दलिया थका मिलैला।
(4) विद्वान कवी केई सबदां री परिभासा तक देवण री कौसीस करी है। ज्यूं प्राकृत नैं नरभासा, मागाधी नै नागभासा, संस्कृत नैं सुरभासा अर पिसाची नै राकसां री भासा कैय'र समझावण री कौसीस करीजी है।
(5) ज्यूं'क समचौ करीजियौ है'क केई कवी आपरी चतुराई सूं भी सबद बमाया है। जकौ बरोबर ओपता लखावै-ज्यूं-ऊंट, सारू 'फीणनांखतौ' अरजुन सारूं 'मरदां-मरद' सबदा रा प्रयोग करीजिया।
(6) केई जगा सबदां रा प्रयायवासी नीं राख'र सिरफ तस्बम्बंधी वस्तुआं री नांमावली दीरीजी है। दाखलौ-सताईस नखत नांम सीरसक में 27 नखतरां रा नांम गिणाय दिया है। जकौ सत्ताईस नखतरां रा प्रयायवाची नीं कह्या जा सकै। इमीं तरै 24 अवतार नांम सांत धात नां बारै रासां रा नांम इत्याद रै सम्बंध में भी आ ईज जुगत काम में लिरीजी है।
(7) छन्द पूरती सारू केई निअरथा सबदां रौ प्रयोग करणौ भी जरुरी व्है। हरेक कवी ापरी इच्छा ्‌र सुबिता मुजब छंद पूरती करण री कौसीस करी है। छंद रचना में कीं कवी कम सूं कम भरती रा सबदां नैं जागा दीवी है। केई कवी आख ीलैण आपरा नाम री छाप लगावण में लागयदी। आखौ, आख, कहौ, मुणौ, मुमआत, चवौ, चवीजै, गिणौ, गिणआत इत्याद सबद छंद में गति उपजावम सारू अर मात्रावां री पूरीत साूरवरतीजिया है। इम तरै रा सबदां अर आंकड़ियां नै कोठां रै मांय राख'र संपादक आपरी कुसलाई रौ परिचै दियौ।
राजस्थानी भासा इतरी जूनी अर सम्रिद्ध है'क इणरा अमगिणत हाथ लिख्‌ाय ग्रंथ न्यारा-न्यारा पोथी खानां सोध-संस्तानां रै अलावै कितरा ई लोगां रै भड़ै आज भी मौजूद है। ऐड़ी हालत में की ं ओरू छंदोबद्ध सपबदकोस मिल जावै तौ कोई अचूंबा री वात नीं। कीं ओरू कोसां रां ाम मिल्या है जिणां में हमकावी पुस्पदंत रो कोस जूनी राजस्थानी रा सबदां नै लियां थकौ है। मध्यकाल रा कीं कोसां में गुलाब जी रौ कौस। इणरै अलावै।
15 पारसत नाम माला- कुंवर कुसल
16 लखपति मांन मंजरी- लखपत
17 विजैराज मंजरी नांममाला-लखमीकुसल
18 सुबोध चंद्रिका अनेकारथी नांममाला-फकीर चंद
19 विजैप्रकास कोस- वजमाल मेहडू इत्याद।
20 अनेकारथीनामंमाला- पद्य 120, रचेता- महासिंघ, रनाच संवत्-1760
जैठ मास रै अंधारे पख री बारस सनिवार 1760 में रचना पुरी व्ही। अभय जैन ग्रंथालय में इणरी प्रति है। जिण मुजब जिणरा गुटका में 14 पत्र है। पानदीठ लैणां-14-15, लैणंदीठ आखर-12-16
21. अनेकारथीनांममाला- पद्य-169, रचेता-विनयसागर, रचना संवत 1702, काती री पूनम, गुरुवार। इणरी ्‌रति-भंडारकर रिसरच इस्टिटयूट, पूना, प्रतिलीपी- अभय जैन ग्रंन्थालय, बींकानेर, प्रति में पत्र 12, पानादीठ लेैणां-11, लैंणदीठ आखर-35 है।
22 अनेकारथी-पद्य 60, सागर रचेता- लेखन काली 19वौ सईकौ प्रति गुटकाकरा बड़ी स्री अनूप संस्क्रत पुस्तकालयमें प्रति है।
23. आतमबोधनामंमाला-पद्य 273, रचेता चेतन विजय-रचना संवत् 1847, माघ रा उजला पख री दसम। प्रति में पत्र 18 है। पानादीठ लैणां 22-लैंणदीठ आखर-50, अभय जैन ग्रंथालयम में प्रति है।
24. आरंभनांममाला- रचेता-सुबुद्धि, पद्य 67 रै पछै पद्यांक नीं दिया है। रचनाकाल 18वौ सईकौ। प्रति में पत्र 14, पानादीठ लैंणा 11 सूं 1, लैंणदीठ आकर 36 सूं 48 प्रति रै करता रौ नाम दिरीजिया है। जिणरौ आधार अग्यात है। सिरफ छंद 11-13 में सुबुद्धि नाम आवै है। पण उठै रचेता रा अरथ में नीं लखावै। कवि रौ परिचै, रनचा, समै आदि रौ कोई पतौ नीं चलै। आ प्रति जयचन्द्रजी रा भंडार में है।
25. ख्वालकबारी-पद्य-154, लेखन पं. अभय सोम, प्रति में पत्र 2, पानादीठ लैणा 17, लैंणदीठ आखर 60, प्रति अभय जैन ग्रंथालय में है।
26. धनजीनांममाला-पद्य 145, सागर कवि री रचना। रचना संवत् 19वौ सइकौ. प्रति गुहकाकर-बड़ी, अनूप संस्क्रत रुस्तकालय बीकानेर में है।
27.प्रदीपिकानांममाला- पद्य 355, रचेता-रघुनाथ प्रति में पत्र सं. 23, पानादीठ लैणां-9, लैणादीठ-आखर- 27 सूं 32, स्री जिन चरित्त सूरी सग्रै में है।
28 भारतीनांममाला- पद्य 526, रचेता भीख जन, सं. 1685 आसोज सुद पून सुक्रवार, फतेहपुर रचना काल अर जगा है। प्रति रौ वीवरौ पत्र-20, पानादीठ लैणां-14, लैणदीठ आखर-48। आ प्रति जिनचरित्र सूरी संग्रै में है।
29 मानमंजरीनांममाला- पद्य-113, रचेता -ब्रद्रीदास लेखन संवत्-1725 बैसाख वद बारस, जैतारण, लिपिकार पं. श्री यशोलाब गणि। प्रति रौ वीवरौ- पत्र-1-, पानादीठ लैणां-14, लैणदीठ आखर-40, आकर ओपता है। प्रति अभय जैन ग्रंथालय में है।
30. अनेकनाममाला- रचेता-नन्ददास, सबदकोस प्रति 1 मात्र, पत्र-11, ध्वंद संख्या-66 (कविराय मोहमसिंघ संग्रै)
प्रति-2 पत्र 37, छंद संख्या 291 (केवराम दादू पंथी उदैपुर संग्रै)
31. अनेकारथीनांममाला- रचेता नन्ददास पत्र 14, पद्य-119,
प्रति-2, पद्य 119, लि.का. 1861 (केवलराम दादपंथी संग्रै, उदैपुर, साहित्त संस्तान उदैपुर में भी प्रति है)
32. नाम निकेत- बिहारीदेन देथा, साहित्त संस्तान ग्रं.सं. 632, पद्य 19, पत्र सं. 3, पानादीठ लैणां 15, लैणदीठ आखर 14-17 ग्रंथ अपूरण।
33. मान मंजरी- रचेता-नन्ददास, लिपिकार- अम्रतलाल, वि.सं. 1941, प्रयायवाची सबद, साहित्त संस्थान उदैपुर में इण री चार प्रतियां है। पद्य-265, पत्र सं. 15, पानादीठ लैणां-15,लैणदीठ आखर 18-16, ग्रंथ अपूरण , लिपी पढ़णजदोग। 248 पद्य घमआ सूं घणा है।
20 सूं लेय'र 33 तक ग्रथां रौ वीवरौ राजस्था रा हस्तलिखित ग्रंथां री सूची, साहित्त संस्तान सूं छपी विण मुजब है।
आधुनिक काल में राजस्थानी भासा रा कोस बणावण रौ काम लगोलग परगतीसील रह्यौ है अर अबार तांई केई कोस प्रकासित व्हैचुका है।
34 राजस्थानी सबद कोस-पदम स्री सीताराम लालस रौ औ कोस सबूं सिरै मांनियौ जावै है। 1928 में सीताराम लालस कोस बणावलम रौ काम हाथ में लीधौ। सन् 1958 ई. में इण बड़ा कोस रौ पैली भाग छिपयौ। 1978 में नव जलिद रौ औ कोस 9*11 इंच नाप छः हजार पानापूठांम ें छपियौ। इण सबद कोस रौ मंडाण (भुमिका) सीतराम जी 268 पानापूठां में राजस्थआनी साहित्त रा इतियास रौ बणाव करियौ, लगैटगै 2 लाख सबदां रा कोस में संबदाक अणूंती विद्वाता सूं राजस्थानी सबदां री आतमा नैं उजागर करण सारू राजस्थानी सबद, विम सबद रा व्याकरणिक सरूप, तत्सम रूप, प्रयायवाची न्यारा-न्यारा अरथां रा राजस्थानी साहित्त सूं दाखलां विलोम, क्रिया, प्रयोग, विण सबद रा प्रयोग वाला मुहावरा, कैवतां, रूप भेद, यौगिक सबद, अल्पारथ, मैतववाची, क्रिया- रूप इत्याद रौ वरणाव करियौ है।
ज्यूं 'हाथ' सबदूं जुड़िया थका 171 मुहावरा, आंख, आंधौ, आँणौ, ऊंट, करम, चक्कर, टकौ, दिन, सास, पांणी, तलवार इत्याद सबदां रा मुहावरां नैं देख'र लखावै है'क ज्यूं-राजस्थानी मुहावरां अर कैवतां रौ कोस भी णि कोस में भेलौ करीजग्यौ है. कोस में प्रयायवाची सबद देख'र राजस्थानी री सबदां री दीठ सूं सबलाई अर कोसकार री पिण्डताई माथै अचूंबौ आवै। सूरज रा 127 प्रयाय, जीभ रा 16 प्रयाय अर 36 मुहावरा तलवार रा 69 प्रयाय, अर इणीं तरै, जुद्ध, चन्द्रमा, दाता, समुद्र, सत्रु, सिंध इत्याद रा प्रयायवाची खास लिखम जोग है। एक सबद रा राजस्थानी साहित्त मे ंबरतजीण वाला न्यारा-न्यारा अरथां री दीठ सूं 'सारंग' संबद रा 89 अरथ, वीर रा 72 अर कागलौ, चढ़णौ, जोग, वाट, दिन, संख, सत, सजियोड़ौ, सर, सरभ, सहज, सार इत्यादत सबदां रा न्यारा न्यारा अरथ देख'र इणभासा री सबलाई रौ प्रमाण देखियौ जा सकै। संस्क्रत रा सामान्य कोस में गोल सबद रौ एक अरथ जद'क सीताराम लालस रा कौस मैं गोल सबद रा 19 ्‌रथ दिया थका है। इण तरै सहज रा संस्क्रत को समें 4 अरथ है जद'क सीताराम वालस रा कोस में 42 अरथ दिया थका है।
णइण कोस में इतियास चावा, मिनखां, सांस्कृतिक ठांणां, धरमाऊ सम्प्रदायां मेला-खेला, तीज-तिंवारां केई खास रीतां इत्याद री विगत वार खास जांण कराईजी है।
औ कोस राजस्थानी री व्याकरण, साहित्त, धरम, संस्क्रति भुगोल, अर इतिहास री आरसी है। इणमें राजस्थानी अनेकारथ कोस जोड़ी सबद कोस (युग्म सबद कोस) प्रयायवाची कोस, विलोम सबद कोस इत्याद समायोड़ा है। सांचामई में औ राजस्थानी संस्क्रति रौ 'ग्यानकोस' कह्यौ जा सकै है।
35. राजस्थानी-हिन्दी छोटो सबदकोस- पदमस्री सीता राम लालस दो खण्डां में राजस्थानी रौ औ छोटौ कोस सम्पादित करियौ। इणरा पैला खण्ड में अ सूं न तक अर दूजा खण्ड में प सूं ह तक कुल 1726 पानापूठां में राजस्थानी रा ढाई लाख सूं घमा सबद है। बड़ोडा कोस में हरेक सबदा रा न्यारा-न्यारा अरथां रा दकाला दिरीजिया विणांर इणमें तोटौ है। इणीं तरै मुहावरा-कैवतां री खास विगत भी नीं है। संग्या, विसेसण, क्रिया, यौगिक इत्याद रै साथै अरथ देय दिया है। सबद संख्या री दीठ सूं औ कौस अबरा तक छफिया राजस्थानी कोसां में सबसू बड़ौ कोस है।

36. राजस्थानी- हिन्दी सबद कोसरजास्थानी भासा रौ औ मैताऊ कोस आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया रौ तीन खण्डां में संपादित अर छापियौ थकौ है। णरा पैला खंड में 'अ' सूं 'न' तक, जूदा खंड में 'प' सूं 'ल' तक अर तीजा खण्ड में 'व' सूं 'ह' तक 20*26/8 रा नाप में कुल 1618 पानापूठा में मुद्रित है। इण कोस में केी मुहावरेदार सबदां नैं भी भेलाकरिया है। ज्यूं 'आंख-फूटणी' आंख 'मींचणी' इत्याद। औ कोस गुणवत्त री दीठ सूं मैताऊ है। राजस्थानी सबद कोसां री एक मैताऊ कड़ी है।

37. राजस्थानी हिदी लघु कोस- राजस्थानी री कोस परम्परा में बी.एल. माली 'असांत' री मारफत संपादित इण को राविसै में ही 'असांत' औ बतावै है 'क' णिमें सौ प्रयास जरुर करीजियौ है क आधुनिक साहित्त अर बोलचाल रा सबद ज्यादा लिया जावै। णिरा आकार प्रकार री विवसता थकां भी इमें लटैगटै बा'रै बजार सबद आ पाया है। इणें घणा सबद देवणा सूं पाना भी बढ़त अर इणरै सांथै मौल भी बढ़तौ, तौ भी आं कोसीस करीजी है'क मैताऊ सबद जठा तक व्है सकै छूटै नीं, अरथां री विस्तरा कम करणौ पड़ियौ ह। जठै तक रूप-भेदां, मुहावरां-व्याकरणगता पिछांण इत्याद रौ सवाल है विणांनै विण सबद रै साथै पेटा में बलाी जिया है। ऐड़ौ करती दांण एक ई तरै रा अरथां नै अल्प विराम (,) सूं अर न्यारा- न्यारा अरथां नै अरध विराम (;) सूं दिखाी जिया है।2
"मुहावरां, दाखलां, दूजा रूपां इत्याद नै कोठां () में दिखावण री कौसीस करीजी है। इण कोस में भी अलेखूं काम रा सबद छोडणा पड़िया है।"
38. राजस्थानी-हिन्दी-अंग्रेजी सबदकोस8- औ कोस राजस्थानी सबद कोसां री रीत में नवी पैल करै. राजस्थानी रौ पैलौ त्रिमासी कोस है। इणरा संबदक भंवरलाल सरमा अर डॉ. सुखवीर सिंह गेहलोत है।
प्रो. जहबूर खां मेहर रा सबदां में इण कोस री उद्देस्य राजस्थानी भासा रा चुणियोड़ा सबद प्रस्तुत करम तांई सांवटीजियोड़ौ है। पण इण उद्देश्य नै पावणौ भी सरल नीं है। हरेक भासा रा सबदां री आपरी खास प्रक्रति अर अरथ व्है, किंणी दूजी भासा में विणरौ प्रयाय सबद मिलणौ हमेस संभव नीं है, ऊपरथी अरथ समान व्हेण सूं भी हेस गूढ़ अरथ में भिन्नता निजर आवै। कदेई-कदेई एक भासा रा सबद रा अरथ रै आस-पास रा ्‌रथ वालौ सबद भी दूजी भासा में नीं मिलै। इण तरै री हालत में खुलासै अरथ समझावण रै अलावै दूजौ निस्चै ई समानारथी सबद सोधण रौ काम अमूंतौ अबखौ व्हेयग्यौ व्हैलो, गैराई सूं भणियां पछै इण त्रिभासी कोस रै संबंध में कीं तथ सांमी आवै।
(1) आख लैण में अनुस्वार वाला सबद पैली राखीजिया है। ज्यूं 'अं' बणणवाला सब सबदगां रा अन्तिम सबद रै पछै 'अ' सूं बणणवाला सबद दीरिजिया है।
(2) 'ड' आखर नैं राजस्थानी रीत मुजब 'क' वरग रा छेहाल आखर रै रूप में राखीजियौ है। राजस्थानी में 'ड़' सिरफ अनुस्वार नीं बल्कै 'ड़' रै रूप में पूरौ व्यंजन है।
(3) कोस रा छोटा रूप रा मैताऊपणा रौ अंदाजौ सम्पाद कां रा हिंवड़ा में आछी तरै सूं जमियौ थकौ रह्यौ इण कारण सिरफ 15000 हजार सबदां नैं ई इण कोस में जागा मिल सकी। सम्पादकां आ कौसीस जरूर करी है'क जथासम्भव सबदां रा अरथ व्याकरणीं दीठ सूं दिया जावै।
(4) किंणीं राजस्थानी सबद रौ हिन्दी कै अंग्रेजी में समानारथीं नीं व्हेती दांण अरथ नैं थडोा में लिखण री कौसीस करीजी है।
(5) उपर्सग कै प्रत्यय लगावण सूं बणणवाला सबदां अर यौगिक सबदां नैं भेला अणूंतौ जरूरी व्हिया ई करीजिया नीं तौ इण तरै रा सबदां नैं छोड़ दिया है।
(6) 'द' अर 'ध' रै बीच रा खास उच्चारण सूं बणणवाला सबदां री जागा 'द' रै पछै अर 'ध' सूं पैला राखीजिया है। क्यूंक णि उच्चारण में 'द' घणौ उदात्त व्है जावै है जद'क 'ध' री धुनि नैं थोड़ी तोड़णी पड़ै-ज्यूं- दड़ौ-बड़ी भेद, दड़ौ-टीबौ, डार धडौ-समतोलन गुट, समुह इत्याद ऐड़ा केई सबद है।
(7) इण ई तरै 'ब'अर 'भ' रै बीच उच्चारण वाला 'ब' नै भी बीचै ही जागा दीरीजी है।
(8) 'ल' नैं पैलो व्यंजन मानता थका लवैण में 'ल' सूं पैला राखीजियो है।
(9) राजस्थानी में (') रेफ रौ प्रयोग नीं व्हे पण खातर कोस में जगा नीं दिरीजी है।
(10) राजस्थानी में आधौ अनुनासिक व्यंजन सबद रै सरू में अतिरिक्त अनुस्वार बण जावै इण कारण कोस रा पन्द्रै हजार सबदां मांय सूं एक भी ऐड़ो नीं है। जिणरै बीच में न, म, ण नै आधा रूप में प्योग करीजियो है।

39. राजस्थानी औद्योगिक सबदावली9- राजस्थानी री इण सबदकोसां री रीत में औ एक नवौ प्रयोग है। ौ कोस डॉ. ब्रजमोहन जावलिया रौ है। जिणरै आधार माथै आपन राजस्थान विस्वविद्यालै जैपुर सूं. पी.एच.डी री उपाधि मिली। अबरा औ कोस र्जस्थानी लोक जीवन सबदावल ीर रै नाम सूं साहित्त अकादमी, नवी दिल्ली री मारफत छपियौ।
औ कोस डॉ. जावलिया रा सबदां में "इण कोस में सबद मेवाड़ खेतर रै सींवाड़ै री मालवी हड़ौती ढुंढाड़ी, वागड़ी, मारवाड़ी, भीली, इत्याद बोलियां रा खेतरां सूं भेला करिया।' इण में जथासंभव सबदां री जुतपत अरविणारौ विकास क्रम भी देवण री कौसीस करीजी है। सबदां रा सरी अरथ रौ ग्यान पावण सारू इणां ऊद्योगां सूं जुड़ियां साधना औजारां अर व्तुवां रा लगैटगै 625 रेख ाचितराम भी दिरीजिया है। णिरै साथै ई लोकोक्तियां, लोकगीतां अर साहित्त में वरतीजण वाला अंसां नैं भी जकौ इण सबदां सूं जुड़िया थका है जथजोग राखण री कौसीस करीजी है।
राजस्थानी कोस परम्परा में इण तरै री सबसूं पैली अर मौलिक कौसीस है। राजस्थान रा दूजा खेतरां में भी इण तरै रा काम सरू करण री अणूंती जरुरत है।
औ प्रबंध दो खण्डां, 23 प्रकरणां, अर 82 अध्यायां में बांटियौड़ी है। पैला खण्ड में खेती अर पसुपालण री सबदावली है। दूजा खण्ड में न्यारा-न्यारा काम धन्धां (घर-बणावणौस कपड़ौ बणावणौ, रंगाई, छपाई, बंधाई, सिंवाई, धुवाई, सोना, चांदी, पीतल, इत्याद धातुवां, वस्तर बणावण सूं जुड़़ी सामग्री बणावणौ, सिणगार री सामग्री बणावणौ, काट उद्ोयग, चाम-उद्योद, माटी अर दूजा घराऊ उद्योग धन्धां री सबदावली दिरीजी है। इणें 11000 हजार रै लगैटगै अरथाऊ सबद आया थका है।
औ कोस जद'क राजस्थान रा न्यारा-न्यारा हिस्सां में चलणवाली उद्योग धन्धां री तकनीकी सबदावली रा कोस रै रूप में है पण साचांणी में औ इण पूरा प्रदेस रा लोक जीवण रो लेखै है। इण कोस रौ हरेक सबद घर-घर, गाम-गाम जाय'र लोगां रा मूंडा सूं सुण'र इण कोस में भेला करिया है। इण कोस में भेला करिया थका केी सबद ऐड़ा व्हैला जिणां रौ प्रयोग सिस्ट साहित् अर सबदां कोसां में नीं व्हियौ है।
40. स्री बज्रलाल भाणावत केसरिया जी, जिला उदैपुर रा रैवासी हा जकौ वागड़ खेतर में चलण वाला राजस्थानी रा 5-6 हजार सबदां नैं भेला कर'र विणारा अरथ करिया वो काम विमारा बेटा जकौ श्री उपेन्द्र अणु खुद राजस्थानी रा साहित्तकार है, विणारै पास में रुखाल'र राखियौ है।10
41. "इणीं तरै वागड़ खेतर रा राजस्थानी सबदां रा संग्रै अर अरथ, संदरभ रौ कां साहित्त संस्थान में चैलरैयो है। औ काम डॉ. ब्रजमोहन जावलिया री देख-रेख में है। इण में लगैटगै 10000 हाजर सबदां रौ संग्रै है।"11
42. राजस्थानी रा सबदां रा संग्रै रा काम में साहित्त संस्तान सूं छापी 'राजस्थानी भीलां री कैवतां' री पोथी रा छेहला पान्ड़ां में कीं काम व्हियौ थाकी है। जिणमें 749 सबद फूलजी भाी भील दिया है। पम विणांरी भंसा कोस बणावण री नीं लखावै। विण पोथी में आई कैवतां नै आसानी सूं कोई भी समझ सकैला। मि दीठ सूं विणां बासा दिग्यान रा नेम अर विग्यानिक दीठ सूं सबदां री जुतपत सोधण रा काम री माथा पच्ची नीं करी।
43. इण कोसां री रीत में राजस्थानी भासा री खानाबदोसी बोली रौ बणजारी सरुप जकौ ऐसिया अफ्रीका, अर यूरोप रा देसां में चलण में है। जकौ विणां देसां में रोमा बिणजारां रै नांम सूं जांणी जंण वालसी जात जकौ मूल में राजस्थानी बिणजारा है।
इमां रोम बिणजारां रा जीवण में बरतीजणवाला सबदां रौ एक कोस 1942 में दूजी वार छापियौ। इणरौ नांम 'सबकी बोली' हौ। औ कांम डॉ. रघुवीर करियौ।
44. इन्टरनेसनल, ऐकैडमी ऑफ इण्डियन कल्चर, लाहौर सूं आजादी पैला एक कोस छपियौ, इणमें 'रोमणी' रौ एक पाठ है। जिणमें 350 सबद है, दूजा भारतीय तुलनात्मक सबद दिया जिणमें राजस्थानी रा खास रूप ऐ सबद इंग्लैंड रा वैल्स प्रांत रा रोमावां री बोली सूं करिया थका है।14
45. तोलराम जी रा संपादन में 'वरद' सोध-पत्रिका रा सरुपोत रा अंकां मांय सूं एक में 'व्यवहारिक रौ संग्रै' छापियौ।
46. सबद-संपदा- स्री मूलचंद प्राणेस आ को रुपी पोथी राजस्थानी संपादित साहित्त में विद्वानां रा नीचे दिया सबदां रा अरथां रा संसोधन रुप में छपाई।
47. 'मरुभारती इत्याद सोध पत्रिकावां में सबद'- चरचा नाम सूं एक खण (स्तंभ) चालतौ हौ।
48. स्री किसन सिंह जी बारठ (साहपुरा) क्रांतिकारी केसरी सिंघ रा पिता भी एक छोटा राजस्थानी सबद कोस री रचना करी।
49. जोधपुर जगतपौसाल (विस्वविद्यालै) में डॉ. मोतीलाल गुप्त अर राजस्थान जगतपौसाल, जैपुर, में डॉ. सरनामसिंघ सरमा भी आपरा भणेसरां-सोधेसरा सूं राजस्थानी सबदां माथै लघु सोध प्रबंध रा रूप में व्यावसायिक कोस री योजना बणाई पण विणांनै सफलता नीं मिली।
50. आलेख लेखक राजेन्द्र बारठ जोधपुर में चलणवाली खांण रै मांयली राजस्थानी सबदावली भेली करि वइणारा वरणणात्मक अरथ करिया जकौ आलेख लेखक रा संग्रैमें है।
51. फरहंग-ए-स्थलात-ए-पेथवरां- नांम रा उड़दू रा कोस में भारत रा खास स्हैरां रा धन्धां री सबदावली है। जिणमें जैपुर सूं जुड़ी सबदावली है। इण कारण इण कोस में भी राजस्थानी सबद घणाई आया है।
52. हरियाणवी कोस- जिणें 25000 हजार सबद है। जकौ मिनाकस्‌ी, प्रकासन, हरियाणा सूं छापियोड़ौ है। इणमें आया सबद राजस्थानी में चलणवाला सबद है। इणमें जकौ कैवतां दी थखी है वै सब राजस्थान में चलै।
53. गुजराती हिन्दी सबद कोस- इण कोस में लगैटगै 20 हजार सबद है। जकौ 1961 में छपियौ। औ कोस गुजराती री अबार री लिपि में नीं लिखियोड़ी है औ देवनागरी में लिकियोड़ी व्हैण रै कारण सबदां रा सही रुप सांमी आया। ै सब सबद सुद्ध राजस्थानी है। इण कोस रौ काम नानुभाई बाोठ करियौ। औ गुजरात विद्यापीठ सूं छपियौ। गुजराती नैं देवनागरी में लिखाणा सूं वा राजस्थानी व्है जावें।
54. राजस्थानी भासा रा सबदकोसां री पांतम में इणरां ग्रंथां रा कोस बणावण रौ कां म व्हियौ. जिणें एक ग्रंथ में आया सबदां रौ पैलै दाखणौ है। इणरौ नांम है 'प्रिथ्वीराज रासौ सबदकोस'। औ काम देवजोग सूं अणछपियौ रैयग्यौ अर आगै नीं बड़ियौ। साहित्त संस्थान राजस्थान विद्यापीठ रा निदेसक प्रयो देव कोटारी रै मुजब तीन लाख, अस्सी हजार सबदां रा अरथ कर'र एक एक कारट में न्यारा-न्यारा लिखीजिया। जकौ साहित्त संस्थान में संभाल'र राखिया थका है।
56. मीरां सबद कोस- मीरां रा नाम री छाप वाला दो हजार सूं वत्त मीरां बाई रा भजनां रौ वरणाऊक्रम में आा थका सबदां माथै टिप्पण अर हिन्दी में अरथ करीजिया है। इणरै संपबादन रौ काम स्री कस्ण चंद्रसास्त्री, उदैपुर करियौ। औ कोस अणछपियौ है। जकौ इमरा व्यक्तगत संग्रै में है।
56. जंभवाणी काव्यकोस- जांभोजी महाराज री बणायोड़ी जंभवाणी जकौ विष्णोई सम्प्रदाय रौ अबोट धरम ग्रंथ मांनीजै। जिण में जांभोजी महाराजा रा नीतिवचन है। जकौ पद्यात्मक है। इण में आयोड़ा सबदां रौ एक न्यारौ कोस बणाय दियौ जकौ गुरु जम्‌ेश्वर विस्वविद्यालै हिसार रा डॉ. किसनाराम बिस्नोई संपदान करियौ। औ कोस छापियोड़ौ है।
57. अणभैवाणी जी सबदकोस- राजचरण जी महाराज री रची थकी अणभैवाणी जी राजस्थानी री महान ग्रंथ है। जिणें आया थका सबदां रौ कोस बणाजिियौ जिणमें मूल सबद रै आगै विणरौ हिन्दी में अरथ दियौ थकौ है। इण कोस रौ सम्पादन विनतीराम जी महाराज रामस्नेही मालुपुरौ जिलौ टौंक, राजस्थान करियौ। इणें कुल 700 पानापूठां में 28 हजार 500 सबद आया है।

विनतीराम जी जकौ आपरा ग्रहस्त जीवण में बद्रीलाल रै नां सूं जांणीजता हा अर अध्यापन व्यवसाय मे ंराज री नौकरी करता है। जल म सू ं आपरै परिवार रा धारमिक विचार अर वातावरण रै कारण इणांर ौजवीण पूरी तरै प्रभावित व्हियौ. ऐ आपरी राज री नौकरी री वगत भी हरेक टैम राम भजन में मगन रैवता हा। भमाई रौ गुण इमंनै और भी घणौै ध्यान भगन रैवण में स्हारौ दियौ. स्वाध्याय में अधिक रूप में धारमिक पोथियां री भणाी खास ही। स्वाध्याय सूं ग्यान-अरजन लेखन सगति रौ वदापौ व्हियौ।

सिक्सक पद सूं सेवा निवरत व्हेय'र आचार्य रामकिसोर जी महाराज जी आग्या सूं रामचरण जी महाराज रा जलम ठाणा बनवाड़ा में रामद्वारौ बणावण रौ काम पूरौ करायौ। इण कांम रै पछै आप रा मन में वैराग उपजण रै कारण 5 जुलाई 1979 नैं आपरी जोड़ायत सरजूदेवी अर बेटा रामनारायण विजयवरगीय नै घर रौ भार संभालाय'र ग्रस्थ जीवण छोड़'र रा मकिसोर जी महाराज सूं चादर लेय'र चेला बणगा।

अणभैवाणी जी री भणाई सूं अनुभव व्हियौ'क वाणी जी मे बरती जिया थका सबद जकौ केई अबार बरताव में नी है, सबदां रा अरथ करया जावणा चाहिजै। औ संकल्प आपरा मन में उवजियौ जिणसूं साधारण पाठक भी वाणी जी में भरयौ थकौ ग्यान आसानी सूं लेय सकै। ऐ आपरा गुरु नैं अरज करी, गरुजी घणा राजी व्हेय'र हुकम फरमाय दियौ। इण कोस नैं बणावण सारू आपनै गरुजी री तरफ सूं सम्मानति करीजिया। इण का में ओपनै 8 बरस लागा। इणनै कोस नैं स्री राम निवास धाम ट्रस्ट साहपुरा सूं संचालित स्री रामस्नेही मुद्रलाय मुद्रित करियौ. णिें मूल सबद जकौ अणभैवाणी जी में आयौ विणरौ अरथ सावल समझाइजियौ है।
अणभैवाणीजी रा एक पाना में आया सबदा ंरा अरथ सबदकोस में पाना दीठ बांटिया थका है। सबदां रै जुतपत री माथा पच्ची नीं करीजी है।
एक सबद कै दो तीन सबद कै एक वाक्य कै एक पद्यांस रै हिसाब सूं अरथ करीजिया है आ व्यवस्था अणभैवाणीजी रा पाठकां रा सुबिता नैं ध्यान में राख'र करीजी लखावै। अकारादि क्रम सूं प्रबंध नीं है इण कारण अणभैवाणी जी रा हरेक पाना में आया खास, सबदां रा अरथ सबदकोस में अणभैवाणी जी ग्रंथ रा पानापूठाँक लगाय'र दिरीजिया है। जिणसूं केई सबद कोस में केई वार पाछा आयगा है। अणभैवाणी जी रा पाठकां रै सारू तौ ठीक है पण सबदकोसां री मंडत अर घड़त री दीठ सूं कीं ओपरौ अर अजीब लागै। पण राजस्थानी सबदकोसां री रीत में इण सबदकोस री ठावीठौड़ है।
58. प्रारंभिक राजस्थानी सबदकोस- संपादक-तुलराम जोसी, इणांरी जनम 19 नवम्बर 1927 ई. नैं बिसाऊ नगर में व्हियौ। आप पेसा सूं सिक्सक हा। संस्क्रत, हिन्दी राजस्थआनी रा आछा जांणकारा हा।
आप 1956 ई. में राजस्थानी सबद कोस त्यार करण रौ मैताऊ काम हाथ में लियौ, पण विपरित हालतां रै कारण पूरौ नीं व्हियौ। इण राजस्थानी सबदकोस रौ कीं भाग वरदा रा दो अंकां में छपियौ आगै क्रम लगोलग नीं चलियऔ इण कोस रै सम्बंध में कीं खास बातां ऐ है।
(1) इणरौ खेतर राजस्थान रौ सेखावाटी खेतर हीं है।
(2) इणमें सिरफ संग्या सबद लिरीजिया है। इण में मूरत संग्यावां ही लिरीजी है।
(3) हिन्दी जगत में चलता सबदां नैं छोड़ दिया है।
(4) खास कर'र सबदां रा एक वचन अर पुललिंग रूप लिरीजिया है।
(5) साधारण धुनि बदलण सूं बणणवाला स्त्रीलिंग अर अनेकवचन सबदां नैं छोड दिया है।
(6) किंणी व्सुत रा नामां रै साथै पूरा ँग भी देवण री कौसीस करीजी है।
प्रारंभिक राजस्थानी धातुकोस भी वरदा रा प्रेमी पाठकां री सेवा में देवण री कौसीस करी जावैल इण कोस में आया सबद इण तरै रा है जिणरौ बंटवारौ इण भांत करीजै है-
(1) धरती, जल, वायु, आद (2) वनस्पति (3) पसु, पंखेरू, कीड़ा, पतंगा (4) जन, समाज, राज्य (5) सरीरांग (6) रैवास-ठांणा (7) खेत, कूवौ, बाड़ी (8) अन्न भोजन (9) वस्तर (10) आभूसण (11) घरेलू वस्तुवां (12) धन्धां सूं जुडयोड़ी वस्तुवां (13) संस्कार (14) देवता, उच्छब, व्रत (15) खेल
59. जुतपत कोस17-अंगेरजी रा ऐड़ा ई ओरूं अलेखूं सबदां रा मूल स्त्रोतां री खोज अर राजस्थान रा लोक वैवार मं घमई ई वरतीजण वाली अरबी-फारसी री सबदावलीरी प्रमाणिकता जुतपतां री मारफत सूं राजस्थानी जीवन रा इतियासू, समाजू, सांस्क्रताऊ पखां रौ उद्घाटण करणौ खास कर'र इण कोसकार गुणीसर रौ अचूंबाजोग सोध रौ काम है। बाणिया माजन, गुदलक्या सावा, धपला करणौ, घसपस करणौ, घुसपैठ करणौ, छापा मारणा, झोला लेवणा इत्याद साधरम सा लागणवाला सबदां मे छिपिया थका अणूंता मैताऊ सांस्क्रताऊ अरथ वैसिस्ट्रय रौ प्रगटाव इण जुतपतकोस में ओरूं घमा सबदां रा मूल स्त्रोतां, विणांरी जुतपतां, अर विणां में हिन्दु-इस्लामी संक्रतियां रा परम्पराऊ लैण दैण अर मेलजोल वाला तथ्यां नैं अठै देवाण संभव नीं है। एक अदभुत जुतपत कोस जकौ विदेसियां रौं भी ध्यान खींचियौ।
इण तरै 1200 वरसां सूं राजस्थानी सबदा रा कोस बमावण रां केी काम व्हिया। इणां सब कोसां रै अलावै भ ीइण दिस में कोई काम जरुर व्हियौ व्हैला पण अबार तक जकौ जांणकारी व्है सकी विणरौ वीवरौ इण दे सकियौ हूं. जणरै आधार माथै की बातां जरुर समझ में आई जकौ इण भांत है-
(1) राजस्थानी जकौ इण बड़ा खेतर नी लोकवाणी है जिणरा जूना खेतर नैं ध्यान में राख'र राजस्थानी रा साहित्त अर भासा पर काम करीजमौ सिरै रैवैला। इणरौ अरथ औ'क राजस्थान री अबार री सींव में बंध'र काम करीजण सूं राजस्थानी रै साथै न्याय नीं व्है सकै।
(2) भारत अर दुनियां री सबली भासावां जकौ वदापा रा रास्ता माथै चाणै विणांरी तरै राजस्थानी नैं भी आपरी पूरबली परम्परा री आपरा खेतर नी लोकवाणी मेंरचियोड़ा साहित्त नै राजस्थानी री रीत री पांत में राख'र समझणौ अर भणाई करण सूं साहित्त री विण सबली समरथ सूं इण बडा खेतर री लोग वाणी जिणरा जुग जुग में नांम न्यारा-न्यारा व्हेता गया पण सबदां रौ देसजपणौ वो ईज है। इण आधार नैं ध्यान में राख'र राजस्थानी रा सबला पख नैं साहित्त संसार में सांमी लावणौ चाहिजै।
(3) जूनिया कोसां री रीत में अर नवोड़ा कोसां री रीत सूं राजस्थानी री जुग री हालत स्याफ नजिर आवै। जूनिया कोस छंदोबद्ध है, नवाकोसां में सिरफ सबदां रा अरथ दिया थका है वै भी राजस्थानी में नीं है। इण तरै रा आधुनिक काल में कोस दूजी भारत री भासवां रा भी बणिया पण वै दूजै ईस्तर माथै बणिया जिणसूं विण भासा नै इण जुग में ापरा पग जमावण में कोई तकलीप मैसूस नीं व्ही। अबार री दूजी भासावां में पैला पाऊंडा में विण भासा रा सबदां रा विण भासा में ईज ्‌रथ दिरीजिया जिणसूं विण भासा रा भणेसरा, अर गुणीसरां नैं आपरी भासा पूरणता रै साथै मिली जिणनै वै पूरा रूप में सीखी पछै हौ ापरी भासा रा दुभासी-त्रिमासी सबदकोस बणाया। राजस्थानी रा आधुनिक काल रा कोसां में ेक भी कोस ऐड़ौ नीं है, जिणें राजस्थानी सबदां रा राजस्थानी में अरथ समझाईजिया व्है। इणरौ कारण कीं भी व्ही पण औ तौ तै करणौ ईज पड़ैलाक आखिरआपां कांी, क्यूं अर किणरै वास्तै करणौ चावां ? आपां कांी संदेस देवणी चावां ?
(4) आज राजस्थानी संक्रमण रा दौर सूं गुजर रैयी है। इणरा पग जमता जा रह्या है। अबै इण भासा नैं आधुनिक घड़त अर मंडत रा कीं कोसां री जरुरत है, जको राजस्थानी सूं राजस्थानी में व्हैणा चावै बादमें विणांरा दुभासी तिभासी कै दूजी तरै रा कोस भलांई बमै जिणसूं राजस्थानी में कोस बणावण री रीत भासाई निष्ठा अर जुगरा राजस्थानी वातावरण नैं राजस्थानी रा साहित्तिक संस्कारां सूं संस्कारित करीजण सारू जरुरी है। जकौ कोस केई तरै रा व्है सकै पण कीं सबसूं जरुरी है-
(1) बडौ राजस्थानी प्रयायवाची कोस- इणनै बणावण सारू एक मंडली री जरुर है जकौ न्यारा-न्यारा खेतरां रा एक-एक दो-दो जणा व्है। जिण में राजस्थानी रा जूना साहित्त रा सबदां रै साथै आम बोलचाल रा सबदां नैं भेला भेलणा चाहिजै और काम कई बरसां तक लगोलग चालतौ रैवणौ चाहिजै। इण काम नैं बड़ी दीठ में राख'र मानकता री निरख परख री समझ रै साथै करीजणौ आज रा वगत में असंभ कोनी जकौ करीजमौ जुग री जरुत है।
(2) बड़ौ राजस्थानी अनेकारथी सबद कोस- (3) राजस्थानी जोड़ी सबद कोस (युग्म शब्द कोस) (4) राजस्थानी एकाखरी कोस (5) राजस्थानी रा साहित्तकारां रा साहित्त रा सबदकोस (6) राजस्थानी रा महान ग्रंथा रा सबदकोस इत्याद।
इणां माय सूं 1-3 तक रा कोस तपिपोड़ा राजस्थानी रा गुणीसरां रीं मंडली करै तौ सिरै बाकी रा कोस रा काम सोध संस्थानां में सोध परियोजनावां रुप में बड़ी पौसालां (कॉलेज) जगतपौसालां (विस्व विद्यालय) में सोधप्रबंधा रा रूप में भी कराया जा सकै।
गुणीसरां री मंडली में औपचारिक भणाई री डिग्रियांवालां रै अलावै जोगा गुणीसरां नैं सोध र इण कां में जोड़णा चाहिजै।
तलटीपां-
1. (अ) बहुलर सूं संपादति व्हेय'र सन् 1879 में छपियौ।
(ब) पं. अंबालाल प्रे. शाह-जैन साहित्त रौ बड़ौ इतिहास- भाग-5, पानापूर्ठांक-78-79
(स) 'पाइयलच्छमीनांममाला' भावनगर सूं गुलाबचंद लल्लुभाई री मारफत, वि. सं. 1973 में छापियौ।
(द) पं. बेचरदास री मारफत संसोधित व्हेय'र मुम्बई सूं छापियौ।
2. डॉ. कमलेस कुमार जैन- जैनाचारायां रौ अलंकारसास्त्र में योगदान-पानापूर्ठांक 8-10
* पं. अंबालाल प्रे. शाह- जैन साहित्य रौ बड़ौ इतियास (भाग-5) पानापूर्ठांक-81
* औ ग्रंथ चौकंभा संस्क्रत सीरीज बनारस सूं छापियौ। इणसूं पैला अभिदान संग्रै में सक-संवत 1818 में महावीर जैन सभा,खंबात सूं अर वलिद्याकर मिस्र री मारफत कलकत्ता सूं छापियौ।
* पं. अंबालाल प्रे. शाह- जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5, पानापूर्ठांक 87-88
* देसीनांममाला- पिसर अर बुहलर सूं संपादित- मुम्बई संस्करत सीरीज, सन् 1880, बनरजी सूं सम्पादित कलकत्ता सन् 1931, स्टडीज ईन हेमचन्द्राज देसीनाममाला बाई भायानी- पी. वी. रिसरच ईन्स्टीट्यूट, वाराणसी, 1966 छपिया थका है।
3. डिंगल नाममाला, हमीर नाममाला, नागराज डिंगल कोस, अवधान, माला, नाममाला, डिगलकोस, अनेकारथी कोस, एकाखरी कोस, एकाखरी नामंमाला इत्याद रौ वीवरौ- डिंगलकोस-स डॉ. नारायणसिंघ भाटी रै मुजब है।
4. पद्म स्री सीताराम लालस- राजस्थानी सबद कोस भाग-1-9 राजस्थानी सोध संस्थान, चौपासनी सूं छपियौ।
5. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर सूं छपियौ है।
6. राजस्थानी हिन्दी सबद कोस- बदरी प्रसाद साकरिया भाग-1-3
7. बी. एल. माली 'असांत'- राजस्थानी हिन्दी लघु क्रोस- म्हारी बात-पानापूर्ठांक-2
8. डॉ. सुखवीरसिंघ गेहलोत अर स्री भंवरलाल सरमा- राजस्थानी हिन्दी अंग्रेजी कोस- जोधपुर सूं छपियौ है। मंडांण-प्रो. जहूर खां मेहर।
9. प्रो. जहूर खां मेहर- मंडांण- राजस्थानी-हिन्दी-अंग्रेजी सबद कोस. डॉ. सुखवीर सिंघ गेहलोत/ श्री भंवरलाल सरमा।
10. डॉ. ब्रजमोहन जाविलाय- राजस्थानी औद्योगिक सबदावली- साहित्य अकादमी नई दिल्ली सूं 2001 में छपियौ।
11. स्री उपेन्द्र अणु सूं मूंडामूुंड बातचीत रै आधार माथै मिली जांणकारी।
12. साहित्त संस्तान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर में कार्ड अवस्ता में है।
13. स्री फूल जी भाई भील- राजस्थानी भीलां री कैवता- साहित्त् संस्तान राजस्थान विद्यापीठ वि. वि. सूं छपी।
14. डॉ. ब्रजमोहन जावलिया सूं. 30 अक्टूम्बर 2000 नैं विणांरै घरै व्ही बातचीत पर आधारति जानाकीर।
15. पृथ्वीराज रासौ सबदकोस- अणछपीअवस्था में साहित्त संस्थान राजस्थान विद्यापीठ वि. वि. उदैपुर में है।
16. डॉ. उदयवीर सरमा, डॉ. अमोलकचन्द जांगिड़, सं. वरदा, पं. तुलारामॉ जोसी अभिनन्दन विसेसांक) बरस-अंक-4, अक्टू-दिस. 2001 ई. पानापूर्ठांक-26-37
17. डॉ. भवंरलाल जोसी- लेख-विस्वम्भरा, पं.अक्षयचन्द्र सरमा स्मृति अंक सं. डॉ. दिवाकर सरमा-बरस-33, अंक-4, अक्टू-दिस. 2001


ऊपर

राजस्थानी रीतिग्रंथां री रीत रा वीवरा सूं पैला रीती-ग्रंथ सबद माथै विचार करणौ जरुरी है। अठै जिका रीति ग्रंथां री चरचा करी जावै है वै ग्रंथ जिणां में साहित्त सिरजण रा नेम कायदा लिखिया थका है। इणां ग्रंथ में साहित्त रा हर पख पर विचार आचार्य मया सूं रूप में करियौ अरआपरी चिंतन धारा अर अनुभव रा ग्यान री गंगा री ग्यान-उरमियां सूं साहित्त नैं संस्कारित करियौ।
छंदसास्त्र, अलंकारसास्त्र, रससास्त्र इत्याद सब रीती ग्रंथां री रीत में भेला आ जावै।
"छन्द" सबद केई अरथां में बरतीजियौ है। पाणिनी री 'अष्टाध्यायी' में 'छन्दस' सबदा वेदां रौ बोधक है। भागवत गीता में वेदां नैं 'छन्दस' कहीजिया है।
'अमरकोस' (छठा सईका) में अभिप्रया 2 छन्दः आशयः (3.20) छन्द रौ अरथ 'मन री बात' कै 'अभिप्राय' करीजियौ है। विणमें ईज दूजी जागा (3.88) छन्द सबद रौ वश अरथ बताईजियौ है। विणमें ईज 'छन्दः पद्येऽभिलाषे च (3.232)-छन्द रौ अरथ 'पद्य' 'अभिलास' भी करीजियौ है।
इणसूं 'छन्द' सबद रौ प्रयोग पद्य रा अरथ में घणौ जूनौ मालुम पड़ै। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिस अर छन्दस- इणां छां वेदौगां में छन्द सास्त्र में गिणाइजियौ है।
'छन्द' सबद रौ प्रयायवाची 'वृत्त' सबद है, पण औ सबद छन्द री तरै व्यापक नीं है। छन्दसास्त्र रौ अरथ है आखर कै मात्रावां रा नेम सूं उपजियोड़ी विदविद रा वृत्ता री सास्त्रीय विचारणा। सामान्यतया आपारां देस में सबसूं पैली पद्यात्मक पोथी 'रिगवेद' मिलै जिणरा 'सुक्त' छन्द में ई रचियोड़ा है।1
'छन्द' सबद री जुतपत 'छद्' धातु सूं मांनीजै। भारत री जूनी काव्य परम्परा में छंदां रौ कास मैताव रह्यौ। जूना टैम में रिसीमुनी आपरा चिन्तन नैं छंदा री मारफत सूं परगटियौ। 'छन्द' पादोतु देस्य वेदांनैं समै री जातरा करावणवाला जरुरी अंग रै रूप में अंग्रेजियौ है। विण वगत में आज री तरै रा विग्यानी सुबिता समजा नैं मिलता कोनी हा। जिणरै स्हारै वै आपरा सिद्धांतां रौ प्रचार प्रसार करता। इण सारू मौलिक रूप में आपरी पोथियां रुखालण अर आवणवाली पीढ़ियां नैं विणसूं लाभ व्है, इण सारू विणांनै छंदां रौ स्हारौ लेवणौ पड़ियौ जिणांरौ याददास्ती रे साथै सैज लगाव रैय सकतौ।
आपांरा जूना वैदिक ग्रंथां में 7 तरै रा छंदां रौ बरताव मिलै, जिणांमें गायत्री, उस्णिक, अनुस्टूप, पंक्ति, त्रिस्टुप, अर जगति इत्याद है। इणरै पछै संस्कृत साहित्त में छंदां री संख्या हौ'लै-हौ'लै बढ़ती जावै, विसै री विद्विद्ता रै फलरुप अभिव्यक्ति री सैलियां में में केई-रुपता लखावण लागी ्‌र केी तरै रा छंद कवियां बणाया। आदू कवि बालमेक री रामायण में 23 तरै रा, वेदव्यास रा महाभारत में 18 तरै रा अर भागवत में 25 तरै रा छंदां रौ बरतवा देखण में आवै। जद ौ विसै काव्यसास्त्रियां रै हाथै आयौ तद रीतिग्रंथ बणाीजण लागा। काव्य रा न्यारा-न्यारा अंगां माथै इतरौ बारीकी सूं विचार व्हेण लागौ'क वौ खु द अपणे आप में एक मैताऊ विसै बणगौ। संस्कृत में केई काव्यसास्त्रां री रचना व्ही। पण सास्त्रां री दीठ सूं पिंगल मूनि रौ छंदसूत्र घणौ मैताऊ मांनीजै।
पिंगल मुनि रा इण सूत्र री व्याख्या हलायुध भट्ट करी, विणमें वै खुद रा बणाया थका छंदां रा दाखला भी दिया अर विणांरा नाम भी बताया। पिंगल रै पछै संस्क्रत में रीति ग्रंथ रचणवाला गुणीसरां में केदार भट्ट रौ नांम आवै।2 वै वृत्त-रत्नाकर नांम रो ग्रंथ बणायौ। जिण में छंदां रा सिद्धांतां रौ आछौ विरोल मिलै। छंदां रा नेम कायदा नैं समझावण सारू औ ग्रंथ घणौ मैताऊ है।
केदार भट्ट रै अलावै संस्क्रत में महाकवि कालीदास गंगादास अर खेमेन्द्र रा नांम चावा है। जकौ लैणसर स्रूतबोध, छन्दोमंजरी, सुवुत्ततिलक नांम रा ग्रंथ रचिया, पण इणां सबांमें भट्टकेदार रौ वृत्त रत्नाकर ई खास चावौ है। मल्लीनाथ जैड़ा टीकाकर छन्दां रा नेम कायदां रा निरदेस करती वगत वृत्त-रत्नकर रौ ई स्हारौ लियौ, इम ग्रंथ री सबसूं बड़ी खासियत आ है'क इणें हर छंद रा नेम कायद विण ईज छंद में दिरीजिया है। जिण कार न्यारा दाखला देवण री जरुत नीं पड़ी। भट्ट केदार रा समैं में वृत्त जाति समुच्चय नांम रौ एक छंद ग्रंथ विरहांक भी बणायौ। इण भांत आ रीतिग्रंथां री रीत संस्क्रत सूं चालती थकी राजस्थानी तक पौचै।
इम सारू डॉ. नारायण सिंह भाटी लिखै'क राजस्थानी रा कवि संस्क्रत, प्राक्रत, अपभ्रंस सूं चालती आई रीत नैं अपणाई, वै मौलिक छंदा री रचना कर'र परम्परकाऊ नवा आयामां नैं काव्यशास्त्र री भावभोम माथै उतारिया। आज रा जुगम में विणां मांय सूं केई रीतग्रंथ लुपत व्हेगा। पण तौ भी विणांरा नांम रौ लेखौ जरुर मिलै।4
अठै राजस्थानी रीतिग्रंथं रौ मतलब राजस्थान री मतलब राजस्थानी भासा खेतर री देसी भासा सरुप में जकौ भी रिती ग्रंथ लिखीजिया वै राजस्थानी रीतिग्रंथ सीधा रूप में मांनीजिया। इण प्रान्त री देसी भासा रा नांम वगत-वगत में बदलता रैया ्‌र भासा रा रूप में अर विणरी विधावां अर सैलियां अर छंदां इत्याद में बदलाव अर बढ़ोतरी व्हैती रैयी।
पं. अंबालाल प्रे. साह रै मुजब सुभाविक बोलचाल री भासा नैं प्राक्रत कैवै. प्रदेसां रे मुजब प्राक्रत रा अलेखूं भेद है। प्राक्रत व्याकरणां सूं अर नाटक अर साहित्त रा ग्रंथां सूं विणां-विणां भेदां रौ पतौ लागै।
भगवान महावीर अर बुद्ध बालक, लुगायां अर कम भणयि लोगां रै उपकार सारू धरम-ग्यान रौ उपदेसे प्राक्रत (देसज) भा,ा में ही दियौ। विणांरा दिया थका उपदेस आगम अर त्रिपिटक इत्याद धरम ग्रंथांमें है। संस्करत रा नाटक साहित्त में भी लुगायां अर दूजा पात्रां रा संवाद प्राक्रत (देसज) भासा में ईज है। जैन अर बौद्ध साहित्तं समझण सारू अर प्रान्तां री भा सावां रौ विकास जांणण सारू प्राक्रत अर अपभ्रंश भासा रौ ग्यान घणौ जरुरी है। विण जरुरत नैं पूरी कण सारू जूना आचार्य संस्क्रत भासा में ईज प्राक्रत भासा रा अलेखूं ग्रंथ बणाया।
प्राक्रत (देसज) भासा रा वैयाकरण आपरा पैली वाला वैयाकरणां री सैली नैं अपणाय'र अप आपरा अनुभूत प्रयोगां नैं बढ़ाय'र व्याकरणां री रचना करी है। ऐ आप-आप रा प्रदेस री प्राक्रत भासावां नै मैताव देय'र जका व्याकरण ग्रंथां री रनचा करी, वै आज मिलै।
प्राक्रत रै साथै-साथै अपभ्रंस (देसज) भासा रौ विचार नी अठै जरुरी लखावै। प्राकृत रौ अन्त्य सरूप अर जूनी देसी भासवां सूं सीधौ सम्बंध राखणवाली सरुप छठा-सांतवा सीका सूं ई तैव्है चूकौ हौ। महाकवि स्वयंभू भूं व्याकरण री रचना 2 वा सईका में करी ही। जकौ आज नीं मिलै है। इण समै सूं ई भासा रा इण रुप अर नांम सूं स्वतंत्र साहित्त रौ तरतीबवार निरमाण व्हेतां-व्हेतां वौ घणौ सूं घणौ बणतौ गयौ अर आ भासा साहित्तिक भासा री जागा पाथली। इण साहित्त नैं देखतां थकां जूनी गुजराती मतलब राजस्थानी आद देसी भासवां रौ इणरै साथै नैड़ौ जुड़ाव है। औ बिना भरम रै क्हयौ जा सकै। गुजरात, राजस्थान, मालवा आद प्रदेसां रा लोग आपरी देसज बासा जिणनै अपभ्रंस कहै जतौ जिणनै आज जूनी गुजराती कै राजस्थानी कैवे विणमें ईज रूची राखता।5
वामन आपरा 'काव्यलंकार सूत्र' में 'अलंकार' सबद रा दो अरथ बताया है। (1)फूठरापा रा रूप में (सौन्दर्यलंकार) (2) गैणां (अलंकरण) रा रूप में (अलंक्रियतेऽनेन, करणव्यत्तपत्या, पुनरलंकार शब्दोऽयमुपमा दिषु वर्तते) इणांरा मत मजुब काव्यशास्त्र रा ग्रंथ नै काव्यालंकार इण सारू कैवै है'क विणमें काव्यगत फूठरापा रौ निरदेस अर आख्यान कियौ जावै हैं। इणसूं आपां काव्य गाह्यमलङ्कारात् काव्य नैं ग्राह्य अर सिरै मानां हां।
'अलंकार' सबद रा दूजा अरथ रौ तिियास देखियौ जावै तो रुद्रदामन रा सिलालेख रै मुजब दूजा सईका ई. सं. में साहित्तिक गद्य अर पद्य में अलंक्रत करणौ जरुरी मांनीजतौ हौ।
नाट्यसास्त्र में 36 लक्सण गिणाया है। नाट्य में बरतीजण वाला काव्य में इणांरौ वैवार व्हेतौ हौ धीरै-धीरै ऐ लक्सण लुपत व्हेता गया अर इणां मांय सूं कींलक्सणां नैं दण्डी ाद जूना आलंकारिक अलंकार रा रूप में अंगेजियौ। भूसण कै विभूसण नांम रा पैला लक्सण में अलंकारां अर गुणां रौ समावेस व्हियौ।
'नाट्यसास्त्र' में उपमा, रुपक, दीपक, यमक, ऐ च्यार अलंकार नाटक रा अलंकार मांनीजै।
जैन सिद्धांत ग्रंथां में व्याकरण री सूचना रै अलावै काव्यरस उपमा, आद विद्-विद् रा अलंकारां रौ वरताव व्हियौ है। अनुयोग-द्वारसूत्र में नव रसां रै अलावै सूत्र रौ लक्सण बतावतां थकां कहीजियौ है।
निद्दोसं सारमंतं च हेऊजुत्तम लंकियं।
उवणीअं सोवयारं च मियं महुरमेव च।।
मतलब- सूत्र-निरदोस, सारपूरम, हेतुवालौ, अलंक्रत, उपनीत-प्रस्तावना अर उपसंहारवालौ, सोपचार-अविरूद्धारथक अर अनुप्रासपूरम अर मित-अलपाखरी अर मधुर व्हैणौ चावै।
वि. सं. रै सरू सूं पैली ईज जैनआचार्य कविता में कथावां लिखण री कैसीस करी ही। आचार्य पादलिप्त री तरंगवती, मलयवती, मगधसेना, संघदास गणि विरचित वसुदेवहिंडी अर धूरताख्यान इत्याद कथावां रौ लेखौ वि. सं. रा. पांचवा- छठा सईका मे रचिया थका भास्यां में आवै। ऐ ग्रंथ अलंकार रस सूं पूरण है।
विक्रम रा सांतवा सईका रा विद्वान जिनदासगणि महत्तर अर आंठवा सीका रा आचार्य हरिभद्रसूरी रा ग्रंथां में कव्वालंकार रेहिं जुत्तमलंकियं काव्य नैं अलंकारां सूं पूरण अर अलंक्रत कह्यौ है।
हरिभद्रसूरि आवश्यकसूत्र वृत्ति में कह्यौ है क सूत्र बत्तीस दोसां सूं मुगत अर ध्वनि अलंकार सूं पूरम व्हेणी चाहिजै। मतलब औ'क सूत्र इत्याद री भासा भलांई सीधी-सादी सुभाविक व्है, पण सबदालंकार सूं जुड़ियोडीचहिजै। इणसूं कविता रौ कलेवर भाव अर फूठरावा सूं दिप-दिप व्हा जावै है। चावै जैड़ी रूचीवाला रै ऐड़ी रचना हियै ढूक जावै।
जूना कवियां में पुसपदंत आपरी रचना में रुद्रट आद काव्यालंकारिकां नैं याद करिया है। जिनवल्लभसूरी जिणांरौ देवलोक वि.सं. 1167 में व्हियौ रुद्रट, दंडी, भामह आद आलंकारिक सास्त्रां कीमिया (निपुण) हा। ऐड़ौ कहीजियौ है।
आचार्य रतनप्रभसूरी री रची थकी नेमिनाथ चरित्र में अलंकार सास्त्र री विगतवार चरचा आवै है। इण तरै दूजा रा ग्रंथां में प्रसंग मुजब अलंकार अर रस विसै रा लेखा मिलै।6
भारत रा वांगमय में रस सबद रौ लेखौ वेद, पुराण, उपनिसद, रामायण, आयुरवेद ्‌र कामसूत्र आद विद विद रा ग्रंथां में मिलै है। उठै विणांरौ, अरथ ई न्यारौ न्यारौ लिरीजियौ है। साधारण रूप में रस सबद रै। बरताव, सिणगार आद काव्यरस, कसाय, तिक्त, कटु उनाद चाखणजोग पदारथ, घी आद चीकणा पदारथ अर जैर, जल निरयास (रुंखा सूं चवणवालौ तर पदारथ) पारद, राग अर वीरिया में व्है।7
काव्यसास्त्र में रस सबद रौ बरताव पारिभासिक अरथ में व्हियौ है। इण कारण रस्यते आस्वाद्यते इति रस: मतलब जकौ आस्वादित व्है वो रस है। न्यारा-न्यारा आचार्य साहित्त में रसास्वाद रै सम्बंध में न्यारा-न्यारा विचार परगट करिया है।
"अलंकारसास्त्री ग्रंथां नैं देखियां सूं औ पतौ पड़ै'क सगला अलंकार सास्त्री दो पखां मेंबंटिया थका है। पैला पख में लोग आवै, जकौ भारत- रा नाट्यसास्त्र रा विभावानुभाव व्याभिचारि संयोगाद् रसनिस्पतित्‌ः" इण सूत्र नं लेय'र साहित्त में रस री अपरिहारयता नैं अंग्रेजी ही अर दूजा पख में वै लोग आवै है, जका रस री इण भुमिका नैं नीं अंगेरजी, पण विणनै सिरफ काव्य रौ सोभाधायक तत्व मांनियौ।
आचार्य मम्मट आपरा काव्यप्रकास में च्यार आचार्यां रा मतां नैं दिया है। भट्टलोलट, चंकुक, भट्टनायक, अर अभिनवगुप्त। लैणसर ऐ आचार्‌य इज सबसूं पैला रस-सिद्धांत नैं काव्यसास्त्र री गरिमा रै मजुब पद माथखै थापन करी है। इणां च्यार आचार्यां में जठैअभिनव गुप्त री मारफत पेस 'भरत-रस-सूत्र' री व्याख्या नैं सबसूं घणी प्रतिष्ठा मिली। उठै ई भट्टलोलट री व्याख्या नैं पछला आचार्य हलकी-दीठ सूं देखी। पण सांच औ है'क रस सूत्र री व्याख्या ्‌र रस-सिद्धांत रीप्रतिष्ठा री मारग भट्टलोलट ईज खोलियौ, जिण सूं दूजा आचार्यां नैं विण दिसा में सोचण रौ एक नवौ अवसर मिलयौ है।
भरत रस सूत्र में बरतीजिया 'निष्पत्ति' सबद नैं लेय'र आचार्यां में मतभेद हैं क्यूं'क विणनै आधार मान'र न्यारा न्यारा आचार्यां नैं न्यारी-न्यारी तरै री व्याख्यावां करी है। जिण मुजब विणरै मत नैं एक खास वाद रै मांय अंगेजीजियो है। भट्टलोलट विभाव, अनुभाव अर संचारी भाव रा संजोग सूं रस री उत्तपति मांनै है। इण कारण विणांरौ मत उत्तपत्तिवाद रै नंाम सूं जांणीजै है इण मत नैं मांनणवाला भट्टलोलट रै अलावै दूजा आचार्य भी है। भरत रस सूत्र रा दूजा व्याख्याकरा है। संकुक। इणांरौ मत अनुमितिवाद रै नांम सूं जांणीणै। इणांरै मुजब समाजू अंदाजा री मारफत रसास्वादन करै. बरत रस सूत्र रा तीजा व्याख्याकार-भट्टनायक है। इणांरौ मत भुक्तिवाद रै नांम सूं जांणीजै। ऐ भावकत्व अर भोजकत्व नाम रा दो नवा वौपारां री कलपना करी। अर निष्पति रौ अरथ मुक्ति अर संजोग रौ अरथ भोज्य-भोजन भाव सम्बंध करियौ है। भरतरससूत्र रा चौता व्याख्याकार है-अभिनवगुप्त। इणांरौ मत अभिव्यक्तिवाद रै नांम सूं जांणीजै। जकौ मान्य है। अभिनवगुप्त आपरी व्याख्या में समाजू नैं रसानुभूति रौ आसरौ अंगेजियौ है अर रस नैं अलौकिक-आनन्द रूप क्हयौ है। मम्ट रस सरुप निरुपण करता थका लिखयौ है'क लोक में जकौ रति आद थिरभावां रे कारण, कारज अर सहकारी भाव मिलै, वै ईज जे नाट्य कै काव्य में वरतीजै तौ वै लगोलग विभाव, विभावादि सूं अभिव्यक्त व्हेण वालौ थिरृभाव रस कहीजै।
जैनां रा रस-सरुप रौ आधार हमेस भरत-रस-सूत्र इंज रह्यौ वाग्भट पैला रस रौ मैतव प्रतिपादन करता थका लिखियौ हैट' जिण तरै आची तरै पकायौ थकौ, पण बिना लूंण रौ खाणौ सवाद नीं लागै, लिण ई तरै नीरस काव्य ई सवाद नीं व्है है। पाछी रस री परिभासा करता थका लिखियौ हैटक विभाव, अनुभाव, सात्विकभाव अर व्याभिचारी भावा सूं परितोस नैं प्राप्त व्हियो थिरभाव रस कहीजै है। रस री इण परिभासा में भरत रस सूत्र रा भावां नैं ग्रहण कर'र सात्विक भावां रौ भी समावेस करीजियो।
आचार्य हेमचन्दर् रा विभाव, अनुभाव, अर व्याभिचारी भावां सूं परगट व्हेण वाला थिर भाव नैं रस कह्यौ है। विणांरौ औ कथण भरत-रस-सूत्र अर विणरा छेहला व्याख्याकार अभिनवगुप्त रै मत री पुख्ताई करै। हेमचन्द आपरा रस-सूत्र री व्रित्ति में लिखियौ है'क वाचिक आद अभिनय साथै जिणांरी मारफत थ्रि अर व्याभिचारी भाव रूप चित्तव्रिति खास रौ अनुभव करता थका समाजू लोग जकौ कटाक्स अर भुजाक्सेप आद री मारफत साक्सातकार करै अर जकौ काम रुप पूरा व्है, वैं अनुभाव कहीजै। न्यारा-न्यारा रुप सूं रस री तरफ उन्मुख व्हेय'र विचरण करणवाला ध्रिति, ईस्म्रति, आद व्याभिचारी भाव कहूजा है। ऐ विभावादि थिरभाव रौ मपीणौ (अनुमापक) व्हेण सूं लोक में कारण, कारज, अर सहचारी सबदां सूं सम्बोधित करीजै है।
ऐ म्हारा है, ऐ दूजा रा है, ऐ म्हारा नीं है, ऐ दूजा रा नीं है-इण तरै खास सम्बंध नैं अगेज'र कै परहिहार करण रा नेम रौ निस्चै नीं व्हेण सूं साधरण रूपव सूं लखावण वाला ्‌र विभावादि सूं परगट व्हेण वाला समाजिकां में वासाना रूप सूं थापित रत्यादि थिरभाव है। औ थिरभाव खास हेतालूं में थापित व्हेण पर भी साधरणी करण रै कारण सब मनमेल हिरदां में जुगपदअनुभूत व्हेण वालौ, आस्वाद, मात्र सरुप, विभावादि भावना में रैवणवालौ, अलौकिक, चमत्कारोत्पादक व्हेण सूं परबह्मास्वाद सहोदर अर (भावविभोर) मीचिया नेत्रां सूं कवी अर मनमेलू करी मारफत आस्वाद्यामान, स्वसंवेदन सिद्धरस कहीजै है।
रामचन्द्र गुणचन्द्र री रस-सरुप विसै री मानता दूजा सब आचार्यां सूं आछी है। विणारै मुजब विभाव अर व्याभिचारीभाव आद री मारफत ऊँचाई पावण वालौ अर सपस्ट अनुभावां री मारफत जांण व्हेण वालौ थिरभाव रस कहीजै।ष इण सरुप री व्याख्या में हर छिण उदय अर अस्त धरम वाला अलेखूं व्याभिचारी भावां में जकौ अनुगत रुप सूं कास रूप सूं रैवै, विणनै थिरभाव कहीजियौ है। मतलब थिरभाव रै रैवण माथै ही विणरै रैवण अर विणरै नीं रैवण माथै व्याभिचारी भावां रै नीं रैवण सूं व्याभिचारी भाव रुप ग्लानि रै प्रति रत्यादि तै रूप सूं थिरभाव व्है वहै। ऐ व्याभिचारी भव आद सामग्री री मारफत पूरौ पाक'र रस रुप रत्यादि 'भवतीति भावः' इण जुतपत रै मुब भाव कहीजै है।
विभावां मतलब ललना अर उद्यान आद आलम्बन अर उद्ददीपन विभाव बारला कारणां री मारफत पैला सूं विद्यमान थिरभाव उपजण सूं अर मनमेलुवां रै हिरदा में बैठोड़ी गलानी आदी व्याभिचारी भावां री मारफत परिपोसण सूं वदापौ पाय'र कै साक्सात्कारात्मक अनुभूयामानावस्था नैं प्राप्त, जथासम्भव दुख-सुख स्वभाववाला 'रस्यते आस्वाद्यते इति रसः' इण जुतपत रै मुजब आस्वाद्यमान वो ईज थिरभाव रस कहीजै है।
उपरला विरोल सूं औ स्याप व्है जावै'क नाट्यदरपणकार रस नैं सुख-दुख रुप उभयात्मक मांनै है। अबै अठै एक साथे दो सवाल उठै है'क-कांई नाटयदरपणकार सगला नव रसां नैं सुख-दुखात्मक मानैं है ? कै कीं रसां नै सुखात्मक मांनै अर कीं नैं दुखात्मक। इण प्रसंग में नाट्यदरपणकारा री ऐ ओलियां देखण जोग है-
तत्रेष्टविभावादिग्रथितस्वरुपसमप्त्तयः श्रृंगार-हास्य-वीर-अद्भूत-शान्ताः सुखात्मानः। अपरे पुनरनिष्टविभावाद्यपुनीतात्मानः करुण-रौद्र-वीभत्स-भयानकाश्चत्वारो दुःखात्मानः।
मतलब इस्ट विभानादि री मारफत स्वरुप संपत्ति नैं प्रकासित करणवाला संग्रार हास्य, वी, अद्भूत, अर सान्त ऐ पांच सुखात्मक रस है और अनिस्ट विभावादि री मारफत स्वरुप लाभ करणवाला करुण, रौद्र, वीभत्स अर भयानक ऐ च्यार दुखात्मक रस है।
नाटयदरपणकार कीं आचार्यां री अंग्रेजी थकी रस री सुखात्मकता रौ खण्डन करतां थकां लिखियौ है'क-सब रसां नैं सुखात्मक मांनणौ प्रतीति रै विपरीत है। क्यूं'क वास्तविक करुणादि विभावां री तौ बात ई छोड़ौ, विणसुं तौ दुख व्हैला ईज, पम काव्य (नाटक) आद में नटां री मारफत (अवास्तविक रूप में) दिखाईजण वाला अभिनय में प्राप्त विभावादि सूं उत्पन्न भयानक, वीभत्स, करुण अथवा रोद्र रस रौ आस्वादन करणवालौ व्यक्ति अवरणनजोग कस्ट मैसूस करै। इण कारण भयानक आद द्रस्यां सूं सामाजिक उद्विग्न व्है जावै है। जद'क सुखास्वादन में उद्विग्नता री कोई बात ईज नीं है। क्यूं'क लोग करुणा आद रसां सूं भी चमत्कार मैसू स करै, इण कारण विणरौ ईज समाधान करतां थकां पाछौ लिखियौ है'क-जकौ करुणा आद च्यार रसां सूं भी सामाजिकां में चमत्कार दीखै, वौ रसास्वाद रै समाप्त व्हियां पठै उठै थापित वस्तु रै प्रदरसन सूं कवी अर नट रा सक्ति-कौसल सूं व्है है। क्यूं'क सिरछेदकारी सतरू री कुसलाई सूं वीरता रा अभिमानी भी अचूंबा में पड़ जावै है, अर इणीं सखांग आनन्दानुभूति सूं कवी अर नटगत सक्ति सूं उपजियोड़ा चमत्कार री मारफत ठगियोड़ा सा विद्वान दुखात्मक करुम आद रसां में भी परमानन्द रुपता रौ अनुभव करै है। इणीं आस्वाद रा लोब सूं देखणिया भी मन करै, अर जिंण तरै पानक-रस रौ मीठास तीखौ सवाद सूं और ू घणौ आछौ लागै है। विण ई तरै (सुखात्मक रै साथै) दुखास्वाद में अणूंती सुखानूभति व्है है। नीं तौ सीताहरण, द्रोपदी रा केस अर वस्तर-आकरसण आद अभिनयां नैं देखणवाला मनमेलू नैं सुखसवाद कीकर सम्भव है? इणीं रै समरथन में दूजी युक्ति देवतां थकां लिखियौ है'क नट री मारफत करूणा आद प्रसंगां में कियौ जावण वालौ अभिनय दुखात्मक ही है। जेअनुकरण में विणनैं सुखात्मक मांनांला तौ वो सम्यक अनुकरण नीं व्हैला। जद'क विपरित व्हेण सूं आबास व्है जावैला. जकौ भाई-सेंणां रै विजोग सूं दुखी मिनखां रै सांमी करूणा आद रा वरणाव कै अभिनय सूं सुखानुभूति व्है है, वा भी जथारथ में दुखानुभूति ही है। क्यूंक दुखि मिनख दुखियां री बंतल सूं सुख जैड़ौ अनुभव करै है अर प्रमोदकारी बंतल सूं दुःखी व्है है। इण कारण करूणआ ाद रस दुखात्मक ही है।
नरेन्द्रप्रभसूरि विभाव, अनुभाव अर व्याभिमाचीर भावां सूं परगट व्हेणवाला रत्यादि थिरभाव नैं रस कह्यौ है। पाछौ भरत-रस-सूत्र नैां पेस करता थका आचार्य मम्मट री तरै भट्टलोलट, संकुक, भट्टनायक अर अभिनवगुप्त रा रस विसयक् मतां रौ प्रतिपादन करियौ है। विजयवरणी नीरस काव्य नैं अलूणा साग री तरै अरूचीवालौ बतावता थका वाग्भट पैला री तरै विभाव, अनुभाव, सात्विक भाव अर व्याभिचारी भावां सूं परगट व्हेणवाला थिरभाव नैं रस कह्यौ है। इणीं तरै अजितसेन भी विभावादि च्यारां भावां सूं परगट व्हेण वाला थिरभाव नैं रस अंगेजियौ है। विभाव ाद कीकर रस रूप में बदल जावै है ? इणरौ विरोल करता थका वै लिखियौ है'क जिण तरै नवनीत पाकण री अवस्था पाय'र घी रुप नैं धारण करै है। विण ई तरै विभाव आद री मारफत पाक'र थिरभाव रस रूप नैं प्राप्त करै। वाग्भट दूजा विभाव, अनुभाव, अर व्याभिचारी भावां सूं परगट व्हेण वाला थिरभाव नैं रस कह्यौ है।

ऊपर

(1) 'राजस्थानी रीतिग्रंथां रा चरणहार गुणीसरां में सबसूं पैलौ नांम आरयक्सित रौ है।' आर्यरक्सित री गिणती एक खास जुग प्रधान आचार्य रा रुप में करी आवै है। इमांरौ जनम वीर-निरवाण सम्वत् 522 में दीक्सा (22 बरस री उमर में) वीर-निरवाण सम्वत् 544 (ई.स. 17) में जुगप्रधान पद (62 बरस री उमर में) वीर-निरवाण सम्वत् 584 ( ई. सन् 57) में अर सुरगवास (75 बरस री उमर में) वीर निरवाण सम्वत् 597 (ई. सन् 70) में मांनियौ जावै है कीं आचार्यां रा मतां मजुब आर्यरक्सित री सुरगवास वीर-निरवाण सम्वत् 584 (ई. सन् 57) में व्हियौं हौ।8
इणांरा पिता रौ नाम सोमदेव हौ, जकौ मालवा में दसपुर (मन्दसौर) रा राज उदयन रा पुरोहित हा अर माता रौ नांम रुद्रसोमा हा। आर्यरक्सित वेदांगां री भमाई सारु पाटलीपुत्र गया परा हा।
भणाई रै पछै वै घरै आया तद दसपुर रा राजा अर नगरवासी राजी व्हेय'र घणी धूमदाम अर उच्छब रै साथै विणांनै नगर प्रवेस करायौ। विण पछै ई ढलता दिन रा छेहला पौ'र में घरै पौच'र आपरी माता नैं प्रमाण करियौ।
माता रुद्रसोमना जैन धरम री मांनणवाली ही। इण कारम वेद वेदांगां री भाई सूं वा घणी परसन नीं व्ही, कारण जांण र आर्यरक्सित दूजै दिन सुबैसांणी जैन आचार्य तोसली पुत्र रै कना भणाई करण सारू गया परा। उठै औ जांण'र क दीठवाद रौ ग्यान पावण सारू जैन दीक्सा जरूरी है। इण कारण वै दीक्सा लेय'र ग्यान पायौ। विणरै पछै वै आगै भणाई सारू उजेणी नगरी में वज्रस्वामी रै पास गया, उठै जद वै नव पूरवां री भमाई कर'र दसवा पूख री भमाई सरू करी, तद ई विणांरा माता-पिता पुत्र-विजोग सूं चिन्तित व्हेय'र आपरा छोटा बेटा फल्गुरक्सित नैं विणांनै लावण सार भेजियौ। फल्गुरक्सित उठै जाय'र आरय्क्सित सूं दसपुर आवण री अरज करी। उठै वै विणांरा छोटा भाी फल्गुरक्सित नैं जैन धरम् में दीक्सा दिराई, अर वज्रस्वामी सूं आग्या लेय'र दसपुर री आड़ी वीर व्हिया। धसपुर पौच'र वै आपरा माता-पिता अर भाी-सैणां नै प्रबुद्ध कर'र स्रमण धरम री दीक्सा दी, पछै वै नवा दिक्सित मुनियां ने लेय'र आपरा गरु तोसलीपुत्र रै पास गया। गरु तोसली पुत्र राजी व्हेय'र विणांनै आपरा उत्तराधिकारी आचार्य थापन करिया।9
अनुयोग द्वार सूत्र- जैन परम्परा में आगम साहित्त रौ खास मैतव है। औ आगम सिहत्त अंग प्रविस्ट अर अंग-बार्हम रै रूप में दो तरैरा है। अंग ब्राह्म आंगमां में एक है-अनुयोगद्वारसूत्र जकौ देसज भासा में रचियौ थकौ है। राजस्थानी भासा रा मालवा खेतरमें रचीजियौ। जिणनै राजस्थानी प्राक्रत भी कहीज सकै। मतलब राजस्थानी, जिणनै जनू राजस्थानी कहीज सकै। इणनै चूलिका सूत्र भी कैवै।9
अनुयोगद्वार- सूत्र में अनुयोग रा च्यार द्वार, उपक्रम, निक्सेप अनुगम अर नय पर विचार करीजियौ है। उपक्रम रा दूजा भेद नांम निरुपण रा प्रसंग में एक नांम, द्विनाम, त्रिनांम, इत्याद लगोलग दस नांमां तक उतरी-उतरी संख्यावाला विसयां रौ प्रतिपदान है। नव नामां में रसां रौ विरोल करीजियौ है। रसां रा नांम-वरी, सिणगार, अद्भूत, रोद्र, वीडनक, वीभत्स, हास्य, करुण, अर सान्त।
इणीं तरै अनुगम में अलीक, उपघात जनक, निररथक छल इत्यादत बत्तीस दोसां रौ लेखौ करीजियौ है।9
(2) इण ई रीत मे ंदूजा रीतिग्रंथ रौ नांम जिणी जांण व्है सकी है वौ है। 'पूसी' नाम रा गुणीसर रौ वि.स. 700 में दूवा छंद में रचियौ थकौ अलंकार ग्रंथ है।10
(3) स्वयंभू छंद-इणरा रचणहार गुणीसर स्वयंभू है। स्वयंभू रौ जिक्र पुसपंदत आपरा महापुराण जिणनै
'तिसठित-महापुरिस-गुणालंकारु' भी कहीजै, जिणें करियौ, जिणरी सरुपोत वि. स. 1016 है, स्वयंभू भी आपरा 'पुमचरिऊ' अर 'रिट्ठणेमिचरिऊ' में आपरा पूरबला आचर्या रौ लेखौ करियौ है। जिणां में 'रविसेणाचार्य भी है।' रविसैणाचार्य रा रचिया 'पदमचरित्त' रौ लिखणकाल स. 734 है। मि तरै स्वयं भू कवि रौ वगत वि.सं. 734 सूं. वि.सं. 1016 रै बीचै व्हेणौ चाहिजै. स्वयंभू रौ वगत राहुल सांस्कृत्यायन लगैटगै वि. सं. 847 (ई.सं. 790) अर नाथुलाल प्रेमी सं. 734 सूं 840 रै बीचै मांनियौ।11
हिन्दी साहित्त कोसकार मानै क स्वयंभू, पुसपंदत इत्याद कवियां री भासां में छेत्रिय लोकभासा रौ पुट घणौ है।12
'स्वयंभू छंद' समाप्तिसूचक पद्यां री मारफत आठ पाठ में बंटियौ थकौ है इण में 206 पद्य प्राक्रत कवियां रा उधरित करिया है विणां मांय सूं 128 पद्य संस्क्रत, प्राक्रत, अपभ्रंस, छंदां रा दाखला में दिया है।13
(4) छन्दोनुसासन-विृत्ति- आचार्य हेमचन्द्र सूरि आपरा 'छन्दोनुसासन माथै स्वोपग्य-व्रिति री रचना करी, जिणरौ दूजौ नांम छान्दसचूड़ामइ' भी है। इण स्वोपग्यव्रिति में दिरीजियौ थकौ सपस्टीकरण अर दाखला 'छन्दोनुसासन' रा मैतव नैं बढ़ावै है। इणमें भरत, सैतव, पिंगल, जयदेव, कास्यप, स्वयंभू आद छन्दसास्त्रियां रौ अर सिद्धसेन (दिवाकर) सिद्धराज, कुमारपाल, आद रौ लेखौ है। कुमारपाल रा लेखा सूं आ व्रित्ति विणांरा टैम में रचीजी ऐड़ौ लखावै।
इम व्रित्ति में जकौ संस्क्रत, प्राक्रत, अर अपभ्रंस रा पद्य है विणांरौ इतियासू अर सास्त्रीय चरचा री दीठ सूं मैतव व्हेण सूं विणां सबां रा मूल आधार ठांणा सोधमा चाहिजै।
उपाध्याय यसोविजयगणि इण 'छन्दोनुसासन' मूल माथै कै विणरी स्वोपगय् व्रित्ति माथै व्रित्ति री रचना करी । ऐड़ौ मांनीजै।
वरधामन सूरी भी इण 'छंदोनुसासन' माथैव्रिति लिखी, ऐड़ो भी लेखौ मिलै।
आचार्य विजयलावण्यसूरि भी इण 'छंदोनुसासन' माथै एक व्रित्ति री रचना करी जकौ लावण्यसूरि जैन ग्रंथमाला बोटाद सूं छपी है।13
(5) अलंकार दप्पणकार- 'अलंकार-दप्पण' रा लिखारा रौ नांम अग्यात है। इण कारण इणरा सरुरा मंगलाचरण14 में लिखारौ स्रूत देवता नैं नमस्कार करिया है। इणसूं इतरौ ईज क्हयौ जा सकै क इणरी रचना कोई जैन आचार्य करी व्हैला।15 स्री अगरचंद नाहटा रा लेख16 सू ंजांण पड़ै'क जैसलमेर रा बड़ा ग्यान भण्डार री ताड़पत्री प्रति 'अलंकार-दप्पण' दूजा काव्य आदर्स अर उद्भटालंकरार लघुव्रिति भी लीखी है। काव्यादर्स रै अंत में प्रति रौ लिखणकाल सम्वत् 1116 भाद्रपदै लिखियौ है। इणसूं औ स्याप व्है जावै'क आ रचना सम्वत् 1161 सूं पैला री व्हैला। आ स्री नाहटाजी भवंरलाल नाहटा रा 'अलंकार दप्पण' रा उत्था रै सरु में (मंडंाण सरुप) इम ग्रंथ रा ्‌लंकार सम्बंधी वीवरा नैं ध्यान में राखतां थकां इणरौ निरमाण काल 8 सूं 11 वौ सइकौ मांनियौ है।17 जैन आचारयां रा रचियोड़ा संस्क्रत भासा में वणयोड़ा सब अलंकार सास्त्र सम्वत् 1161 रै पछै रजीजिया है। णि कारण पैली रौ व्हेण सूं (अलंकार दप्पण) रौ मैताव आपौआप सिद्ध है।
अलंकार दप्पण- आ पोथी प्राकृत (देसज) भासा में रची थकी है। इणमें सिरफ 134 गाथावां है। जिणांरौ सीधौ सनमन अलंकारां सूं है। इणमें कीं ऐड़ा नवा अलंकार ई भेला है। जकौ इण सूं पैला रचीजियां ग्रंथां में नीं मिलै. इणसारू इणरा मैताव माथै प्रकास नांखती दांण स्री ्‌गरचन्द नाहटा लिखियौ है'क णि ग्रंथ में आया रसिक, प्रेमातिसय, द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर, गुणोत्तर, उपमारुपक, उत्पेक्षारुपक, अलंकार दूजा लक्सण ग्रंथां में नीं मिल। ऐ अलंकार नव वणियोड़ा है'कै किंणी जूना अलंकार सास्त्री री देखादेखी है, तै रूप में नी कैइजै18 फेर भी उपमा इत्याद रा मैताऊ विरोल सूं इण ग्रंथ री मौलिकता अखूट है।
इण ग्रंथ में मंगलाचरण रै पछै सबसूं पैला अलंाकरां रा मैताव माथै प्रकास नांखियौ है। पाछा उपमा, रुपक, दीपक, रोध, अनुप्रास, अतिसय, विसेस, आक्सेप, जाति-व्यतिरेक, रसिक, प्रयाय, जथासंख्य, समाहित, विरोध, संसय, विभावना, भाव, अरथान्तरन्यास, परिकर, सोहक्ति, उरजा, ्‌पह्युति, प्रमातिसय, (उद्वर्त्त, परिवृत्त, द्रोव्योत्तर, क्रियोत्तरं, गुणोत्तर) बहुस्लेस, व्यपदेस, ईस्तुति, समज्योति, अप्रस्तुतप्रसंसा, अनुमान, आदर्स, उत्पेक्सा, संसिद्धि, आसीस, उपमारुपक, निदरसणा, उपेक्सावयव, उद्मिद्, वलित, अभेदवलित, अर यमक, इमां 40 अलंकारां रौ नामोलेखो करीजियौ है।
विण पछै विण ई अंलकारां रा भेद साथै नेम अर दाखला देय'र विसै-विरोल करीजियौ है। ग्रंथकार उपमा रा 17 भेद करिया है। जकौ इण भांत है।
प्रतिवस्तूपमा, गुणकलिताउपमा, असमाउपमा, णालोपमा विगुणरुपा-उपमा, निन्दोपमा, अतिसयिता-उपमा, स्रुतिमिलितोपमा, विकल्पिकोपमा (एकठ विकल्पिकोपा अर बहुधा विकल्पिकोपना) इणमें किंणीं किंणी अलंकार रा सिरफ दाखला ईज दिया है।
(6) कविदरपण- इण मैताऊ छंद पोथी रा रचेता रौ नांम अग्यात है। ऐ जैन विद्वान व्हैला, ऐड़ौ पोथी में दिरीजिया थका जैन ग्रंथकारां रा नांम अर जैन परिभासा आद देखतां अंदाजौ लागै। ग्रंथकार आचार्य हेमचन्द्र रा छंदोनुसासन सूं परिचित है।
'कविदरपण' में सिद्धराज जै सिंध, कुमारपाल, समुद्रसूरि, भीदेव, तिलकसूरि, सांकभरी राज, यसोधोस सूरि अर सूरप्रभसूरि रा नांम आया है। ऐ सब जणा 12 वां 13 वां सईका मं हा। इण ग्रंथ में जिनचंद्रसूरि, हेमचन्द्रसूरि, सूरप्रभसूरि, तिलकसूरि, अर (रत्नावली रा रचेता) हरसदेव री पोथियां सूं अवतररण लिरीजिया है।19
(7) छन्दोविद्या- कवि राजमल्ल आचारसास्त्र, अध्यात्म, काव्य अर न्याय सास्त्र रा प्रकांड पंडित हा। औ विणारा रचिया थका दूजा ग्रंथां सूं पतौ पड़ै। छन्दसास्त्र माथै भी विणांरौ असाधरण अधिकार हौ। विणांरौ रिचयौ छंदोविद्या घ्रंथ री 28 पत्रां री हाथ लिखि प्रति दिल्ली रा दिगम्बरी सास्त्र भण्डार में है। इण ग्रंथ री चंद संख्या 550 है।20
कवी राजमल 16 वा सीका में व्हिया। छांदोविद्या री रनचा राजा भारमल वास्तै करीनी ही। छांदां रा लक्सण राजा भारमल नैं संबोधित करतां थकां बताइजिया है। ऐ भारमल स्त्रीमाल वंस रा, नागौरी तपागच्छीय आम्नाय रा मांनणवाला अर नागौर रा संघाधिपति हा।
इतरौ ई नीं, वै सांकभरी रा सासनाधिकारी भी हा।
'छन्दोविद्या' आपरै ढंग रौ अनूठौ ग्रंथ है। इणमें संस्क्रत अर जूनी अर मध्यकालीन राजस्थानी री बरताव व्हियौ है। जूनी राजस्थानी रौ बरताव घणौ है। इणमें 8 सूं 64 पद्यां में छंदसास्त्र रा नेम उपनेम बताइजिया है। जिणां मं केई तरै रा छंद-भेद, विणांरौ सरुप, फल अर प्रस्तारां रौ वरणाव है। कवी राजमल रै सांमी पूज्यपाद रौ छन्द विसै रौ कोई ग्रंथ मौजूद हौ। छंदोविद्या मैं पातसाह अकबर रै समै री केई घटनावां रौ लेखौ है। औ ग्रंथ अबार अणछा पियौ है।21
(8) छन्दकोस- छन्दकोस रा रचेता रतनसेखर सूरि है। जकौ 15वां सीका में व्हिया। ऐ व्रिहदगच्छीय वज्रसेनसूरि (पछै रुपांतरिक नागपुरीय तपागच्छ रा हेमतिलकसूरि) रा चेला हा।
इण छन्दकोस में कुल 74 पद्य है। केई चावा छंदां रा लक्सण लक्स्य लक्सणयुक्त अर गणमात्रा दिपूखक दिरीजिया है। इणमें अल्लु (अरजुन) गुल्हु (गोसल) नांम रा रलक्सणकारां सूं उद्धरण दिया है।22

(9) पिंगल सिरोमणि- इणरा रचेता जैन कवी कुसललाभ जैसलमेर रा सासक हरराज रा दरबारी हा, इण ग्रंथ री रचना डॉ. नारायणसिंघ भाटी रै मुजब 1615--1618 वि. स. रै बीच अर

डॉ. ब्रजमोहन जावलियां रै मुजब 1635 वि. मांनीजै। इण ग्रंथ में केी जागा संस्क्रत आचार्यां रै अलावै केी पूरबला आचार्यां रौ भी लेखौ करियौ है, जिणसूं बै ापरां ग्रंथ रौ सनमन सूत्र राजस्थानी रीतिग्रंथां री बूरबली रीत सूं भी जोड़ण री कौसीस करी है।
'गीत' छंद रा प्रकरण में तौ वै स्याप लिखै'क सिन्धु जात रा दो कवी पातसाह रा भट्ट व्हिया। वै गीतां रौ बौत बड़ौ ग्रंथ बणायौ, पण आचार्य विणनै प्रमाणिक नीं करियौ।
इण ग्रंथ सूं राजस्थानी रीतिगर्थां री रीत एक नवौ पसवाड़ौ फेरियौ। इणें, संस्क्रत, प्राक्रत, अपभ्रंस, सूं चालती आई रीतिग्रंथां री रीत नैं आगै बढ़ाईजी अर राजस्थानी रा आपरा निकेवला केी छंदा रा नेम कायदा इण में दिरीजिया। इण में 23 जात रा दूवा, 28 जाद री गाथावां रा नेम बताइजिया है। इणें 71 जात छप्पै रा नेम 69 जात रा छप्पै रा दाखला भी दिया है।
वरण प्रस्तार अर मात्र प्रस्तार भी दाखलां साथै दिरीजिया है, लगैटगै 75 तरै रा अलंकारां नैं कवी इणग्रंथ में जागा दीवी अर दाखला भी दिया।
कामधेनका, कपाटबंध, कंबलबंध, चक्रबंध, अंकुसबंध, खटकमलबंध इत्याद चित्रकाव्यां नैं ई चितरामां साथै इणमें राखिया है। इणमें छेहला प्करण में राजस्थानी गीत छंदा रा वरणाव अर नेम दिया है। गीत छंद राजस्थानी रीति ग्रंथां री आपीर खासियत है। इणमें 40 जात रा गीतां रा नेम कायदा दिरीजिया है।23
(10) रसकोस (1676)
(11) कविवल्लभ (1704)
(12) रस-मंजरी (1709)
(13) रसतरंगिणी (1711) ऐ ग्रंथ च्यारू ई न्यामत खां जकौ कविता में जान नांम लिखता, विणार रचिया थका है।
ऐ जैपुर राजा रा सीकर इलाका रा फतैपुर परगना रा हा। उठै सेखावत राजवंस सूं पैला कायमखानी नवाबां रौ राज हौ। कायमखानी राजवसं रा मूल पुरस चौहाण करमसी हौ। जिणनै फिरोजसाह तुगलक रा अधिकारी अर हिसार रा सेनापति सैयद नासिर सं. 1440 में मुसलमान बणाया अर विणरौ नांम बदल'र कायम खां राखियौ। वो कायम खां कायमखानी चौहान राजवंस रौ मूल पुरस है। अर विम केड़ (वंस) रा कायमखानी कहीजै। इमांरी दसवी पीढ़ी में न्यामत खां व्हिया।
(14) छन्द रा जोड़ा- परसुरामदेव रौ. वि. सं. 1677 रौ रचियौ थकौ रीतिग्रंथ है।
(15) छन्द प्रकास- औ ग्रंथ दीनदयाल रौ बणायौ थकौ है, इमरौ रचणकाल वि. सं. 1700 मांनीजै।24
(16) रसिक-विलास- औ ग्रंथ केहरो रौ 1710 में बणायौ थकौ है। कवि केहरी रौ कथियोड़ौ औ रसिक विलास नायक-नायिका भेद रौ एक मोटी ग्रंथ है। अनूप राजस्थानी पुस्तकालय में इणरी हाथ लिखि पोथी है। इणमें सात प्रबाव है। इणरा पाठां रौ नांम प्रभाव है। इणरौ छठौ प्रबाव मैताऊ है, जिणमें सिणगार रा विद विद रा अंगां रौ आछौ अर मनौविग्यानिक वरणाव है, सायत कवी केहरी बूंदी रा राव सत्रुसाल रा दरबारी कवी है, ऐड़ौ डॉ. मोतीलाल मैनारिया मांनै।
(17) नागराज पिंगल-इण ग्रंथ री दो प्रतियाँ, डॉ. ब्रजमोहन जावलिया रा संग्रै में है। इणरा दूजा खण्ड में 48 जात रा गीत छंदा रा नेम-कायदा बताया है।
इण गीत खण्ड री भासा 17 वा 18 सईका री है। जदक ग्रंथ रौ पैलौ भाग (रुपक खण्ड) री भासा साफ रुप सूं 14 वा 15 वा सईका री है। इण कारण दोनां में किंणीं तरै रौ तालमेल बैठतौ नीं दीखै। नागराज पिंगल ग्रंथ रै साथै कोई गीत विसै रो निकेवलौ प्रकरण रह्यौ भी व्हेला, इण में वैम है। जकौ भी णि खण्ड नै नागराज पिंगल रै साथै जोड़ण री कौसीस करी वो खास रुप सूं मैताऊ है। गीत खण्ड में गीतां रा नेम भाग री टीका ई राजस्थानी गद्य में सूत्र रूप में दीरीजी है।
इणरा रचेता रा विसै में कोई खास समचौ इणें नीं करीजियो है, पण एक दो जगावां माथै गीतां रा दाखलां में किसन नांम री छाप सूं औ अंदाजौ लागयौ जा सकै हैक इणरौ रचेता किसन रह्यो व्है। हंसावला गीत में कसु किसन सराहे कायब अर गोख गीत में किसन कूड़ौ रीझियौ महाराज पदां में औ देखणनैं मिलै, घणी जांणकारी रै बिना औ तै रूप सूं तौ नीं कह्यौ जा सकै, पण जे दोनूं ग्रंथां रौ करता एक ई व्यक्ति किसनौ आढ़ौ रह्यौ व्है तो कोई अचूंबा री वात नीं व्हेलां पण गीतां रा नेम-कायदां में पूजतौ फरक व्हेण रै कारण आ संभवना री हालत भी आपोआप खतम व्है जावै। ग्रंथ रैसरू में आयौ नागरजा नाम ग्रंथ रा प्रणेता रौ भी व्है सकै। औ तौ नागराज नाम सूं चावौ पिंगल सूत्र रचेता पिंगलाचारय् री याद नैं अमर बमायां राख सारू जोड़िजयौ नां म लखावै। ग्रंथ रै बीच में रुपक खण्डरै सरु में जिनवाणी री ई स्तुति नैं देखतां थका ंग्रंथ प्रणेता कोई जैन गुणीसर व्है सकै. पक्का प्रमाणां रै बिना औ अबार निरमै बिना ईज रैवैला। ग्रंथ रै सरु में किंणीं मोहण कवि रा रचिया थका दो छन्द मिलै, ऐ पछै जुड़िया थका है।
पण 'मोहण' नांम रा किणीं कवि रौ भी कोई रीतिग्रंथ रचण री तरफ समचौ ककरै। इण कारण सोधेसर सारू बिणरौ अणूंतौ मैतवा है. नागराज-पिंगल री इण खेंप रा लारला भागा रौ रचैता अर आगला भाग रौ संपादक किसन व्है सकै।25
(18) छंदसार पिंगल- मतिराम रौ रचियौ छंदसास्त्र विसै रौ छन्दसार पिगंल नांम रौ ग्रंथ सिवसिंह सरोज अर मिस्रबंधु विनोद में लेखा में लिखिजियो है। पण इणरी पूरी प्रति देखण में नीं आई। नागरी प्रचारणी सभा में एक ग्रंथ री प्रति है। वा भी खण्डित है। इण कारण छन्दसार-पिंगल रौ पूरौ परिचै देवणौ संभव नीं भागरीथ प्रसाद दीक्सित इणनै व्रित-कौमुदी मतिराम री जकौ वंस परम्परा है। वा चावा मतिराम री वंस परम्परा सूं न्यारी मांनी है। व्रित कौमुदीकार मतिराम री जकौ वंस परम्परा है। वा चावा मतिराम री वंस परम्परा सूं न्यारी है। व्रित-कौमुदी रा रचेता ग्रंथ रै अन्त में छन्दसार-संग्रह अर छन्दसार पिंगल नांम सूं चावौ कर दियौ व्है। जे व्रितकौमुदी अर छन्दसार-संग्रह कै पिंगल एक ईज ग्रंथ व्है तो औ ग्रंथ स्री नगर (गढ़वाल) रा सरुपसाहि बुन्देला रा आसार में लिखी जियौ व्है। आ बात वित्र कौमुदी रा एक छंद सूं स्याप व्है जावै। (पंचम प्रकास)
छन्द री सिथिलता अर कल्पन कवित्तहीनता ही इण बात नैं सिद्ध करै'क आ चावा मतिराम री रचना नीं है। इण ग्रंथ री रचना रौ समै सूं दिरीजियौ है-
संवत सत्रह सौ बरक, अट्ठावन सुभ साल।
कातिक शुक्ल त्योदसी, करि विचार तिंहिकाल।।
(पंचम प्रकाश) इण तरै इणरी रचना, 1707 ई, संवत 1758 तै व्है है।
इण 'छंद सार संग्रह' कै 'व्रित कौमुदी' रौ विसै पांच प्रकासां में बंटियौ थकौ है। आसरौ देवण वाला रा वरणाव पछै गण, देवता, जाति वरण, आद रौ वरमआव, मात्रिक, वरणिक, विरोल अर इणां छंदां रा जात-उपजात रौ वरमन करियौ है. प्रत्यय, प्रस्तार, पताका आद रौ विरोल भी इणें है। पांचवा-प्रकास में दण्डक छंद री जातां रौ वरमाव दिरीजियौ है। ग्रंथ खासकर;र भट्ट केदार राव्रित-रतनाकर' अर हेमचन्द्र रा छन्दोनुसासन माथै टिकियोड़ौ है।26
(19) रतिभूसण- इणरा रचणहार जगन्नाथ है। इणरौ रचणकाल 1714 वि. सं. है। जैसलमेर रावल सबलसिंघ रा बेटा अमरसिंग सारू रचना करी। जैसलमेर जिनचंद सूरी ग्रंथ भंडार में है।
(20) रसकि-हुलास- इणरा चरणहार सूरदत्त है। इणरौ रचमकाल वि. सं. 1716 है।27 अनुप संस्कृत पुस्तकालय में प्रति है।
(21) हरिपिंगल प्रबंध- इणरा रचेता जोगीदास कुंवारिया हा. औ ग्रंथ वि. 1721 में वणारौ थकौ है। जोगीदास जी प्रतापगढ़ नरेस हरिसिंघ रा दरबारी कवीसर हा। ै दूजा छंदां रा नेम कायदां रै साथै 22 जात रा गीतां रा नेम दिया है।28 इणरौ संपादन डॉ. भगवतीलाल सरमा, जोथपुर कर रैय हा।
(22) पिगंल-प्रकास- महाकवी हमीरदान रतनू रौ रचियौ थकौ है। ऐ बाड़मेर जिला रा घड़ोई काम रा रैवासी हा। भुज राज रा राजकवी रह्या अर' भुज री पौसाल रा प्रेरणास्त्रोत अर घणै टैम तक आचार्य रह्या। आप न्यारा न्यारा विसै रा 175 ग्रंथ बणाया। विणां मांय सूं दो रीति ग्रंथ है।इण रीतिग्रंथ रौ परिचै डॉ. हीरालाल माहेस्वरी इण भांत देवै-"पिंगल प्रकास 1711 रौ ग्रंथ है अर दो भागां में बंटियौ थकौ है। इणमें 71 जात रा छप्पै, 23 जात रा दूवा, 26 जात री गाथा छंदां रा दाखलां साथै वरणाव है।29"
(23) लखपत-पिंगल- औ ग्रंथ ई महकवि हमीनदान रतनू रौ बणायौ थकौ है। औ ग्रंथ च्यार भागां में बंटियौ थकौ है। औ भी घमौ मैताऊ ग्रंथ है। इणारा पिंगल-प्रकास में गीत छंद रा एक भेद छोटा साणौर रा 30 उपभेद बताइजिया है।30
'लखपत-पिगल' रौ रचणकाल वि. सं. 1796 है। इणरा च्यार पाठां में 439 छंद है। पछै महाराज लखपत रौ कुल परिचै दिरीजियौ है।31
(24) सुन्दर सिणगार- औ ग्रंथ साहजहां रा मानीता कवि सुन्दर रौ है। जिणरी टीका जैन कवी कनक कुसल करी। इणरौ समै सं. 1798 ह। महकावी हमीरदान रतनू री प्रेरणा अर कौसीसां सूं भुज री पौसाल थरपीजी अर पछै राजस्थान रै किसनगढ़ रा चावा जैन जति कनककुसल में बुलाय'र इण भुज री पौसा ल रा पैला आचार्य बणाया। कनककुसल संस्क्रत, प्राक्रत, अपभ्रंस, राजस्थानी रा आचा जांणकार हा। महाराव लखपत विआंनै भट्टारक री पदवी देय'र आदिरया। इमरी प्रति साहित्त संस्थान उदैपुर में है।
(25) कवि रहस्य कै लखपति-पिंगल-कनक कुस रै पछै विणांरा चेला कुंवर कुसल भुज री पौसाल रा आचार्य बणाईजिया । ऐ नांमी वद्वान हा। इणांरा केी ग्रंथ है। पण इणांमें कवि-रहस्य जिणरौ दूजौ नांम लखपति-पिंगल सबसूं वत्तौ मैताऊ है।
(26) लखपति जस सिन्धु-कुंवर चन्द्रप्रकासिंघ रा सबदां में महनै इणसूं पैला काव्य सास्त्र रा किंणीं ग्रंथ में लक्सण अर लक्स्यां रौ इतरौ सपस्ट बरताव रलम लिपणौ नीं मिलै। कुंवर कुसल रौ बासा माथै असाधारण अधिकार है। संस्क्रत, फारसी इत्याद केई भासवां काव्य संगीत, इत्याद अलेखूं विधावां रा वै अधिकारी गुणीसर हा।32
(27) अनूप रसाल- औ ग्रंथ उदैचंद रौ 1728 में बणायौ थकौ है।
(28) अलसमेदनी- नंदराम इणरा रचेता अर इणरौ रचणकाल सं. 1728 है। इणरी हाथ लिखी पोथी बीकारेन अनूप संस्क्रत पुस्तकालय में है। अलसमेदनी में तीन खण्ड है अर 115 पद्यां मे पूरौ व्हियौ। इणरां भगा प्रमोद नांम सूं बंटिया थका है। पैला प्रमोद में नायिका वरणाव, दूजा प्रमोद में नायक वरणाव, अर तीजा प्रमोद में अलंकार वरणाव है।
(29) संयोगद्वात्रिंसिका- आ मान कवी री सं. 1731 री रचना है। अभय जैन ग्रंथालय में प्रति है।
(30) रसिक आराम- सतीदास व्यास री रचना है, इणरी रचना 1733 में करीजी। अभय जैन ग्रंथलाय, बीकानेर में पूरी प्रति है।
(31) रसरुप- रुपजी री रचना है, इणरौ रचणकाल सं. 1739 है।
(32) भावपंचासिका (1743)
(33) स्रंगार सिक्सा (1748) ऐ महकावी व्रन्द री रचनावां है।
(34) अनूप संग्रार- अभैराम री रचना है। इणरी रचना सं. 1754 में व्ही। इणमें 550 छंद है। ऐ बीकानेर रा महाराज अनूपसिंघ रा दरबारी हा। रणथंमभोर रै कनै बेहरन गांम रा रैवासी हा। अनूप संस्क्रत पुस्तकालय में प्रति है।
(35) रसतरंग- लोकनाथ चौबै री रनचा है. आ 1760 री रचना है।
(36) अलंकार माला (1766) छंदसार
(37) रसरतन माला (1768)
(38) काव्यसिद्धांत (1785)- ऐ सब सूरत मिस्र री रचनावां है।
(39) रसप्रकास- तिलोक राम री रचना है, इणरी रचना सं. 1767 में व्ही।
(40) भावविरही- अजीतसिंघ री रचना है। इणरी रनचा सं. 1770 में व्ही।
(41) नेहतंग- आ बूंदी रा सासक बुधसिंघ री रनचा है। इणरी रनचा 1784 में व्ही। इणमें कुल 446 पद्य है। इणरा कण्ज तरंग नांम सूं बंटिया थका है। इणें कुल चवदा तरंगां है। रा. प्र. वि. प्र. जो सूं छपग्यों, सं. डॉ. रामप्रसाद दाधिच है।
(42) संग्रार रस माधुरी (1769) (43) अलंकार कलानिधि (1791) ऐ ग्रंथ क्रस्म भट्ट रा बणाया थका है। ऐ बूंदी रा सासक बुधसिंघ रा दरबारी कवेसर रह्या। पछै जैपुर महाराजा वाई जैसिंग इणांनै मांग'र बुलाया लिया।
(44) रसपीयूस निधि-आ सोमनाथ री रचना है, इणरी रचना सं. 1794 में व्ही। औ ग्रंथ बाईस तरंगां में बंटियोड़ौ है। इणें काव्य रा न्यारा-न्यारा अंगां रौ विरोल करीजियो है, खास कर'र नायकि भेद वरमआव ऐ घमी आछी रहीत सूं करियौ है। सोमनाथ भरतपुर रा जाट राजा बदनसिंघ रा दरबारी कवीसर हा। इणरौ छेहलौ दूवौ इणभातं है-
सत्रहसैं चौरानवौ, संवत जेठ सुमास।
किसन पख दसमी भ्रंों, भयौ ग्रंथ प्रकास।।
(45) अलंकार रत्नाकर- इणमें 523 छंद है। दलपतिराय बंसीधर री रचना है। महाराज जसवन्त सिंघ रा भासाभूसण री टीका है। औ च्यार तरंगां में बंटियौ थकौ है। कविराव मोहन सिंघ संग्रै में है।
(46) जुगल विलास-पीथल कवीसर री रचना है। इणरी रचना वि. सं. 1800 में व्ही।
(47) लोकोक्तिरस कौमुदी- सिवसहायदास री 1809 री रनचा है।
(48) रसप्रबोध- दौलतराम री सं. 1820 री रचना है।
(49) कविवल्लभ- हरिचरणदास री 1839 री रचना है। ऐ किसनघढ़ रा हा. सांवंतसिंघ दूजौ नांम नागरीदास रा दरबारी कवीसर हा। पत्र-61, पद्य-430, गद्य में व्याख्या करीजी है। रा. ह. लि. ग्रं.सूं. भाग-3 साहित्त संस्थान रै मुजब।
(50) अलंकार समुच्चय- आ रचना रामकरण री है। इणरी रनचा 1855 में व्ही। पत्र 19, छंद-67, रा.ह.ग्र. सूं. भाग-3 साहित्त संस्थान रै मुजब।
(51) अलंकार आसय- उत्तमचन्द भण्डारी री सं. 1860 में रचियोड़ी आ पोथी है।
(52) नवरस (53) अलंकार सुधानिधि- ऐ गणपति भारती री 1860 री रचनावां है।
(54) वाणी भूसण- उमेदराम री रचना है। ऐ जैपुर रा हणूतिया गांम रा वासी हा। पछै इणांनै अलवर रावराजा बख्तारवरसिंघ आपरै राज में बुलाय'र जागरी अर राजरौ मान दियौ।
(55) जगत विनोद (56) पद्माभरण (1867) ऐ पद्माकर री रचनावां है। जगदविनोद में 692 छंद है। पैला खमअड में जगतसिंघ जैपुर महाराजा रौ वरणाव अर नायिका भेद वरणाव अर दूजा खण्ड में भाव, विभाव, संचारी भाव अर रसां रौ वरणाव है।
(57) क्रस्णविनोद (1872) (58) रसभूसण (1874)- ऐ क्रस्णलाल री रचनावां है। ऐ बूंदी रा रैवासी हा। अर गोस्वामी जात रा हा।
(59) रसचन्द्रोदय- आ रचना कवेसर गणेस री है। इणरी रनचा सं. 1875 रीह है।
(60) रसरत्नाकर (1877) (61) नवरसरत्नाकर (62) रसमुद्र-मंडन भट्ट री रनचावां है। ऐ रसां रा कवेसर हा।
(63)रसमंजरी- हरि नांम रा कवेसर री रनचा है। आ सं. 1883 में रचीजी। विनय सागर अर जयचन्द्र री रा संग्रै में प्रतियां है।
(64) रसानंद- आ ब्रजेन्द्रजी री रनचा है। आ 1890 में रचीजी।
(65) रससंग्रार (1890) (66) रसनिवास (1892)- ऐ उदैचंद री रचनावां है।
(67) चतुररसाल- चतुरदान री रनचा है। इणरी रनचा 1890 में व्ही।
(68) अलंकार आभा-चतुरभुज मिस्र री रचना है। इणरी रचना 1899 में व्ही।
(69) जसवन्त जोसभूसण- महाराजा जसवन्तसिंघ जोधपुर रा आसरा में कविराजा मुरारिदान औ ग्रंथ 1893 ईं में लिखियौ। इण ग्रंथ रौ संस्क्रत रुपांतरण भी व्हियो अर छोटौ संस्करण भी व्हियौ। इणमें सात आक्रतियां है। 1-साधारण परिचै 2-काव्य सरुप निरुपण (3) सबदालंकरा (4) अरथालंकार (5) रसवदादि अलंकार निरुपण (6) अन्तरभाव (7) उपसंदार। खास कर'र औ अलंकार ग्रंथ है।
अलंकार साहित्त में जसवन्त जसोभूसण रौ एक खास मैतव है। लिखारा री सरवोपरिथापना लक्सण-नाम-प्रकास है। दूजा कवी तौ अलंकारां रा नामांन ै लक्सण नीं समझिया है, इणसारू सब नांमां रै अलावै लक्सण बमाया है। एक जयदवे कवी ईस्म्रति, भ्रान्ति,अर सन्देह इमआं तीन अलंकारां रा नामां नैं लक्सण समझिया है। सगला अलंकारां रा नांई लक्सण सिद्ध व्हेगा है।
इण ग्रंथ री दूजी वत्ताई आ है'क अरथालंकारां में 'उपमा' घमी चावी है, इण सारु उपमा नैं पैला कैय'र पछै वरममाला क्रम सूं दूजा अलंकार वरणीजिया है। सबदालंकारां मेंसिरफ अनुप्रास ईज अंग्रेजी जियौ, अरथालंकार 80 है। इणां में अतुल्ययोगिता, अनवसर, अपूरबरुप, अप्रत्यनीक, अभेद, अवसर, आभास, नियम, प्रतिमा, विकास, संकोच, संस्कार अप्रसिद्ध अ नवा है। 18 जूना अरथालंकारां रौ दूजी जागा अन्तरभाव कर लियौ है। अरथालंकारां रा लक्सण दाखला पैला पद्य में अर प गद्य में विणांरी व्याख्या है।
(70) भासाभूसण- महाराजा जसवन्तसिंघ जोधपुर रौ रचियौ थकौ है। इणांरौ काल सन् 1626 सूं सन् 1678 ई. है। जसवन्तसिंघ जोधपुर महाराज गजसिंघ पैला रा दूजा पुत्र हा। इणांर बाड़ा भाई अमरसिंघ नें विणांरी रीसालू सभाव रै कारण बैराजी व्‌ेयहर महाराज गजसििंघ राज रौ अधिकार नीं दियौ इन कारण जसवन्तसिंघ सन् 1638 ई. में सिरफ 12 बरस री अवस्था में राज रै पटा बैठा। ऐ साहजहां अर औरंगजबे रा समैसरप (समकालीन) हा। औरंगजेब इणांनै गुजरात रा सूबेदार बणाय'र भेजिया। उठै सूं ई साइस्ता खां रै साथै सिवाजी रे खिलाफ जुद्ध में धिखणादा भेजिया। विण जुद्ध में चावी रै मुजब इणांरा समचामाथै ई साइस्तां खां री इतियासु-अखियात दुरगत व्ही। विण पछै अफगानां रै खिलाफ काबुल भेजीजिया। उठै इज सन् 1678 में इणांरौ देवलोक व्हेगौ।
जसवन्तसिंग जित्ता प्रतापी जोद हा उतरा ई विद्या प्रेमी, साहत्त रा जाँणकार, अर तत्वग्यान सूंपूरा हा। सक्ति अर ग्यान, राग, अर विराग रौ इमां में उद्भूत भेल व्हियौ हौ।
ऐ खुद तौ आछा रचनाकार हा, इणरै साथै ई दूजा लिखारां री भी हूंस बढ़ावता हा।
ऐ दूजी भी केई रचनावां करी, पाछला कवी अर आचार्य दोनूं भांत रा लिखारा इणांसूं प्रभावति व्हिया। इणांरी लिकी पोथिया इण भातं है-(1) भासाभूषण (2) सिद्धान्त बोध (3) आनन्द विलास (4) अपरोक्स सिद्धान्त (5) अनुभव प्रकास (6) सिद्धान्त सार नांम। ऐ 6 मौलिक पोथियां रै अलावै भगवती प्रसाद सिंह इणांरौ 7 वौ ग्रंथ इच्छा विवेक ई. बातयौ है। ऐ संस्क्र रा लिखारा क्रष्ण मिस्र रा चावा नाटक प्रबोध चन्द्रोदय रौ उल्थौ करियौ। भासाभूषम री रनचा सन् 1644 री है।
'भासाभूसण' री रचना चन्द्रोलोक सैली में करीजी है। वै लक्सणोदारणां री सपस्टत अर जुगतपणा रौ खास ध्यान राखियौ है। अलंकारां नैं वै जितरा सावल समझाय सकता है, वा कौसीस पूरी करी है। वै जूनिया ग्रंथां रौ स्हारौ लेय'र सरल रूप में लक्सणोारणां नैं एक ई दूवा में राखाता थखा अद्भूत सफलता रौ परिचैदियौ. जद'क ऐ अलंकारां रौ विरोल करियौ है। पण जयदवे रै ज्यूं काव्य में अलंकारं नैं जरूरी मान'र ऐ नीं चालिया। इणरी केी टीकावां लिखीजी, अर केई संस्करण छपिया। पद्माकर भी इणां सू प्रभावित लखावै। रामसिंघ रा अंलाकर-दरपण में दिरीजिया लक्सणां माथै इणांरौ प्रभाव दिखै है। सोमनाथ 'रसपीयूसनिधि' में इणां सूं प्रभावित व्हेय'र अरथालंकारां रौवरणाव करियौ है। इणारै पछै स्रीधर औजा ापार भासाभूसण नांम रा ग्रंथ में इणांरा ईज अनुकर ण करियौ. इणरी प्रति लिपियां गुरुमुखी लिवि में भी व्ही। जकौ पंजाब रा न्यारा-न्यारा सोध संस्थानां अर जगत पौसालां (वि. वि.) रा. संग्रै में है। जयनारायण व्यास जगतपौसला (वि.वि.) में एक सोध प्रबंध 'भासाभूसण' माथै व्हियौ।35
(71) अलंकार ग्रंथ- आ द्वारकानाथ भट्ट री रनचा है।
(72) रस पच्चीसी
(73) भूसण चन्द्रिका
(74) काव्य नियम ऐ तीनूंई रचनावां कवी गुलाब जी री है।36
(75) रघुवर जस प्रकास- औ ग्रंथ किसनाजी आढ़ा रौ बणायौ थकौ है। इणांनै भीमसिंघ मेवाड़, सिसोदा गांम री जागीर दीवी। राजस्थानी रीति ग्रंथां में एक घणौ मैताऊ ग्रंथ है। इणमे बाकी छंदां रा नेम-कायदां रै साथी गीत छंद रा 91 भेद बताइजिया है। औ पांच भागां में बंटियोड़ौ है। छंद, अलंकार, रस, उकता,ं काव्यदोस, जथावां, इत्याद रौ विगतवार वरणाव में इमरी जोड़ कोई नीं करै। इणमें रीतिग्रंथ रै साथै रामकथा भी चालती रैवै। आ राजस्थानी रीतिग्रंथां री निकेवली खासियत है'क गंभीर विसै नैं रोचक अर मनोरंजक बणावण सारू आ रीत अपणाइजी। इणरौ संपादन पदमस्री सीतराम लालस करियौ। जकौ राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान सूं छपगौ। 1880 री रचना है।
'रघुवर जय प्रकास' रौ थौड़ा में वीवरौ इण भांत है-
पैला प्रकरण में मंगलाचरण, गणागण, गणागणदेव, गणा-गणारां फलाफल, गण मित्र सत्रु, दोसादोस, आठ तरै रा दणआकर, गुरु, लघु लघु गुरु री विधि, मात्रिक गण, मातिरक गणआं रा भेदोपभेद, अर विणारां नां अर छंदसास्त्र रा आठ प्रत्यय-1 प्रस्तार 2. सूची, 3. उद्दिस्ट 4. नस्ठ 5. मेरू, 6. खंडमेरू 7. पताका 8. मरकटिका रौ वरणाव अर विरोल करीजियौ है।
दूजा प्रकरण में मात्रिक छंदां रौ वरणाव करियौ है. कवी इण प्रकरण में 224 मात्रिक छंदां रा लक्सण देय'र विणांरा दाखला ई दिया है। लक्सण कठै-कठैई पैला दूवा में कै चोपाई में दिरीजिया है। पछै चंदां रा दाखला दिरीजिया है। कठैई-कठैई लक्सण अर छंद भेला ई देय दिया है। इण प्रकर में राजस्थानी री साहित्तिक गद्य-रचना रा नेम ई समझाया है। विणारां भेदोपभेद थोड़ा में दिया हा। जकौ राजस्थानी साहित्त रौ ईज ेक अंग है। ऐड़ी गद्य रचनावां रौ हिन्दी में तोटौ ईज है। इण प्रकरण में चित्रकाव्य रा ई दाखला कमलबंध, छत्रबंध, आद समझाइजिया है।
तीजा प्रकरण में छंदां रा दूजा भेद, वरणव्रतां रा लक्सण अर दाखला दिया है। सरु में कवी एक आखर सूं छाईस आकर रा छंदां रा नाम छप्पै कवित्त में गिणाय हा। ऐ सबब छंद संस्क्रत छंद है विमरै पछै लगोलग 117 वरणवर्तां रा लक्सण अर दाखला दिया है। कवी आपरी अणूंती रामभगति परगट करतां थकां छदंदां रा दाखला रुप राम गुणगान कहियौ है।
ग्रंथ रा चौथा प्रकरण में राजस्थानी भासा रा गीत छंदां रौ विगतवार आछौ वरणाव है। जकौ इण ग्रंथ रौ खास विसै है। अर साथै ई राजस्थानी भासा रा छंद सास्त्र कै लाक्सणिक ग्रंथ री आपरी खासियत ई है. गीत नांम रौ छंद, विणरा भेद, राजस्थानी भासा रा कवियां री आपरी मौलिक देन है। ग्रंथाकरा गीतां रा वरणाव में, गीतां रा अधिकारी, गीतां रा लक्सण, गीतां री भासा, गीतां में वैणसगा, वैण-सगाई रा नेम, वैण सगाई अर अखरोट, अखरोट अर वैण सगाई में अन्तर, गीतां में नऊ उकतां, गीतां में बरतीजणवाली जथावां, गीत रचना में मांनीजणवाला दोस अर विद्विद् रा गीतां री, वणत, नें आद रौ पूरौ अर सरल भासा में जकौ प्रसाद गुणपूरम है. विणें घणआछौ वरणाव है। ऐ करनल टॉड नैं तिियास लिखण में सामग्री नैं समझावण में घणौ स्हारौ दियौ इणांरा खुद संग्रै रौ भी स्हारौ दियौ। ऐ भारत रा पैला राष्ट्रवादी धारा री कविता रा कीरतथंभ दुरसा जी आढ़ा री आंठवी बीढी में व्हिया। इणांरा पिताजी रौ नांम दुल्हजी हौ। ऐ भी आछा कवि हा।27
(76) रण पिंगल- औ रणछौड़ जी रौ बणायो थकौ रीतिग्रंथ है। इणरा तीन भागै है। इणमें दूजा छंदा रै साथै 30 जात रा गीत रां नेम कायदा दिया थका है।
(77) रघुनाथ रुपक- इण ग्रंथ रा रचणहार मंछ कवि हा। मंछ कवि रौ असली नांंम मनसाराम हौ। 'मंछ' विणारौ कविता ई उपनाम हौ। सायत बालपणा में मां-बाप लाड सूं औ नांम दे दियौ व्है अर पछै जिमसूं मंनसाराम बणियौ। असल में नांम राख ैतौ पूरौ है पण बतलाईजम में लाड सूं छोटौ नांम बतलाइजिया करै। ऐ सेवग (भोजक, व्यास, पारासर) जात रा बामण हा। इणांरी गोत कुंवारा ही। इण कार ण ै महाकवी व्रिन्द रा सजातिया ई हा।
मंछ कवि रै पिता रौ नांम बगसी राम हौ। बगसी राम ै 34 बरसां री अवस्था में औ पूत रतन जलमियौ। बालपणा सूं ई हुस्यार हा। इमांरा काकोसा हाथीराम जी भणाया। मंझ री मां रौ नांम रुकमणी हौ। जोधपुर रा तेजकरण सेवग री बेटा राधा रै साथै संवत् 1845 में ब्याव व्हियौ। मंछ नैं कविता रौ घमौ सौक हौ। महाराजा मानसिंघ रौ जोधपुर में राज हो. जकौ घणा गुणग्राही हा। वै मंछ कवी री प्रतिभा सूं प्रभाति व्हेयटर 720 रू. सालीणा देवणा तै कर दिया। राज सम्मान सूं मंछ कवी री मान बढ़ियौ। मंछ कवी रघुनाथ जी रा भगत हा। वै सोचियौ'क राजस्थानी में रामजी रौ जस गाईजणौ चाहिजै। इण कारण वै औ रघुनाथ रुपक ग्रंथ बणायौ। राजस्थानी कविता में विण वगत गीत रचना ईज खास ही। इण ग्रंथ में राजस्थानी री कविता री रीतियां, छंदभेद, छंदलक्सण, अलंकार, गुणदोस, काव्य रचना है-इणां सबां में (थोथा नायकि भेद नीं) प्रभुजस गावणौ अर साहित्त रा सिद्धांता रौ वरणाव है।
इण ग्रंथ नैं कवी संवत् 1863 भादवा सुद दसम, सोमवार नैं पूरौ करियौ। जोधपुर रा ओसवाल भंडारी अमरसिंघ रा बेटा किसौरदास ूसं कवी मंछ भमाई करी। कवी मंछ रौ देवलोक सं. 1897 में व्हियौ।
इण ग्रंथ में नव विलास (पाठ-अध्याय) है। पैला दो विलासां में अर तीजा विलास में प्रहास छंद रै पैला तक मंगलाचरण पूरवपीटिका ्‌र छंद वरणाव अर रामचरित रौ वरणाव है। अर वरण, गण, दध-आखर, दुगण, आखर-त्याग, फला-फल, वैण-सगाई, काव्य रा दस-दोस, आखर-धरण, अखरोट मोहरा मेल (1 वि.) अर उकतां रा नेम, अर भेद, साथै ई रसां रा, नाम, भदे अर लक्सण (2 वि.) आगे सांत विलासां में रामायम रा सांतू कांड थोड़ा में वरणीजिया है अर विद् विद् रा वरताव लक्सण अर दाखलां दिया है। दाखलां रा छंदां में ई रामायण रौ सार थोड़ा में दियौ है। पण घणी कविता री कारगीरी सूं दियौ है। इणरा नाम रै सारू कवी खुद कैवै है-
इण ग्रंथ में रघुनाथ गुण अत भेद कविता भाषियौ।
इण हीज कारण नाम औ 'रघुनाथरुपक' राषियौ।
इण ग्रंथ रौ थोड़ौ सौ परिचै कवी एक-गीया छंद में इम भांत दियौ है-
कह मंछ स्री रघनुथा रूपक पढ़े जो नर प्रीत सूं।
मरुभूस भासा तणौ मारग रमै आछी रीत सूं।।
इण मांहि लघु गुरु दगध आकर सुभासुभगण साजिया।
दुगणादि वरणे दसे दोषण मित्त बरण समाजिया।।
अरु त्रिविध मोहरा नवै उकतां अवर नवरस ओपिया।
गिण दाषवै विध जथा ग्यारह रुप छंदौ रोपिया।।
चहू जात दोहा, चार छप्पै जात बहुतर गीत री।
दुय दवाबैता बचनका बिध ईस्त्री चारूं रीत री।।
नीसाणियां दस दोय, निरमल कुंडल्या पंच केवलै।
इक आद गाथा चंद अंतह जुगत कर करजे वलै।।
उर ग्यनी भगती नित उपजै चातुरी लड चोज सूं।
अवधेस चिरतां हुवै वाकब मिलै सदगत मौज सूं।
इण छंदां सूं कवी री बात परगट व्है जावै अर ग्रंथ में कांी कांी विसै वरणीजिया है अर कितरा अर किंण भेद अर जात रा छंद कह्य जिणरी थोड़ा में जांण कराई।38
(78) कविकुलबोध- औ एक मैताऊ ग्रंथ है। इणरा रचेता उदैराम बारहठा हा। ऐ जोधपुर रै थबूकड़ा गांम रा रैवासी हा। महाराज मानसिंघ जोधपुर रा दरबारी कवेसर रह्या। वै कछभुज रा राजा भरामल अर विणांरा बेटा देसज (दूजा) रा दरबारी भी रह्या। औ ग्रंथ तरंगां में बंटियो थकौ है. सगली दस 'तरंगा' (्‌अध्याय) है। इणमें दूजा छंदौ रा नेम रै साथै 84 जात रा गीत छंदां रा नेम दिया है। इणें छंद, भासा, डिंगल-पिंगल स2ैलियां, रस, अथावां, उकतां आद रौ विगतवार वरणाव है।39
(79) पांडव यशेन्दुचन्द्रिका- औ मूल में तौमहाभारत री कथा माथै लिखियौ थकौ ग्रंथ है। पण इणरै सरु में छंदां अलंकारां रा नेम कायदा अर रसां रौ वरणाव भी है। इण ग्रंथ री रनचा सारू सरू में मंगलाचरण रा छेहला छंद में आ कैवै-
दृग गृह बसु अरू चंद्रमा, सम्वतांक 1892 गति बाम।
शुक्ल चैत्र राका ससी, ग्रंथ जन्म सुखधाम।।69।।
इणरा रचणहार स्वामी स्परुपदास देथा हा। जिणांरै सारू औ चावै है क रतलाम सीतामऊ आद मावारी रियासतां रा राज दरबारां में इणांरो बड़ौ मान हौ। सीतामऊ रा उण वगत रा नरेस राजसिंघ रा बेटा रतनसिंघ री तो इणारै सारू तिरी गैरी भगती ही'क वै आपरा ग्रंथ, नटनागर-विनोद रा सरू मं ईस्वर वंदना नीं कर'र पैला इणांरी वन्दा करी। ऐ जात रा चारम हा। मिांरै पिता रौ नांम मिस्रीदान जी हो. मिांरौ रचणकाल सं. 1880-1920 तक है। इमारा बडेरा उमरकोट रा रैवणवाला हा। जटै सूं आय'र इणारा पिता अजमेर रा बड़ली गां में बसगा। इणांरो बालपणा रौ नांम संकरदान हौ. इमांरा काकोसा परमानन्द इणांनै भणाया। पण भणाई रै पछै ऐ दादूपंथी व्हेगा।
इण ग्रंथ रौ संपादन डॉ. सी. पी. देवल कलरियौ जकौ, साहित्त अकादमी, नवी दिल्ली सूं छपियौ. जिण मुजब औ वीवरौ है।
(80) चमत्कार चंद्रिका- आ भासाभूसण री टीका है। कवी हरिचरण दास री करी थकी है। महाराज खेंगार री सवाी बहादुर आस्रयथी पौसालरा विद्यारथियां सारू, भुजनगर कच्छ दरबारी छापाखाना में छापी थकी। संवत् 1943 सन् 1886। इणमें 515 छंद है। जिणें अलंकारां में रौ वरणाव है। साहित्त संस्था,न उदैपुर रा पोथखाना में है।
(81) तरवत-विलास- सिवराम दाधिची री रचना है। रचना रौ वगत वि. सं. 1899 में नायिका भेद रौ एक नें ग्रंथ बणायौ। जिणरा मंगलचारण में गरु वंदना है। जिणमें वैआपरा गरु स्वामी सरुपदास देथा नैं याद करिया। पाण्डयेशेन्द्रचन्द्रिका सं. डॉ. सी. पी. देवल, मंडांण मुजब।

(82) व्रित्त रत्नाकर- "बांकीदास ग्रंथावलनी भाग-3 में इण ग्रंथ री सूचना मिलै. औ ग्रंथ अबार तक पूरौ मिलयौ नीं है। मिलोयड़ा अंस सूं लखावै है'क छंदां, अलंकारां रा नेम, अर उणांरा दोसां री व्याख्या करीजी है।
(83) रस अलंकार-इण नांम सूं बांकीदास ग्रंथावली भाग-3 (नागरी प्रचारणी कासी सूं छापी) में 37 द्वालां रौ एक लम्बौ गीत छापियोड़ौ है। गीत में कवीरस, उणरा भेद, अर अलंकारां रा गुण-दोसां रौ वरणाल करियौ है।40
(84)कवि मत मंडण- औ भी कविराजा बांकीदास रौ ग्रंथ है इणमें काव्यदोसां रौ वरणाव है।
(85) छदोमयूख- औ सूरमजल मीसण रौ ग्रंथ है।
(86) सोडस क्रम- औ कविराव बख्तावर रौ ग्रंथ है। इणरी पांडुलिपि साहित्त संस्थान राजस्थान विद्यापीठ जगतपौसाल रा पोथीखाना मेंहै। औ छोटौ सौ ग्रंथ छंदां रा नेम कायदां रौ है। कवी इणरी रचना कोई माधव रै भणण सारू करी। इणरौ रचणकाल संमत 1936 आसोज री चांनणी दसम है। कविराव रौ मेवाड़ महाराणा संभुसिंघ, महाराणा सरुपसिंघ इत्याद रा दरबार में घणौ मान हौ।
(87) रसोत्पत्ति ग्रंथ- औ भी कविराव बख्तावर रौ ग्रंथ है।41
(88) डिंगल कोस- कविराजा मुरारिदान री रचना है। इणमें सबदां रै साथै गीत छदां रा भेदां रा नेम ई बताईजिया है।
(89) मनीसालक्सचन्द्रिका- औ ग्रंथ गुमानसिंघ सारंगदेवोत रौ है। साहित्त में जकौ नायिका भेद व्है वो लुगायां रौ चरित्त है। इणमें बुद्धि रौ चरित्त है, बुद्धि में नायिका मान'र स्वकीयादि भेद वरणीजिया है।
लुगाई जकौ सब काम करै वै बुद्धि रे आधीन करै है, मन, वचन, करमां सूं दीख जावै. वै मन, वचन, करम बुद्धि रेै मांय है। स्वकीया, परकीया अर गनिका रा पद बुद्धि सूं व्है है, तौ तै है'क बुद्धि ईज नायिका है, सिरफ लुगाई नैं ई क्यूं क्यौ जावंणौ चाहिजै। इण ग्रंथ री सरुपोत में मंगलाचरण री रीत रै साथै करीजियौ है। जिणमें गणेस जी अर गरु जी री वंदना दूवा छंद में करी है पछै कवित्त में महाराणा फतैसिंघ रौ वरणाव है। आपरा वंस कानोड़ रावत नाहरसिंघ ्‌र ापरा बड़ा भाई दलेल सिंघ झूंझार सिंघ अर खुत दांई रौ वरमाव करियौ है। इणमें 311 छंद है।42
(90) महाभारत रुपक- औ ग्रंथ लगैटगै 50 बरसां पैली रचियौ थकौ है। मेवाड़ रा कड़ियां गांम रा रैवासी सांवलदान आसिया रौ है। इण में महाभारत री कथा चालती रैवै अर राजस्थानी रा गीत छांदां री 120 जात रौ वरणाव है। जकौ किसना जी आढ़ा रा रघुवर जस प्रकास में वरणीजिया 91 जात रा गीतां सूं घणी ज्यादा है। इणरी चपाई सारू डॉ. ब्रजमोहन जावलिया रै मुजब उदयपुर वाली अकादमी में भेजीजियौ पण छप नीं सकियौ।
(91) छंद रत्नावली कै छंद रतनकोस- डॉ. जावलिया रै मुजब औ ग्रंथ अल्ल अर गुल्ल (अर्जनु अर गोसाल) रौ है। जकौ जूनी राजस्थानी रौ है। इणारै मुजब कोजू कवी रा रीती ग्रंथ री भी चरचा मिलै जकौ डॉ. जावलिया रा मत मुजब जैपुर रा राजावत व्है सकै।43
(92) रस कलस- आ पोथी स्री बदरीदान गाडण री अनुपम अर फूठरी कविता पोथी है। पारम्परिकता अर आधुनिकता दोनां नैं भेलती थखी-'रस-कलस' आधुनिक डिंगल काव्य रा भणेसरां सारू एक सिरै संदरभ ग्रंथ है। नवरसां रा फूठरा दाखला देय'र स्री गाडण आपरी काव्य खिमता अर कवी धरम रौ परिचै दियौ है।44
इणारै अलावै कीं ओरूं रीतति ग्रंथां री सूनचा 'पांडुवयशेन्द्र चन्द्रिका' डॉ. सी. पी. देवल री संपादित री तलटीपां में मिलै जकौ इण भांत है-
(93) दलपत पिंगल- पानापूर्ठाक-60
(94) भगवत पिंगल- पानापूर्ठाक-62
(95) प्रस्तार पिंगल-पानापूर्ठाक-74
(96) नटवर वाग्विभूसण-पानापूर्ठाक-100
(97) रुपदीप पिंगल-साहित्य संस्थान पोथीखाना में पांडुलिपी है।
(98) छंदकोस- चन्द्रकीरती रौ बणायौड़ौ है।2
(99) बुध विलास, (100) लखधीर पिंगल-इणां ग्रंथा रा नांम रघुनाथ रुपक रा मंडांण (भुमिका) में मिलै. महताबचंद खारेड़ री संपादित है।
(101) जसवन्त आभूसण चन्द्रिका- मनोहरदास सेवग री रचना है। ऐ महाराज मानसिंघ जोधपुर रा दरबारी हा। इणरी चरचा रघुनाथ रुपक रा मंडांण में मिलै।
राजस्थान रा हस्तलिखित ग्रंथां री सूची सं. अगरचन्द नाहटा भाग-2, रै मुजब।
(102) छंद मालिका- रचेता-हेमसागर, पद्य-194 रचना संवत् 1706, प्रतियां री उपलब्धता।
(1) छतीबाई उपासरा रा संग्रै में।
(2) अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर।
(3) हरीसागर सूरी भंडार
(4) जैसलमेर भण्डार।
(103) प्रस्तार प्रभाकर- रचेता-रसपुज, पद्य-89, रचना संवत्-1871 चैतरी अंधारी पांचम गुरुवार नै पूरौ व्हियौ। सुखदान चारण संग्रै में प्रति है।
(104) माला-पिंगल- ग्यानसागर रचित, पद्य-153, रचना संवत्-1876 फोगण सुद 9 प्रति अभय जैन ग्रंथलाय बीकानेर में है।
(105) लघु पिंगल-रचेता चेतनविजय, पद्य-111, रचना संवत्-1847, पोस सुद दूज, गुरुवार, अभय जैन ग्रंथालय में प्रति मिलै।
(106) वचन-विनोद- रचेता आनन्द रास कायस्थ पद्य-125, रचना संवत् 1679, प्रति अनुप संस्कृत पुस्तकालय बीकानेर में है।
(107) व्रितिबोध- रचेता सरुपदास रचना संवत्-1898, माध री अंधारी एकम नैं पूरौ व्हियौ। कविराज सुखराज चारण सुंग्रै अर साहित्त संस्थन, उदयपुर में प्रतियां है।
(108) काव्य प्रन्ध- लालस बगी राम रचेता, रचना संवत्-1913, आसोज सुद पूनम, कविराज सुखदान चारण संग्रै मं प्रति है।
(109) चित्र विलास- अमृतराई भट्ट पद्य-131, रचना संवत्-1736 काती सुद नम रा पूरौ व्हियौ। ठांणौ-लाहोर, प्रति-जयचन्द्र जी रा भंडार में है।
(110) दंपतिरंग- रचेता-लछीराम, पद्य-73, रचा संवत् 1709 सूं पैला। प्रति अभय जैन ग्रंथालय में है।
(111) दुरगसिंघ सिंगार- जनारदन भट्ट रचेता, रचना संवत्-1735 जेठ सुद नम अदीतवार नैं पूरौ व्हियौ। प्रति अनूप संस्क्रत पुस्तकालय बीकानेर में है।
(112) नखसिख-रचेता घनस्याम, पद्य-63, रचना संवत् 1805, काती सुद बुधवार, प्रति-अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर में है।
(113) नखसिख-रचना संवत् 18 वो सइक, प्रति-अभय जैन ग्रंथलाय बीकानेर में है।
(114) नखसिख-पद्य-30, रचना संवत् 18वो सइकौ, जिन चरित्त सूरी रा संग्रै में प्रति है।
(115) प्रेम मंजरी- रचेता-प्रेम, पद्य-97, रचना संवत् 1740, चैत सुदी दसम सोमवार, खरतर गच्च आचार्य साखा चुन्नी भंडार, जैसलमेर में है।
(116) भासा कवि रस मजंरी-रचेता मानकवि, पद्य-107, रचना संवत् 18 वो सइकौ, प्रति-अभय जैन ग्रंथलाय, बीकानेर में है।
(117) विक्रम विलास- रचेता लालदास, रचना संवत् 1729, प्रति-अनूप संस्क्रत पुस्तकालयमें है।
(118) साहित्य महोदधि- रचेता रावत गुलाबसिंह मेहडू रचना संवत् 1963, प्रति-अभय जैन ग्रंथलाय बीकानेर में है।
(119) अलंकार आसय-रचेता रामकरण, पत्र 23, रचना संवत 1857, विजैदसमी, रविवार।
(120) कविता कल्पततरु- रचेता नानूराम, कवि सागर।
छंद 573 है। औ ग्रंथ संवत् 1940 रावल नवलसिंघ रा बेटा राव मोडसिंघ सादरपुर मैं लिखियौ। पूरौ ग्रंथ पांच भागों में बंटियौ थकौ है।
(1)राजवंश वरणन (2) सबद अरथ निरुपण (3) विभाव अनुभाव संचारी, भाव आद निरुपण (4) सबदालंकार निरुपण (5) अरथालंकार निरुपण।
(121) कविप्रिय री टीकाृ- टीकाकार हरिचरण दास, रचना संवत् 1835, माघ सुद पांचम, पंद्य-7125।
(122) छंद पगोनिधि- रचेता महाराज कुमार मदनसिंघ 'मदनेस' 'भींडर' रचना संवत् 1929, पाना-45, पद्य 136, औ ग्रंथ रचेता रा जीवण में पूरौ नीं व्हेण सूं आधौ'ईज रैयग्यों। प्रति-सरस्वती भण्डार, भीण्डर, उदैपुर में है।
(123) छंद प्रकास-रचेता दानदास दयाल अर पाना-56 है। पांनाँक 32 सूं 56 तक में कमलबंध, व्रिखबंध, चस्माबंध, जहाजबंध आद 37 चित्र है। इणमें रचेता एक'ई छंद में लक्सण अर दाखला देय दिया है। अर साथै'ई दाइपंथ री भावनावां नैं भी परगट करीजी है। कुल 78 छंदा है। बाकी 37 अलंकारां रा न्यार न्यारा छंद है। (कविराज मोहन सिंग संग्र उदैपुर में प्रति है।)
(124) छंद प्रबन्ध पिगल- रचेता भण्डारी उदैचन्द, रचना संवत् 1936, आसाढ वद तीज, पद्य 150, पाना 17 (अंताणी संग्रै)।
(126) छंद विवेक- कवि जयनारायण, रचना संवत् 1892, वैंशाख सुद तीज गुरुवार अर प्रतिलिपी संवत् 1934, फागण सुद नम बुधवार नैं गोरजी मोतीराम री मारफत बांसवाड़ा में पाना-22, पद्य-121, (कविराज मोहनसिंघ संग्रै)
(127) छंदोनिधि पिंगल- रचेता मनराखन स्रीवास्तव, रचना संवत् 1861, माध सुद तेरस, पाना 24, लिपी संवत्-सिवदत्त री मारफत, 1936 आसाढ़ सुद दूज शुक्रवार नैं बांसवाड़ा में। प्रति साहित्त संस्तान उदैपुर में है।
(128) सभा प्रकास- रचेता हरिचरणदास पाना-79, रचनाकाल संवत् 1814, सावण सुद तेरस शुक्रवार। ग्रंथ 10 उल्लासां में पूरौ व्हियौ है। लिपिसंवत्-1917, वैसाख सुद बारस।
(129) छंद सिंगार- रचेता महासिंग, लिपिकार- बख्तावर, वि.सं. 1910, लिपि ठांणौ, उदैपुर, ग्रंथ में छंदा रा लक्सण अर भेद वरणीजिया है। पद्य 189, पाना 27 (दूजो नांम-भासा-पिंगल) प्रति साहित्त संस्थान, उदैपुर में है।
(130) प्रवीण सागर- रचेता प्रवीण-ग्रंथांक 271, लिपकार-औंकारनाथ, लिपिकाल वि. सं. 1935, रस अलंकार वरणन है। पाना 272, प्रति गली थकीपण पूढणजोग साहित्त संस्थान, उदैपुर में है।
(131) लछमन विलास- राव माधव, रचेता, रचना संवत् 1942, रीतिकाव्य अर राजनीति विसयक लिखि पोथी है। पाना 30, प्रति साहित्त संस्थान, उदैपुर में है।
(132) सज्जन विलास- कवि दत्त रचेता। ग्रंथाक-80, पाना-12, ग्रंथ अपूरण, प्रति साहित्त संस्थान उदैपुर में है।
(133) अलंकार महोदधि- रचेता गिरिवरसिंग राव। रामचन्द्र जसभूसण, उपनाम, इण ग्रंथ में कवि रामजी रा जस अर कीरत रौ। वरणाव करै पछै न्यारा-न्यारा अलंकारां री जाणं कारवैं।
(134) कुवल्यानंद भासा टीका- रचेता गिरिवरसिंघ राव, संस्क्रत ग्रंथ रौ उल्थौ इण'ईज नांम सू करयौ। कवि सबै तरै रा अलंकारां रौ वरणाव भेद-उपभेदां सहित करयौ है। (मेवाड़ रौ राजस्थानी राव साहित्त डॉ. कल्याणसिंघ रा, वानापूर्ठांक-134)
इणांरै अलावै भुज पौसाल री पढ़ाई में चालता विणांरौ वीवरौ इण भातं है (1) छंदोनिधि पिंगल (2) छन्द सिणगार पिंगल (3) चिंतामणि पिंगल (4) छन्द भास्कर विंगल (5) हमीर पिंगल (6) लखपति पिंगल (7) नागराज पिंगल (8) भासाभूसण (9) वंसीधर अलंकार ग्रंथ (10) रस रहस्य (व्यंजना, धुनि, लक्सण आद रौ वरणाव) (11) काव्य कुतौहल- रस रहस्य री पौथी (12) रसिक प्रिय (नवरसां मे सिणगार रौ खास वरणाव) (13) सुन्दर सिणगार इत्याद भणाई में चालता हा।46
इण भांत राजस्थानी रीती ग्रंथां री रीत आपरा जुग री रंगत नैं भेली भेलती थकी, जुग-जुग री चूनौतियां नैं झेलती थकी, जुग-जुग रा नवा-नवा प्रयोग करती थकी, नवी-नवी आछायां नैं अपणावती थकी दिनोदिन आगे पगलिया देवै है।
राजस्थानी रा गुणसीर अर आचजार्य आपरा जुग धरम नैं निभायौ। अबै इण भासा नैं नवीहालातां ेमं आगे वदावण सारु साहित्त रा इण बाट रा बटाऊवां नै इण भासा रै सांमी आज रा जुग मे ंजकौ चूनौतियां है विणांन पिछाणणी पड़ेला, जिणसूं नवा सोधेसरां नैं कीं गेला री पिछांण व्है सकै।
राजस्थानी री डिंगल- पिगंल दोनूं सेलियां में लिखिया थका रीती ग्रंथां नैं इणमें लिरीजिया है। पिंगल सबद रा केई अरथ व्है विण मांय सूं एक पिंगल रौ मतलब पैला तो छंद सास्त्र री किताब सूं हौ जकौ संस्क्र्‌त सूलेय'र राजस्थानी तक रह्यौ, पण पिंगल राजस्थानी बासा री एक कविता री सैली रौ साहित्त 17 वां सईका सूं चलण में आयौ, जकौ इण भांत री सैली रौ साहित्त 18 वा 19, वा 20 सीका में घणौ ई रचीजियौ।
डिंगल अर पिंगल सैलियां माथै विगतवार वरणाव अर विरोल अठै संभव कोनी सौ विसै अपणै आप में न्यारा सोध लेख रौ विसै है। पण इतरौ जरुर परगट कर दूक पिंगल नीं तौ न्यारी भासा है, नीं ई ब्रजभासा है, नीं ई ब्रजभेल री राजस्थानी है। आ राजस्थानी री पद्य री सैलीहै, जिणमें आथूणी अर अगूणी रास्थानी रौ भेल है। जकौ जुग री जरुरत मुजब राजस्थानी कवियां रौ एक प्रयोग हौ। पण केई जणा अबार विण जुग नैं ढंग सूं नीं समझण रै कारण ज्यूं डिंगल रै सारू केई कम समझ री बातां लिख दी, विण ई तरै पिंगलरा भी न्यारा-न्यारा अरथ काढै।
राजस्थानी रीती ग्रंथां रौ अबार तक जो संपादन व्हेय'र छपिया है। विणांरो मंडांणं (भूमिका) राजस्थानी में नीं है। इणमें संपादकां री प्रकासन सूं जुड़ी कै कोई मजबूरी व्हौ. पण राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान अर दूजा सोध संस्थानां रौ धे राजस्थानी नैं लेय'र साफ व्हेणो चाहिजै।
इण ई भांत ग्रंथां रा संपादन सूं जुड़िया गुणीसरां नैं मंडाण अर टीका, सबदां रा अरथ सब राजस्थआनी में लिखणां चाहिजै भारत अर दुनिया री सब भासावां रा लोग आपरी भासा नैं दिनोदिन सबली अर सामरथवान बणावणी चावै, पण राजस्थान में कुणसी कुवेला में ग्रंथां रा उद्धार रौ औ गलत करीकौ अपणाइजियौ।
आपांरी भासा में विणरा गद्य में अरथ नीं व्हेण सूं राजस्थानी खड़ी नीं खौड़ी व्है। भासा रा सपूतां नैं संस्थावां अर मिनखां री कथणी-करणी नैं भी नजिर में राकणी पड़ैला जोगा लोगां नैं पिछांण अर विणांरी प्रतिभा नैं काम में लिरीज चाहिजै।
इम कमी रै कारण संबादित ग्रंथ ओपरौ ओपरौ सो लखावै अर पढ़णिया री भावबोम में कीं मंडांण दूजी ममंड जावै. केन्द्रीय घर मंत्रालय रा भासा विभाग रा सदस्य उदयपुर में राजस्थानी जाजम री 'ग्यानगोठ में एक राजस्थानी रा जूना अर संबादित व्हेय'र छपिया ग्रंथ नैं उठाय'र कैयौ'क कविता घणी आछी पण मंडाण राजस्थानी में क्यूं नी ंलिकै-राजस्तानी रा लोग? राजस्थानी रौ अहित आप खुद कर रैया हौ।'
तलटीपां-
1. पं. अंबालाल प्रे. साह- जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास- भाग-5, पानापूर्ठाक-130
2. डॉ. दिनेस काव्यशास्त्र पानापूर्ठाक--54
3. डॉ. दिनेस-छंदसास्त्र री परम्परा पानापूर्ठाक-54
4. राजस्थानी छंदसास्त्रां री परम्परा- डॉ. नारायणसिंघ भाटी पानापूर्ठाक-183
5. पं. अंबालाल प्रे. शाह- जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास- भाग-5 पानापूर्ठाक-64-65
6. पं. अंबालाल प्रे. साह-जैन साहित रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-67-99
7. डॉ. कमलेसकुमार जैनाआचार्यां रौ अलंकार सास्त्र में योगदान-पानापूर्ठाक-99
8. डॉ. कमलेसकुमार जैनाआचार्या रौ अलंकार सास्तर में योगदान-पानापूर्ठाक-2-4
9. डॉ. कमलेसकुमार जैन- जैनाआचार्यां रौ अलंकारसास्त्र में योगदान पानापूर्ठाक-2-4, आर्यरक्सित रौ जीवण-चरित्र प्रभावक चरित्त रै पैला रचिया थका ग्रंथां-आवस्यक चूरणि अर आवस्यकमल गिरि वृत्ति इत्याद में भी पायौ जावै है।
10. डॉ. पुरुषोत्तमलाल मैनारिया- राजस्थानी साहित्त रौ इतियास- पानापूर्ठाक-37
11. डॉ. पुरुषोत्तमलाल मैनारिया-राजस्थानी साहित्त रौ इतियास-पानापूर्ठाक-27
12. धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी साहित्त कोस पानापूर्ठाक-42
13. पं. अंबालाल प्रे. साह-जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक--144
14. सुदरपअ विण्णाणं विमलांलंकारररेहि असरीरं।
सुहदेविअं च कत्वं च पणविअ पवखण्णड्ढं।।
15. पं. अंबालाल प्रे. साह-जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-99
16. प्राकृत भासा रौ एक मात्र आलंकारिक ग्रंथ-अलंकार-दप्पण, श्री रतनमुनि स्मृति ग्रंथ, पानापूर्ठाक--394-398
17. प्राकृत भासा रौ एक मात्र अलंकार सास्त्र-अलंकार-दप्पण, मरुधर केसरी मिश्रीमल महाराज अभिननन्दन ग्रंथ रा भाग चौथा में पानापूर्ठाक-429
18. अलंकार-दप्पण-मंडांण (भूमिका) मरुधरकेसरी मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज अभिनन्द ग्रंथ-भाग-4, पानापूर्ठाक-429
19. पं. अंबालाल प्रे. साह- जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-148
20. पं. अंबालाल प्रे. साह- जैन साहत्ति रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-138
21. पं. अंबालाल प्रे. साह जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक--138
22. पं. अंबालाल प्रे. साह-जैन साहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-138 'छंदकोस' प्रो. एच.डी. वेलकर इणनै संपादित कर'र बंबोई वि. वि. पत्रिका में सन 1933 मं छपायौ।
23. डॉ. नारायणसिंघ भाटी-राजस्थानी साहित्त कोस अर छंदसास्त्र- पानापूर्ठाक-17
24. डॉ. पुरुषोत्तमलाल मैनारिया-राजस्थानी साहित्त रौ इतियास- पानापूर्ठाक-84
25. डॉ. ब्रजमोहन जावलिया-एक दुरलभ ग्रंथ- नागराज पिंगल-मज्झमिका 1973-74 संपादक-डॉ. गोपीनाथ सरमा, डॉ. ब्रजमोहन जावलिया।
26. श्री धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी साहित्त कोस भाग-2
27. डॉ. मोतीलाल मैनारिया-राजस्थान रौ पिंगल साहित्त-पानापूर्ठाक-79-85
28. डॉ. नारायण सिंघ भाटी-राजस्थानी कावय में छंद अलंकार अर रस वैसिस्टय (परम्परा) सं.- पानापूर्ठाक-17
29. डॉ. हरीलाल माहेस्वरी- राजस्थानी साहित्त रौ इतियास पानापूर्ठाक-177
30. पदमस्री सीताराम लालस- मंडांण-रघुवर जस प्रकास-पानापूर्ठाक-8
31. डॉ. जगमोहन सिंघ परिहार- मध्यकालीन चारण काव्य पानापूर्ठाक-171
32. डॉ. गोवरधन सरमा-कछुअल री काव्यमाला (परम्परा) भाग-89 पानापूर्ठाक-2
33. ग्रंथाक 28, 29, 32, 33, 34, 36, 37, 38, 39, 40, 41, 43, 44, 45,46, 47, 48, 49, 52, 53, 54, 55, 56, 57, 58, 59, 60, 61, 62, 63, 64, 65, 66, 67, 68, 69 रौ वीवरौ- डॉ. मोतीलाल मेनारिया राज. पिंगल साहित्त रै मुजब है।
34. श्री धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी साहित्त कोस-भाग-2
35 ंश्री धीरेन्द्र वर्मा-हिन्दी साहित्त कोस भाग-2
36 डॉ. मोतीलाल मैनारिया राजस्थान रौ पिंगल साहित्त पानापूर्ठाक--65-66
37 पदमस्री सीताराम लालस (मंडांण) रघुवर जस प्रकास ग्रंथाक 66-67 रौ वीवरौ।
38 महताबचंद खारेड-मंडांण- रघुनाथ रुपक-पानापूर्ठाक-14-16
39 पदमस्री सीताराम लालस-सं. (मंडांण) रघुवरजसप्रकास-पानापूर्ठाक-6
40. कविराजा बांकीदास-सौभाग सिंघ सेखावत पानापूर्ठाक-40
41. साहित् संस्थान रा पोथी काना में पांडुलिपी है।
42. प्रो. देव कोठारी- गुमान ग्रंथावाली (मंडांण) पानापूर्ठाक-2
43. साहित्य संस्थान ग्यानगोठ में तारीख 27-8-2001 रा भासण सूं।
44. श्री गिरधारी दान रतनू- बदरीदान गाडण अर उणांरौ काव्य-वैचारिकी जुलाई-सित्. 2001, पानापूर्ठाक-24
45. पं. अंबालाल प्रे. साह जै नसाहित्त रौ बड़ौ इतियास भाग-5 पानापूर्ठाक-150
46. भुज री काव्यसाला डॉ. गोवरधन सरमा-पानापूर्ठाक-24


ऊपर

   
 आपाणो राजस्थान
Download Hindi Fonts

राजस्थानी भाषा नें
मान्यता वास्ते प्रयास
राजस्तानी संघर्ष समिति
प्रेस नोट्स
स्वामी विवेकानद
अन्य
ओळख द्वैमासिक
कल्चर साप्ताहिक
कानिया मानिया कुर्र त्रैमासिक
गणपत
गवरजा मासिक
गुणज्ञान
चौकसी पाक्षिक
जलते दीप दैनिक
जागती जोत मासिक
जय श्री बालाजी
झुणझुणीयो
टाबर टोली पाक्षिक
तनिमा मासिक
तुमुल तुफानी साप्ताहिक
देस-दिसावर मासिक
नैणसी मासिक
नेगचार
प्रभात केसरी साप्ताहिक
बाल वाटिका मासिक
बिणजारो
माणक मासिक
मायड रो हेलो
युगपक्ष दैनिक
राजस्थली त्रैमासिक
राजस्थान उद्घोष
राजस्थानी गंगा त्रैमासिक
राजस्थानी चिराग
राष्ट्रोत्थान सार पाक्षिक लाडली भैंण
लूर
लोकमत दैनिक
वरदा
समाचार सफर पाक्षिक
सूरतगढ़ टाईम्स पाक्षिक
शेखावटी बोध
महिमा भीखण री

पर्यावरण
पानी रो उपयोग
भवन निर्माण कला
नया विज्ञान नई टेक्नोलोजी
विकास की सम्भावनाएं
इतिहास
राजनीति
विज्ञान
शिक्षा में योगदान
भारत रा युद्धा में राजस्थान रो योगदान
खानपान
प्रसिद्ध मिठाईयां
मौसम रे अनुसार खान -पान
विश्वविद्यालय
इंजिन्यिरिग कालेज
शिक्षा बोर्ड
प्राथमिक शिक्षा
राजस्थानी फिल्मा
हिन्दी फिल्मा में राजस्थान रो योगदान

सेटेलाइट ऊ लीदो थको
राजस्थान रो फोटो

राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: क ख ग घ च छ  ज झ ञ ट ठ ड ढ़ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल वश ष स ह ळ क्ष त्र ज्ञ

साइट रा सर्जन कर्ता:

ज्ञान गंगा ऑनलाइन
डा. सुरेन्द्र सिंह पोखरणा, बी-71 पृथ्वी टावर, जोधपुर चार रास्ता, अहमदाबाद-380015,
फ़ोन न.-26925850, मोबाईल- 09825646519, ई-मेल--sspokharna15@yahoo.com

हाई-टेक आऊट सोर्सिंग सर्विसेज
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षर् समिति
राजस्थानी मोटियार परिषद
राजस्थानी महिला परिषद
राजस्थानी चिन्तन परिषद
राजस्थानी खेल परिषद

हाई-टेक हाऊस, विमूर्ति कोम्पलेक्स के पीछे, हरेश दुधीया के पास, गुरुकुल, अहमदाबाद - 380052
फोन न.:- 079-40003000 ई-मेल:- info@hitechos.com